Tuesday, April 22, 2025
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9 साल में अपनी phd पूरी करने वाला कन्हैया कुमार,अपने मालिक राहुल गांधी जैसा ही निकला

वैसे तो वामपंथी होना कोई ख़ास बुरी बात नहीं है, लेकिन किसी का मूर्ख और वामपंथी एक साथ होना ऐसा दुर्लभ संयोग बनाता है कि देवता भी हैरत में पड़ जाते हैं। ‘आजादी-आजादी’ फेम कॉन्ग्रेसी हो चुके वामपंथी कन्हैया कुमार एक ऐसे ही दुर्लभ व्यक्ति हैं। वह ये बात समय-समय पर सिद्ध भी करते रहते हैं। इसी कड़ी में उन्होंने अपने गृहराज्य बिहार पर एक बयान दिया है।

कन्हैया कुमार ने एक नई थ्योरी गढ़ी है। कन्हैया कुमार ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया है कि बिहार में भारतमाला परियोजना की सड़कें राज्य का पानी लूटने को बनाई जा रही हैं। कन्हैया का पूछना है कि बिहार में पहले उद्योग क्यों नहीं आए और अब छोटे निवेश आ रहे हैं। कन्हैया ने कहा है कि सड़कों की कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने सड़कें बनाने को एक साजिश करार दिया है।

मूर्खता की वैसे तो कोई सीमा नहीं होती लेकिन दो-तीन ऐसी बातों के बाद आदमी को चुप हो जाना चाहिए। हालाँकि, कन्हैया कॉन्ग्रेसी हैं और उनसे ऐसी कोई भी उम्मीद बेकार है। आगे कन्हैया एकाध कारोबारियों का नाम लिया और बिहार के खिलाफ साजिश रचने की बात कही।

कन्हैया का कहना है कि बिहार के पास बहुत पानी है, इसलिए यहाँ सड़कें बनाई जा रही हैं। पहली बात तो यह बचकाना तर्क है। और अगर आँकड़ों पर नजर डाली जाए तो 2023 में सामने आई जल शक्ति मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि बिहार में अभी 44% भूजल का दोहन हो चुका है, जबकि बिहार में कोई बड़ा औद्योगिक आधार नहीं है।

बिहार कन्हैया कुमार
बिहार में अब तक 44% पानी का दोहन ही हुआ है

यही रिपोर्ट बताती है कि गुजरात, जहाँ औद्योगिक ढाँचा मजबूत है, वहाँ भी यह स्तर 51% तक ही पहुँचा है। केवल हरियाणा, पंजाब और राजस्थान ही ऐसे राज्य हैं, जहाँ भूजल का दोहन 100% से अधिक हुआ है। ऐसे में कोई बिहार के पानी पर क्यों नजर डालेगा। एकाध राज्यों को छोड़ दिया जाए, तो पूरे देश की ही स्थिति एक सी ही है।

भारत में वामपंथियों का प्रिय शगल रहा है कि वह किसी भी तरह के विकास को गाली दें। इसी क्रम में कन्हैया ने भारतमाला परियोजना के तहत बनी सड़कों को भी कोसा और प्रश्न पूछा है कि यह क्यों बन रही हैं और इससे बिहार में कोई इंडस्ट्री नहीं आएगी।

कन्हैया को पता होना चाहिए कि बिहार ही नहीं बल्कि किसी भी जगह उद्योग-धंधे लगने की कुछ शर्तें होती हैं। जैसे जहाँ उद्योग-धंधा लगना है, वहाँ के लिए एक सड़क होनी चाहिए और आज के समय में तो हाइवे होना चाहिए। बिजली की सप्लाई होनी चाहिए, स्थायी नीतियाँ होनी चाहिए और क़ानून व्यवस्था ठीक होनी चाहिए। लेकिन सबसे पहली शर्त सड़क है।

जब सड़क नहीं होगी तो भला फैक्ट्री लगाने वाले कैसे पहुँचेगें, माल कैसे पहुँचेगा। और किसी तरह फैक्ट्री लग भी जाए तो उसका माल कैसे बाहर जाएगा। कन्हैया कुमार का कहना है कि जब फैक्ट्री लगनी थी, तब नहीं लग पाई। क्या वह यह स्पष्ट करना चाहेंगे कि इस ‘तब’ में बिहार में कौन राज कर रहा था।

तब यानी 1950-2005 तक तो मोटे तौर पर कॉन्ग्रेस और लालू का ही शासन बिहार में था। कॉन्ग्रेस ने ही बिहार के उद्योग धंधों की दुर्दशा की है। ना कॉन्ग्रेस बड़े उद्योग धंधे बिहार लाई और जिसकी संभावना भी थी, उसे भी छीन लिया। कॉन्ग्रेस ही वह पार्टी थी, जिसने भाड़ा सामान्यीकरण क़ानून लागू किया।

इस कानून के तहत जितने भाड़े में राँची से निकला खनिज पटना आता, उतने में ही वह मद्रास पहुँचता। समुद्र तट का लाभ लेते हुए इसी के चलते तमाम उद्योग-धंधे दक्षिण के राज्य चले गए। कहते हैं इस कानून के चलते ₹10 लाख करोड़ का बिहार को हुआ।

यह कानून भी 1990 में जाकर खत्म हुआ। और यह कोई रोना रोने वाली बात नहीं है, इसकी आँकड़े तस्दीक करते हैं। प्रधानमंत्री को आर्थिक सलाह देने वाली एक कमिटी की रिपोर्ट बताती है कि बिहार का देश की जीडीपी में हिस्सा 1960-61 में 7.8% हुआ करता था, वह आज 2.8 पर खड़ा है। अगर इसमें झारखंड को भी मिला लें तो यह 4.3% पहुँचता है।

कन्हैया कुमार बिहार
देश में बिहार की जीडीपी का हिस्सा हर दशक के साथ नीचे जाता गया है

कन्हैया को कॉन्ग्रेस से प्रश्न पूछना चाहिए कि आखिर यह नीति क्यों लाई गई थी और क्यों उद्योग धंधे तबाह किए गए। आजादी के बाद तो बिहार में कोई नए उद्योग नहीं लगे, जो पहले से थे भी, कॉन्ग्रेस ने उन्हें भी बर्बाद किया। उन्हें कॉन्ग्रेस ने मरणासन्न कर दिया।

लालू प्रसाद यादव की सरकार के जंगलराज, रंगदारी और अपहरण उद्योग ने इन धंधों और पूंजीपतियों को राज्य बाहर भगाने में मदद की। यह मरणासन्न धंधों का क्रियाकर्म करने जैसा था। कॉन्ग्रेस और RJD, दोनों ही साथी रहे हैं। उद्योग-धंधे ना होने के अपराध में दोनों भागीदार हैं।

हाँ! ये बात ठीक है कि नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली NDA सरकार ने बिहार में उद्योग-धंधे लाने में कोई ख़ास सफलता नहीं हासिल की। नीतीश कुमार की सरकार कि उपलब्धि सड़कें और बिजली-पानी ही है। लेकिन बात ये है कि बिहार को इस जंगलराज ने उस गर्त में धकेल दिया था कि सड़क-पानी जैसी आधारभूत सुविधाएँ भी लोगों को मयस्सर नहीं थीं।

छोटे निवेश आने पर रोने वाले कन्हैया कुमार ये बात नहीं जानते क्या कि पहले किसी भी राज्य में छोटे ही निवेश आते हैं, क्या पहले दिन ही आने वाला निवेश ₹50 हजार करोड़ का आने लगेगा। कन्हैया की असल समस्या सड़क, उद्योग और पानी नहीं हैं। बात ये है कि उनका खुदका विकास नहीं हो रहा।

एक समय था कि मजदूरों को पूंजीपतियों और विकास के विरुद्ध भड़का कर कम्युनिस्ट नेतागिरी चमकाया करते थे। कन्हैया को बार-बार बिहार ने नकार दिया है। क्योंकि JNU में ढपली बजाना एक बात है, और चुनावी रण में उतर कर जीतना अलग बात। अच्छा होगा कि अपने राज्य के भले के लिए कन्हैया विकास के और प्रोजेक्ट माँगे, ना कि जो आ रहा है उसका भी विरोध करें।

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