Wednesday, May 21, 2025
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मोदी ने तीनो राजनैतिक बपौती के नेताओ के “L…” लगा दिए,राहुल गांधी खुद क्या, फ़िरोज़ गांधी के कारण ” पारसी,मुसलमान, या गांधीके कारण बनिया,या सोनिया के कारण ईसाई

जातीय जनगणना अब होगी लेकिन एक सवाल अब सबके दिमाग मे कौंध रहा है कि राहुल गांधी कौन सी जाति बताएंगे
फ़िरोज़ गांधी के कारण: पारसी,मुसलमान या बनिया,
फ़िरोज़ की मां पारसी गन्धी लिखती थी
फ़िरोज़ के पिता मुसलमान
या गांधी ने अपना नाम दिया था जैसा कहा जाता है तो बनिया,
इंदिरा की शादी फ़िरोज़ से हुई तो बच्चे भी,सुप्रीम कोर्ट निर्णय अनुसार
राजीव,संजय या तो पारसी,मुसलमान या बनिये,
चर्चा है कि राजीव ने सोनिया से शादी के लिये ईसाई धर्म अपनाया था नाम राबर्ट विंची मिला था,
तो बच्चे हुए या तो ईसाई या पारसी या मुसलमान या बनिया,

बाकी जातीय जनगणना पर मोदी ने लिया मास्टर स्ट्रोक,

केंद्र सरकार ने सुपर कैबिंनेट की बैठक में कई अहम फैसले किए है। जिसमें जातिगत जनगणना की चर्चा सबसे ज्यादा है। यह जनगणना इसी साल सितंबर में होने वाली मूल जनगणना के साथ ही कराई जाएगी। जिसे पूरा होने में करीबन 2 साल का समय लगने का अनुमान है। जिसकी जानकारी कैबिनेट मीटिंग के बाद मंत्री अश्विनी वैष्णव ने दी। इस फैसले की घोषणा होते ही विपक्ष में खलबली मच गई है। विपक्ष इस का क्रेडिट लेना चाहता है। उसका कहना है कि विपक्ष के दबाव के कारण मोदी कैबिनेट ने यह फैसला लिया है। लेकिन राजनीति ने जानकार इस जातिगत जनगणना को पीएम मोदी का मास्टर स्ट्रोक मान रहें हैं। जिसने विपक्ष को चारों खाने चित्त कर दिया है।

इस निर्णय से भाजपा को होंगे चार राजनीतिक फायदें

जातिगत जनगणना के फैसले से भारतीय जनता पार्टी को कई राजनीतिक फायदे होंगे। जानकार बताते है कि इस मुद्दे पर भापजा ने जो मास्टर स्ट्रोक खेला है। उससे बिहार के साथ यूपी के चुनाव का भी रास्ता कहीं ना कहीं साफ होता नजर आ रहा है। साथ ही एक पंत दो काज की रणनीति अपनाते हुए भाजपा ने इस निर्णय से विपक्षियों से उनका मुद्दा भी छीन लिया और महागठबंधन में दरार भी फैदा कर दी।

बिहार चुनाव में भाजपा को होगा सीधा फायदा

जातिगत जनगणना के फैसले से भाजपा को सीधा फायदा इस साल होने वाले बिहार चुनाव में होता नजर आ रहा है। बिहार में इस साल चुनाव है और बिहार ही जातिगत जनगणना करने वाला भारत का पहला राज्य है। ऐसे में भाजपा का यह निर्णय जहां एक ओर बिहार के लोगों में सरकार के प्रति विश्वास पैदा करने का काम करेगा। वहीं बिहार के सीएम नीतीश कुमार को भाजपा से जोड़े रखने में मदद करेगा। क्योंकि पिछले बिहार चुनाव में इसी मुद्दे पर नीतीश कुमार ने महागठबंधन का गठन किया था।

यूपी के विधानसभा चुनाव में अल्पसंख्यकों को साधने की कोशिश

उत्तर प्रदेश में 2027 में विधानसभा चुनाव होने है। ऐसे में भाजपा किसी भी कीमत पर 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजे जैसा परिणाम यूपी में नहीं लाना चाहती है। 24 के आम चुनाव में यूपी के जो नतीजे आए उसने भाजपा को बड़ा झटका दिया था। जिसके बाद यूपी के अल्पसंख्यकों को साधने के लिए भाजपा ने यह पेंच खेला है। क्योंकि जातिगत जनगणना के नतीजों से फायदा अल्पसंख्यकों को होना तय है। जानकारों के मुताबिक भाजपा बस पिछड़े वर्ग के उन लोगों को विश्वास दिलाना चाहती है कि भारतीय जनता पार्टी आरक्षण के खिलाफ नहीं है। ताकि उनका वोट जो खिसक गया था वह भाजपा को फिर से मिले।

भाजपा ने विपक्ष से छीना उसका सबसे बड़ा मुद्दा

कांग्रेस, सपा, बसपा समेत अन्य विपक्षी पार्टियां लंबे समय से जातिगत जनगणना कराने की मांग कर रही थी। और इस मुद्दे को जनता के बीच ले जाकर भाजपा को घेराना चाहती थी। लेकिन भाजपा ने उनसे यह हक भी छीन लिया। नेता प्रतिपक्ष राहुंल गांधी ने तो यह तक कह दिया था कि जब वह सत्ता में आएंगे। तब जातिगत जनगणना जरूर कराएंगे । वो अलग बात है कि स्थिर एनडीए की मोहन सरकार 2011 में जातिगत जनगणना नहीं करा पाई। वहीं आरजेडी के तेजस्वी यादव भी इस मुद्दे पर अपनी राजनीति कर रहे थे। अखिलेश यादव भी कई बार इस मुद्दे का समर्थन करते नजर आए है।

भापजा के फैसले से विपक्ष में शुरू हुई टकरार

भाजपा के जातिगत जनगणना का फैसला लेते ही विपक्षी पार्टियों में इसका क्रेडिट लेने की होड़ मच गई है। लालू यादव इसे अपनी 30 साल पुरानी जीत बता रहे है। तो कांग्रेस इस अपने दबाव का परिणाम मान रहीं है। जिसके बाद से ही विपक्षी पार्टियों की एकता संकट में नजर आ रही है। कांग्रेस ने जहां केंद्र सरकार से अपील किया है कि वह जातिगत जनगणना के लिए तेलंगाना मॉडल को आदर्श बनाए। कांग्रेस का कहना है कि यह आदर्श मॉडल है। जिसमें जनता की राय लेकर काम किया गया है। पहले ही राहुल बिहार के जातिगत जनगणना को फर्जी बात चुके है।

पहलगाम आतंकी हमले को लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच जंग के हालात बने हुए हैं, इस बीच केंद्र की मोदी सरकार ने देश में जातीय जनगणना कराने का ऐलान कर दिया है. इस घोषणा के कई मायने भी हैं क्योंकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव समेत तमाम विपक्षी दल लगातार इस मुद्दे को लेकर मुखर बने हुए थे. यहीं नहीं बीजेपी की कई सहयोगी दलों से भी जातीय जनगणना की मांग की जा रही थी. इस फैसले के बाद बीजेपी ने विपक्ष के एक बड़े सियासी मुद्दे को भी छीन लिया है.

 

बुधवार को केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने ऐलान किया कि देश में जातीय जनगणना कराई जाएगी. इस फैसले को मोदी सरकार का बड़ा मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है. विपक्ष भले ही इसे अपनी जीत के तौर पर दिखा रहा हो लेकिन हकीकत तो ये है कि इस ऐलान के बाद विरोधियों के हाथ से ये बड़ा मुद्दा भी छिन गया है. बिहार विधानसभा चुनाव से पहले केंद्र सरकार के इस फैसले का लिटमस टेस्ट भी हो जाएगा.

विपक्ष के हाथों से छीना अहम मुद्दा
यूपी में समाजवादी पार्टी हो या बहुजन समाज पार्टी इन दलों की नींव ही जिसकी जितनी भागीदारी उसकी उतनी हिस्सेदारी के आधार पर हुई थी. वहीं लोकसभा चुनाव से कांग्रेस नेता राहुल गांधी इस मुद्दे को पूरे जोर-शोर से उठा रहे थे. जिसका फायदा भी चुनाव में सपा और कांग्रेस को देखने को मिला. जिसके बाद बीजेपी के अंदर खाने से भी जातीय जनगणना कराए जाने की मांग उठ रही थी. अखिलेश यादव तो लगातार पीडीए के बहाने भाजपा को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे. कई बार उन्होंने जाति विशेष के लोगों को सरकार का ख़ास समर्थन होने का आरोप तक लगाया.

अखिलेश यादव ने यहां तक कहा कि वो यूपी में जिलेवार पीडीए और ग़ैर पीडीए अधिकारियों का डाटा जारी करेंगे. कई जिलों में तो उन्होंने इसकी सूची भी जारी की थी. जिससे बीजेपी दबाव में दिख रही थी. बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी जातीय जनगणना के समर्थन में अपनी आवाज बुलंद की. एनडीए की सहयोगी अनुप्रिया पटेल, ओम प्रकाश राजभर और संजय निषाद भी इसके समर्थन दिखाई दे रहे थे, जिसके बाद बीजेपी को इस बात का एहसास हो गया कि अगर अब इस पर फैसला नहीं लिया गया तो कई वर्गों का वोट उनसे छिटक सकता है.

भाजपा ये कतई नहीं चाहती कि उनके खिलाफ समाज में कोई अवधारणा बने या लोगों के बीच ये संदेश जाए कि सरकार उनके हितों की अनदेखी कर रही है. लेकिन अब इस फैसले के बाद सरकार ने विपक्ष के मुद्दे की धार को खत्म कर दिया है. इससे बीजेपी को फायदा होगा और ये आरोप भी खत्म हो जाएगा कि बीजेपी आरक्षण विरोधी है.

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