Wednesday, July 16, 2025
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मेरा भारत: अभूतपूर्व विलक्षण,ये है वास्तविक भारतीय

वर्ष 1979 में
जाधव नाम का यह शख्स अपनी 10 वीं की परीक्षा देने के बाद अपने गाँव में ब्रह्मपुत्र नदी के बाढ़ का पानी उतरने पर इसके बरसाती भीगे रेतीले तट पर घूम रहा था।
तभी इसकी नजर लगभग 100 मृत सांपों के विशाल गुच्छे पर पड़ी। इसके बाद वह आगे बढ़ता गया तो इसने देखा पूरा नदी का किनारा मरे हुए जीव जन्तुओं से अटा पड़ा है एक मरघट का सादृश्य था।
मृत जीवों के शवों के कारण पैर रखने की जगह नही थी। इस दर्दनाक सामूहिक निर्दोष मौत के दृश्य ने किशोर जाधव के मन को झकझोर दिया।
हज़ारो की संख्या में निर्जीव जीव जन्तुओ की निस्तेज फटी मुर्दा आँखों ने जाधव को कई रात सोने न दिया। गाँव के ही एक आदमी ने चर्चा के दौरान विचलित जाधव से कहा जब पेड़ पौधे ही नही उग रहे हैं, तो नदी के रेतीले तटों पर जानवरों को बाढ़ से बचने का आश्रय कहाँ मिले?
जंगल के बिना इन्हें भोजन कैसे मिले? यह बात जाधव के मन को चीर गई उसने प्रण किया कि जानवरों को बचाने पेड़ पौधे लगाने होंगे।
50 बीज और 25 बांस के पेड़ लिए 16 साल का जाधव पहुंच गया नदी के रेतीले किनारे पर रोपने।
ये बात आज से 35 साल पुरानी है।
वह दिन का दिन था और आज का दिन। क्या हम कल्पना कर सकते हैं कि इन 35 सालों में जाधव ने 1360 एकड़ भूमि पर एक सघन जंगल बिना किसी सरकारी मदद के खड़ा कर डाला।
क्या हमें भरोसा होगा कि एक अकेले आदमी के लगाये उस जंगल में
5 बंगाल टाइगर,100 से ज्यादा हिरण, जंगली सुअर, 150 जंगली हाथियों का झुण्ड, गेंडे और अनेक जंगली पशु शांति से घूम रहे हैं, इनमें सांप भी जिनको इस अद्भुत कर्मयौद्धा ने इस जंगल की शान बनाया।
जंगल का क्षेत्रफल बढ़ाने सुबह 9 बजे से पांच किलोमीटर साईकल से जाकर नदी पार करता और दूसरी तरफ वृक्षारोपण कर फिर सांझ ढले नदी पार कर साईकल से
5 किलोमीटर तय कर घर वापिस घर आता।
इनके लगाये इस जंगल में में कटहल, गुलमोहर, अन्नानाश, बांस, साल, सागौन, सीताफल, आम, बरगद, शहतूत, जामुन, आडू और कई औषधिय पौधे हैं।
आश्चर्यजनक और दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह है कि इस असम्भव को सत्य कर्म को कर दिखाने वाला यह साधक पांच साल पहले तक देश में अनजान था।
यह कर्मयौद्धा अपनी धुन में अकेला आसाम के जंगल में साइकिल पर पौधो से भरा एक थैला लिए अपने बनाए जंगल में अकेला अपनी धून में काम कर रहा था। सबसे पहले वर्ष 2010 में देश की नजर में तब आया जब वाइल्ड फोटोग्राफर
“जीतू कलिता” ने इन पर डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाई “The Molai Forest”
यह फिल्म देश के नामी विश्वविद्यालयों में दिखाई गयी। दूसरी फिल्म आरती श्रीवास्तव की “Foresting Life” जिसमें जाधव की जिन्दगी के अनछुए पहलुओं और परेशानियों को दिखाया।
तीसरी फिल्म “Forest Man” जो विदेशी फिल्म महोत्सव में भी काफी सराही गई।
एक अकेले व्यक्ति ने वन विभाग की मदद के बिना, किसी सरकारी आर्थिक सहायता के बगैर पर्यावरण की रक्षा हेतू ये किया।
जो इतने पिछड़े इलाके था से कि उसके पास पहचान पत्र के रूप में “राशन कार्ड” तक नहीं था, उसने हज़ारों एकड़ में फैला पूरा जंगल खड़ा कर दिया।
जानने वालों ने उसके इस काम पर उसका सम्मान करते हुए इस जंगल कि नाम उनके नाम पर रखा।
आसाम के इस जंगल को
“मिशिंग जंगल” कहा जाता हैं ।
(जाधव आसाम की मिशिंग जनजाति से हैं)। जीवन यापन करने के लिए उसने गाय पाल रखी हैं। शेरों द्वारा आजीविका के साधन उनके पालतू पशुओं को खा जाने के बाद भी जंगली जानवरों के प्रति इनकी करुणा कम न हुई। उसका मानना और कहना है कि शेरों ने मेरा नुकसान किया क्योंकि वो अपनी भूख मिटाने के लिए खेती करना नहीं जानते।
आप जंगल नष्ट करोगे वो आपको नष्ट करेंगे।
एक साल पहले महामहिम “राष्ट्रपति” द्वारा देश के चतुर्थ सर्वोच्च नागरिक सम्मान “पद्मश्री” से अलंकृत होने वाले जाधव आज भी आसाम में बांस के बने एक कमरे के छोटे से कच्चे झोपड़े में रहते हैं और अपनी पुरानी में दिनचर्या लीन हैं।
तमाम सरकारी प्रयासों, वृक्षारोपण के नाम पर लाखो रुपये के पौधों की खरीदी करके भी ये पर्यावरण, वन-विभाग वो मुकाम हासिल न कर पाये जो एक अकेले की इच्छाशक्ति ने कर दिखाया। साईकिल पर जंगली पगडंडियों में पौधों से भरे झोले और कुदाल के साथ हरी-भरी प्रकृति की अनवरत साधना में ये निस्वार्थ पुजारी बन अपनी साधना में लीन है।
तो कहा जा सकता है कि कभी कभी “अकेला चणा भाड़ फोड़ ही नहीं सकता चकनाचूर भी कर सकता है।”
हजारों  प्रणाम नतमस्तक।
साभार।

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