Tuesday, October 8, 2024
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पश्चिम बंगाल: 100 से ज्यादा विधायकों की कट सकती है टिकट,आखरी दिन तक दिया जाएगा आश्वासन

पश्चिम बंगाल चुनाव में 213 सीट पर जीती तृणमूल कांग्रेस एक व्यक्ति के हाथ का खिलौना बन गयी प्रतीत होती है।माना जा रहा है कि अपने भतीजे को स्थापित करने के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सारी कमान प्रशांत किशोर के हाथ दे दी है।
भाजपा प्रभारी और राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने भी ममता बनर्जी को आत्मविश्वास विहीन और प्रशांत किशोर आश्रित बताया था।
प्रशांत किशोर के सूत्र बताते हैं कि प्रशांत की तैयारी कम से कम सौ टिकट काटने की है जिसपर नए चेहरे उतारे जाएंगे।
जिनकी सूचना उन चेहरों को पहले दे दी जाएगी लेकिन मौजूदा विधायको को आखिरी तक टिकट देने के भ्रम में रखा जाएगा।सूची भी तैयार कर ली गयी है।
पदाधिकारियों को भी बड़े पैमाने पर बदलने की रुपरेखा बना ली गयी है।

ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस जहां सत्ता में वापसी के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रखी है, वहीं बीजेपी खड़े होने की जगह मिल जाने के बाद बंगाली की धरती पर पांव जमाने के प्रयास में जी जान से जुटी हुई है. बीजेपी ने बंगाल को चार क्षेत्रों में बांट कर हर क्षेत्र के लिए प्रभारी तय कर दिये हैं – और बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष के मुताबिक, चुनाव होने तक हर महीने बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सूबे का हर महीने बारी बारी दौरा करने वाला है. हालांकि, बीजेपी नेताओं के दौरे की तारीख अभी फाइनल नहीं हुई है.

पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और उनके मंत्री सुवेंदु अधिकारी के बीच सोमवार को हुई बातचीत बेनतीजा रही और इस संबंध में जल्द ही और बैठकें होने की संभावना है। अधिकारी फिलहाल पार्टी से दूरी बनाए हुए हैं और राज्य मंत्रिमंडल की बैठकों में भाग नहीं ले रहे हैं।

सूत्रों ने यह जानकारी दी। पार्टी के सूत्रों ने बताया कि वरिष्ठ टीएमसी सांसद सौगत रॉय, जिन्हें अधिकारी के साथ बातचीत करने का काम सौंपा गया है, ने सोमवार शाम को उत्तरी कोलकाता के एक स्थान पर मंत्री से मुलाकात की और लगभग दो घंटे तक चर्चा की। एक सप्ताह में दोनों नेताओं के बीच यह दूसरी बैठक है।

ममता बनर्जी के लिए 2021 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव उनके अस्तित्व से जुड़ा माना जा रहा है. 2019 के आम चुनाव में पश्चिम बंगाल की 42 में से 18 लोक सभा सीटें जीत कर बीजेपी ने तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ अपनी ताकत और इरादे दोनों का इजहार कर दिया है.

आम चुनाव में बीजेपी से शिकस्त के तनाव और गुस्से के बावजूद ममता बनर्जी के हाव भाव और बात व्यवहार में काफी बदलाव महसूस किया गया है. जैसे दिल्ली विधानसभा चुनावों के दौरान बीजेपी नेताओं के बार बार उकसाने के बावजूद अरविंद केजरीवाल धैर्य के साथ अपनी बात कहते नजर आये, ममता बनर्जी के सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी काफी संयम बरतते देखा गया. ये सब प्रशांत किशोर के असर के तौर पर ही देखा जाता है. कई सार्वजनिक सभाओं में ऐसे मौके भी देखे गये कि जिन चीजों पर वो गुस्से से लाल हो जाती थीं, ममता बनर्जी मुस्कुराते हुए सबसे आगे बढ़ कर मिलती देखी गयीं – और ये सिलसिला आगे भी देखने को मिल सकता है. जाहिर है ममता बनर्जी के पास भी प्रशांत किशोर का फायदा उठाने का अभी पूरा मौका है.

प्रशांत किशोर को तृणमूल कांग्रेस के चुनाव अभियान से जोड़ने वाले अभिषेक बनर्जी बताये जाते हैं. अभिषेक बनर्जी तृणमूल कांग्रेस सांसद हैं और ममता बनर्जी के भतीजे हैं. ममता बनर्जी ने अपनी मदद के लिए अभिषेक बनर्जी को पार्टी के काम में लगा रखा है, मालूम नहीं वो भी ममता बनर्जी के लिए कितने मददगार साबित होते हैं – क्योंकि अभिषेक बनर्जी की ताकत और कमजोरी दोनों ही ममता बनर्जी का भतीजा होना है और ये बात टीएमसी से सीनियर नेताओं को भी वैसी ही लगती होगी जैसी बीएसपी में मायावती के रिश्तेदार आकाश आनंद को लेकर महसूस होती होगी.

टीएमसी विधायक नियामत शेख तो सीधे सीथे पब्लिक मीटिंग में प्रशांत किशोर का नाम लेकर हमला बोल रहे हैं, ‘क्या हमें प्रशांत किशोर से राजनीति सीखने की जरूरत है? अगर पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस को झटका लगता है तो इसके लिए सिर्फ प्रशांत किशोर ही जिम्मेदार होंगे…’

टीएमसी के लेटेस्ट बागी नेता शुभेंदु अधिकारी के मामले में भी नियामत शेख प्रशांत किशोर यानी PK को दोषी बता रहे हैं, ‘सभी परेशानियों की वजह प्रशांत किशोर हैं… शुभेंदु अधिकारी ने मुर्शिदाबाद में पार्टी को मजबूत किया – और अब उनसे बात करने वाले नेताओं पर ऐक्शन लिया जा रहा है.’

शुभेंदु अधिकारी की बगावत ममता बनर्जी के लिए फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है – ऊपर से बीजेपी की तरफ से पार्टी में खुले दिल से स्वागत का पासा भी भारी पड़ रहा है. शुभेंदु अधिकारी कुछ समय से सत्ता और संगठन दोनों से दूरी बनाकर चल रहे हैं. खुलेआम बयानबाजी और बैठकों का बहिष्कार कर शुभेंदु अधिकारी ने अपने इरादे जाहिर कर दिये हैं और यही वजह है कि प्रशांत किशोर और ममता बनर्जी मिल कर उनको मनाने में जुटे हुए हैं.

प्रशांत किशोर तो शुभेंदु अधिकारी से मिलने उनके घर भी पहुंचे थे और मुलाकात न होने पर उनके पिता को अपना मैसेज देकर आ गये थे. हालांकि, अब खबर आ रही है कि शुभेंदु अधिकारी से प्रशांत किशोर का संपर्क हो गया है.

लेकिन शुभेंदु अधिकारी तेवर कम होते नहीं दिखे हैं. मैदान में डंके की चोट पर खुली चुनौती देते हुए शुभेंदु अधिकारी कहते हैं – ‘मैं कड़ी मेहनत से ऊंचाई तक पहुंचा हूं… मैं निर्वाचित नेता हूं… मैं चयनित या नामित नेता नहीं हूं.’

लग तो ऐसा रहा है कि अभिषेक बनर्जी को तो टीएमसी नेता पहले से ही झेल रहे थे, प्रशांत किशोर उनके साथ मिल कर डेडली कॉम्बो साबित हो रहे हैं. शुभेंदु अधिकारी, नियामत शेख, मिहिर गोस्वामी और सौगत रॉय की चिंता साफ साफ समझ आ रही है – और मान कर चलना होगा बीजेपी तो ऐसे ही मौके के इंतजार में बैठी होगी.

पश्चिम बंगाल चुनाव से पहले बीजेपी में ममता बनर्जी के पुराने साथी मुकुल रॉय को ज्यादा अहमियत दी जा रही है. असल में, मुकुल रॉय के टीएमसी संगठन में गहरी पैठ मानी जाती है, हालांकि, ये सब भी ममता बनर्जी के करीबी होने के चलते हुआ होगा. टीएमसी छोड़ कर बीजेपी में आने के बाद भले ही मुकुल रॉय कार्यकर्ताओं के बीच असरदार न रहे हों, लेकिन उनसे संपर्क कर, पुरानी बातें और दर्द शेयर कर उनके मन की आग तो भड़का ही सकते हैं – और चुनावों से पहले बीजेपी को इससे ज्यादा भला क्या चाहिये?

प्रशांत किशोर अपनी फील्ड के अकेले सफल ब्रांड के तौर पर स्थापित हो चुके हैं और एक-दो प्रोजेक्ट फेल हो जाने पर भी उनकी सेहत पर कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला, जैसे 2017 में यूपी चुनाव में कांग्रेस के साथ हुआ – पश्चिम बंगाल में प्रशांत किशोर के काम को लेकर हो रहा विरोध ममता बनर्जी की राह मुश्किल और बीजेपी की राह आसान करता नजर आ रहा है.

 

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