26/11: तहव्वुर राणा की भारत वापसी पर सियासी भूचाल, असली मास्टरमाइंड कौन?
अमेरिका को 26/11 के मुख्य आरोपी ताहव्वुर राणा को भारत को सौंपने के लिए तैयार करना भारत सरकार, उसके कूटनीतिज्ञों और एजेंसियों का एक शानदार काम है.
यह स्पष्ट हो चुका है कि
ताहव्वुर राणा 26/11 का मास्टरमाइंड नहीं था बल्कि वह ISI की व्यूह रचना को अंजाम तक पहुंचाने के लिए उसके कुछ हिस्सों का लॉजिस्टिक्स प्रदानकर्ता मात्र था.
26/11 की साजिश भारत के राजनीतिक हलकों में ही रची गयी जो कि कॉंग्रेस पार्टी को फिर से सत्ता में लाने और भारतीय राजनीति के क्षितिज पर तेजी से उभरते हुए सितारे – गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री को रोकने के लिए था.
सहसा इसपर विश्वास करना कठिन है किन्तु धीरे-धीरे ही सही पर आजाद भारत के 60 साल से अधिक तक सत्ता के लिये घिनौनी साजिशों, राजनैतिक हत्याओं, देश से गद्दारी और आकंठ भ्रष्टाचार के कांग्रेसी इतिहास की परतें उधड़ने लगी हैं जो सिर्फ और सिर्फ कॉंग्रेस के प्रथम परिवार के इर्द-गिर्द ही घूमती रहीं हैं.
इस बार भी ऐसा ही हुआ देश की सत्ता पर परिवार की बपौती बनाए रखने के लिए 26/11 का
“ठेका” कॉंग्रेस द्वारा अहमद पटेल के माध्यम से उनके सीमा पार दोस्तों को दिया गया – और शर्मनाक तरीके से इन राजनीतिक खिलाड़ियों द्वारा हवाला के जरिए ISI को सक्रिय करने के लिये फंडिंग भी की गयी.
ऐसा उन्होंने इसलिए किया कि उन्होंने यह भांप लिया था कि तेजी से लोकप्रिय होती शाह और मोदी की जोड़ी अगर केंद्र की सत्ता पर काबिज हुई तो फिर उसकी सम्राज्ञी, युवराज या उनकी आने वाली पुश्तें फिर कभी सत्ता का मुँह नहीं देख पायेंगी.
गुजरात दंगों के नाम पर देश विदेश में मोदी का इतना हौव्वा और प्रोपेगैंडा फैलाया गया कि
कॉंग्रेस पार्टी को विदेश से उन तत्वों द्वारा भी जो “राष्ट्रवादी नेताओं” से नफरत करने के लिए जाने जाते हैं, भारी धन दिया गया.
ब्रिटिश काउंटर-इंटेलिजेंस एजेंसी MI-5 जिसका मुख्य काम आतंकवाद, नशे के कारोबार और संदिग्ध गतिविधियों नजर रखना है , से जुड़े सूत्र कहते हैं “यहां तक कि अमेरिकी ऐसेट डेविड कोलमैन हेडली जो उसकी संघीय प्रवर्तन एजेंसी DEA का मुखबिर था, को भी खेल में लाया गया.” DEA का मुख्य कार्य अमेरिका में या बाहर उसके विरुद्ध अवैध ड्रग्स की तस्करी, उत्पादन और वितरण नेटवर्क के खिलाफ कार्रवाई करना है.
राणा और हेडली ने मुंबई की रेकी को बहुत बंद लूप में रखा. इस योजना में हेडली को संभालने के लिए लश्कर-ए-तैयबा को भी लगाया गया. (हेडली का जन्म पाकिस्तानी पिता और अमेरिकी मां से हुआ था)।
ISI ने भारत में अपनी स्लीपर सेल को भी धन जुटाने के लिए सक्रिय कर दिया. और इसके बाद प्रसिद्ध फुटवियर कम्पनी “खादीम” के मालिक का अपहरण दो भाइयों”आसिफ रजा खान”, आमिर रजा खान और और सलाउद्दीन उर्फ राणा द्वारा कर लगभग दस लाख डॉलर की फिरौती (उस समय की विनिमय दर के अनुसार) ली गई और हवाला के माध्यम से पाकिस्तान भेज दी गई.
आसिफ पकड़ा गया, पर आमिर रजा खान और सलाउद्दीन उर्फ राणा पाकिस्तान भागने में सफल रहे और वर्तमान में कराची, पाकिस्तान में हैं.
रियाज़ भटकल को भी ISI द्वारा इस कार्य के लिये एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में जोड़ा गया. रियाज भटकल वही था जिसने इंडियन मुजाहिदीन का गठन किया था. हालांकि यह संगठन सीधे तौर पर तो मुंबई हमलों से नहीं जुड़ा था पर लश्कर-ए-तैयबा ने इसके नेटवर्क का इस्तेमाल किया था ऐसा भारतीय खुफिया एजेंसियों का मानना है.
दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल उन संदिग्ध IM आतंकवादियों को निशाना बना रही थी, जिनके बारे में माना जाता था कि वे 2008 दिल्ली सीरियल बम विस्फोटों में शामिल थे।
बटालाहाउस में से जुड़े मुठभेड़ के दौरन इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा शहीद हुये, दो आतंकवादी (आतिफ अमीन और मोहम्मद साजिद) भी मारे गए थे.
सोनिया गांधी ने मारे गए आतंकवादियों के प्रति सहानुभूति जताते हुए कहा कि वो रात भर रोईं और कहा कि बाटला हाउस एनकाउंटर फर्जी था,हालांकि अदालतों ने बाद में कहा कि यह वास्तविक था (हाँ उनका रोना जरूर नकली था)
कॉंग्रेस हिंदू आतंकवाद का झूठा प्रचार बनाने का फैसला करती है ताकि चुनाव जीता जा सके और वो अपने फिक्सर अहमद पटेल को आगे बढ़ने की अनुमति देती है।
उसके बाद अहमद पटेल सीमा पार के अपने ISI के दोस्तों को बढ़ने के लिये उसे फंड्स चैनल करते हैं.
ISI को हिंदू आतंकवाद की थ्योरी गढ़ने और विरोधियों को खत्म के लिए हवाला द्वारा भुगतान किया गया. अहमद पटेल के हवाला लिंक के सीधे सबूत जांच एजेंसियों के पास मौजूद हैं.
गुजरात की फार्मा कम्पनी स्टर्लिंग बायोटेक के मालिक संदेसरा बंधुओं ने अहमद पटेल की मदद से 14500 करोड़ का बैंक लोन फर्जीवाड़ा किया. ED ने 2020 में इसी मामले और हवाला लेनदेन को लेकर अहमद पटेल से 8 घंटे तक पूछताछ किया और 550 करोड़ रुपयों के अहमद पटेल को अवैध रूप से मिलने के सबूतों के बाद आयकर विभाग ने अहमद पटेल को सम्मन किया. दोनों एजेंसियों ने शिकंजा कसना शुरू किया और जब एजेंसियां उन्हें गिरफ्तार कर बड़ा खुलासा करने के करीब पहुंची तो अहमद पटेल Covid 19 संक्रमण से ग्रसित हो गये जो उनके लिये जानलेवा साबित हुआ.
ED के पास इस बात के पुख्ता सबूत थे कि संदेसरा बंधुओं ने हवाला ट्रांजैक्शन के लिये अहमद पटेल के नई दिल्ली स्थित सरकारी आवास का इस्तेमाल किया था.
पहले प्लान A के तहत गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन राज्य गृह मंत्री अमित शाह को खत्म करने का कॉन्ट्रैक्ट LeT को दिया गया और इस प्रकार ही इशरत जहां मॉड्यूल अस्तित्व में आया था.
पर वह मॉड्यूल तेज तर्रार गुजरात पुलिस द्वारा उन्हें मार कर विफल कर दिया गया. अगर यह प्लान कामयाब रहता तो 26/11 के मुंबई हमलों की नौबत ही नहीं आती.
इस माडल के फेल होने होने के बाद ISI ने अपना प्लान B 26/11 सक्रिय कर दिया जिसका उद्देश्य था हिन्दू टेरर का अफ़साना बनाने के लिये.
इसी कारण मुंबई हमले के लिये जो आतंकवादी जो पाकिस्तान से आए थे उन्होंने अपने हाथों में हिंदू पहचान कलावा पहना था और हिंदू नामों वाले नकली पहचान पत्र उनकी जेबों में थे।
योजना यह थी कि सभी आतंकवादी तो खत्म हो जाएंगे पर उनकी यह पहचान साबित करेंगी कि वो हिंदू थे जिन्होंने नरसंहार किया – इस प्रकार हिंदू आतंकवाद का झूठा प्रचार न केवल भारत बल्कि दुनिया भर में गूंजेगा और आम भारतीय – हत्याओं से घृणा करते हुए भाजपा के लिए वोट नहीं देंगे।
लेकिन वह योजना काम नहीं आई – सब एक बहादुर पुलिस कांस्टेबल तुकाराम ओंबले की वजह से जिसने अजमल कसाब को जीवित पकड़ लिया – और बाकी इतिहास है।
हालांकि इसने कॉंग्रेस पार्टी को प्रेस कॉन्फ्रेंस करने से नहीं रोका जिसमें कहा गया कि 26/11 RSS की साजिश थी। और राहुल गांधी ने उस समय अमेरिकी राजदूत से कहा कि हिंदू आतंकवाद पाकिस्तान से आने वाले LeT आतंकवाद से कहीं अधिक खतरनाक है.
जबकि खादिम फिरौती और अहमद पटेल के हवाला लिंक के सीधे सबूत मौजूद हैं, कांग्रेस के पार्टी कोष से ISI को फंडिंग का मामला अभी भी जांच के दायरे में है.
(एक विश्लेषण सूत्रानुसार)