लेटरल एंट्री पर कांग्रेस देश को गुमराह कर रही है. वैष्णव ने कांग्रेस शासन में डॉ. मनमोहन सिंह और मोंटेक सिंह अहलूवालिया की भी हुई थी लेटरल एंट्री
मनमोहन राज का प्रस्ताव मोदी सरकार में लागू,
जानिए क्या है ‘लेटरल एंट्री’ जिस पर कॉन्ग्रेस कर रही गंदी राजनीति
केन्द्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने सरकारी पदों पर लेटरल एंट्री के मामले में कॉन्ग्रेस को घेरा है। अश्विनी वैष्णव ने बताया है कि UPA सरकार ही उच्च पदों पर लेटरल एंट्री का कॉन्सेप्ट लेकर आई थी, जिसे मोदी सरकार और पारदर्शी तरीके से आगे बढ़ा रही है। कॉन्ग्रेस ने मोदी सरकार के 45 पदों पर लेटरल एंट्री करने को लेकर प्रश्न उठाए थे। नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी ने इसे UPSC की जगह RSS की भर्ती बताया था और आरोप लगाया था कि इसके जरिए सरकार SC-ST और OBC का आरक्षण छीनना चाहती है।
केंद्र सरकार ने क्या बताया?
केन्द्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने लिखा, “लेटरल एंट्री मामले में कांग्रेस का पाखंड साफ़ जाहिर है। लेटरल एंट्री की अवधारणा को UPA सरकार ही लेकर आई थी। सेकंड एडमिनिस्ट्रेटिव रिफार्म कमीशन 2005 में UPA सरकार के दौरान स्थापित किया गया था। इसके अध्यक्ष वीरप्पा मोईली थे। UPA के बनाए ARC ने उन पदों को भरने के लिए विशेषज्ञों की जरूरत बताई थी जहाँ अलग तरह के ज्ञान की जरूरत होती है। NDA सरकार ने इसी सिफारिश को लागू करने के लिए एक पारदर्शी तरीका बनाया है, और UPSC के माध्यम से निष्पक्ष भर्ती होगी।”
इससे पहले राहुल गाँधी ने इसे आरक्षण छीनने की कोशिश बताया था। राहुल गाँधी ने लिखा, “नरेंद्र मोदी संघ लोक सेवा आयोग की जगह ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’ के ज़रिए लोकसेवकों की भर्ती कर संविधान पर हमला कर रहे हैं। केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में महत्वपूर्ण पदों पर लेटरल एंट्री के ज़रिए भर्ती कर खुलेआम SC, ST और OBC वर्ग का आरक्षण छीना जा रहा है। मैंने हमेशा कहा है कि टॉप ब्यूरोक्रेसी समेत देश के सभी शीर्ष पदों पर वंचितों का प्रतिनिधित्व नहीं है, उसे सुधारने के बजाय लेटरल एंट्री द्वारा उन्हें शीर्ष पदों से और दूर किया जा रहा है।”
क्यों हो रहा विवाद?
दरअसल, हाल ही में संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने केंद्र सरकार के 45 पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला है। यह भर्ती लेटरल एंट्री के जरिए होनी थी। इस भर्ती के अंतर्गत निजी क्षेत्र, सरकारी उपक्रमों या ऐसे ही किसी संगठन में काम करने वाले भारतीयों को लिया जाना है। भर्ती के लिए आवेदन करने वालों की आयु सीमा 40-55 वर्ष रखी गई है और इन्हें 3 वर्ष की सेवाएँ देने के लिए रखा जाएगा। इसके जरिए सरकार सेमीकंडक्टर जैसे क्षेत्रों के विशेषज्ञों को भी भर्ती करना चाहती है।
भर्ती होने वाले वाले उम्मीदवार केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव जैसे पदों तैनात होंगे। इन पदों पर आवेदन के लिए 10-15 वर्षों तक का अनुभव माँगा गया है। इनकी भर्ती के लिए मात्र इनका साक्षात्कार लिया जाएगा। यह भर्ती निकालने के बाद ही विवाद पैदा हुआ। कॉन्ग्रेस ने इसे जहाँ UPSC की भर्ती प्रक्रिया का उल्लंघन बताया तो वहीं सरकार ने इसे UPA की ही नीति के अंतर्गत उठाया गया कदम बताया। इसके लिए अश्विनी वैष्णव ने UPA सरकार की सिफारिशों का हवाला दिया।
क्या है लेटरल एंट्री?
नौकरशाही मे लेटरल एंट्री सरकार के पीछे सरकार की मंशा है कि निजी क्षेत्र के लोगों के अनुभव का लाभ भी उसे मिले। ऐसे अनुभवी लोगों की भर्ती के लिए ही सरकार यह कदम उठा रही है। इसके अंतर्गत सरकार अनुभव के आधार पर इन लोगों की भर्ती करती है। इनको केंद्र सरकार में सचिव स्तर के पद और सुविधाएँ दी जाती हैं। ऐसे आवेदकों की भर्ती के लिए सरकार उनके अनुभव और साक्षात्कार के आधार पर होती है। इनकी सेवा भी नियमित अवधि के लिए होती है और संविदा पर की जाती है। वर्तमान भर्ती में यह सीमा 3 वर्ष रखी गई है।
किसने दिया था लेटरल एंट्री का सुझाव?
UPA सरकार ने वर्ष 2005 में प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) का गठन किया था। इसके अध्यक्ष केन्द्रीय मंत्री वीरप्पा मोईली थे। वीरप्पा मोईली की अध्यक्षता वाले इस पैनल ने देश के कई क्षेत्रो में सुधार को लेकर अपने सुझाव दिए थे। इन्हीं सुझावों में एक रिपोर्ट प्रशासनिक सुधारों पर आधारित थी। यह रिपोर्ट नवम्बर 2008 में केंद्र सरकार को सौंपी गई थी। लगभग 380 पन्नों की इस रिपोर्ट में लेटरल एंट्री के सुझाव का जिक्र है। इस रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर लिखा है कि ARC नौकरशाही के पदों पर लेटरल एंट्री का सुझाव देती है।
रिपोर्ट में केंद्र सरकार के कुछ पदों पर 3 वर्षों के लिए लेटरल एंट्री की बात कही गई थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि निजी क्षेत्र के लोगों को सरकार में काम करने का मौक़ा दिया जाना चाहिए और इसी तरह सरकारी अफसरों को भी बाहरी क्षेत्र में काम करने की छूट दी जानी चाहिए। लेटरल एंट्री की भर्तियो को लेकर आयोग ने कहा था कि इससे उच्च पदों पर काम करने के लिए सरकार को ऐसे लोग मिलेंगे जो उस क्षेत्र के विशेषज्ञ होंगे। इसके लिए अमेरिका और इंग्लैंड जैसे देशों का उदाहरण भी दिया गया था।
कब हुई लेटरल एंट्री की शुरुआत?
कॉन्ग्रेस सरकार के अलावा नीति आयोग ने भी 2017 में ऐसी ही सिफारिश की थी। नीति आयोग ने 40 पदों पर लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती करने की सिफारिश की थी। 2018 में मोदी सरकार ने पहली बार लेटरल एंट्री के जरिए विशेषज्ञों को सरकार में शामिल करने के लिए विज्ञापन निकाले थे। इसी क्रम में ही इस बार भी 45 अलग-अलग पदों पर भर्ती निकाली गई है।