Sunday, November 10, 2024
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EVM को किसी का बाप (जिंदा हो या मरा) भी हैक नही कर सकता,सारे पढ़े लिखे और जाहिल मुंह चलाने वालों को खुली चुनौती….

लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे आने के साथ ही ईवीएम हैकिंग का भूत एक बार फिर से बाहर आ गया है.

नई दिल्ली. लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे आने के बाद ईवीएम हैकिंग का भूत एक बार फिर से बाहर निकल कर सामने आ गया है. पिछले कुछ सालों से ईवीएम को लेकर राजनीतिक दलों खासकर विपक्षी पार्टियां लगातार सवाल उठाती रही हैं. ताजा विवाद टेस्ला के मालिक एलन मस्क और कांग्रेस नेता राहुल गांधी के ईवीएम पर उठाए गए सवालों के बाद पैदा हुआ है. साथ ही मुंबई पुलिस के शिवसेना शिंदे गुट के सांसद रविंद्र वायकर के रिश्तेदार के खिलाफ ईवीएम हैकिंग की शिकायत दर्ज होने के बाद एक बार फिर से देश में ईवीएम हैकिंग का मामला तूल पकड़ लिया है. ऐसे में प्रसार भारती के पूर्व सीईओ और आईआईटी बॉम्बे से पास आउट शशि शेखर वेमपति ने
ईवीएम से जुड़ी सारी गलतफहमियों को एक-एक दूर कर देते हैं.

क्या ईवीएम हैकिंग संभव है? क्या AI से EVM हैक हो सकती है? ईवीएम को अनलॉक करने के लिए क्या कोई OTP लगता है?
भारत में इस्तेमाल हो रहा ईवीएम किसी भी नेटवर्क कनेक्टिविटी से जुड़ नहीं सकता है, क्योंकि इसका डिजाइन ही इस तरह से तैयार किया गया है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करके भी हैकर्स हैक नहीं कर सकते. ओटीपी का उपयोग करके अनलॉक करने की भी गुंजाइश नहीं है. इन सारे मुद्दों को सुप्रीम कोर्ट में बताया जा चुका है. राजनीतिक दलों और कुछ निहित स्वार्थ वाले वकीलों को ईवीएम की निष्पक्षता पर सवाल उठाना टेक्नोलॉजी से ज्यादा भारतीय लोकतंत्र को कमजोर करना है. भारत में जो लोग ईवीएम पर सवाल उठा रहे हैं वे विदेशी निहित स्वार्थों के खातिर उनके हाथों में खेल रहे हैं.

 

ईवीएम के मुद्दे पर टेस्ला के मालिक एलन मस्क ने क्यों सवाल उठाए? क्या एलन मस्क को भी टेक्नोलॉजी की समझ नहीं है?ईवीएम पर एलन मस्क की टिप्पणी भारत के संदर्भ में नहीं है. मस्क की ईवीएम पर कई गई टिप्पणियां अमेरिकी ईवीएम के संदर्भ में हैं. मैं आपको बता देना चाहता हूं कि पश्चिम के अधिकांश हिस्सों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग या तो उन मशीनों पर निर्भर होती है जो नेटवर्क से जुड़ती हैं या इंटरनेट आधारित होती हैं. मस्क की टिप्पणियां उसी के संदर्भ में है. ये भारत के लिए प्रासंगिक नहीं हैं. मुझे नहीं लगता है कि उन्हें भारत में उपयोग की जाने वाली ईवीएम के बारे में किसी तरह की जानकारी है.
क्यों दुनिया के दूसरे देशों में ईवीएम से चुनाव नहीं कराए जाते? जबकि, पहले इन देशों में ईवीएम से चुनाव कराए जाते थे.देखिए, चुनावों के संचालन में भारत और अन्य पश्चिमी लोकतंत्रों के बीच कोई तुलना नहीं है. पश्चिम के देश जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका के कुछ हिस्सों में वोट डालने के लिए फोटो आईडी दिखाने की भी आवश्यकता नहीं है. जबकि, भारत में ऐसा नहीं है. भारत में मजबूत चुनावी प्रक्रिया है जिस पर हमें गर्व करना चाहिए. भारत अब विश्व का नेतृत्व कर सकता है और उसे रास्ता भी दिखा सकता है. देखिए, कैसे आईपीएल आज क्रिकेट का वैश्विक रोल मॉडल है. देखिए कैसे UPI आज डिजिटल भुगतान के लिए एक वैश्विक रोल मॉडल है. कोविड-19 के दौरान भारतीय टीकों ने कैसे विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाई? अब समय आ गया है कि हम सत्यापन के लिए हमेशा पश्चिम की ओर देखने के बजाय अपनी उपलब्धियों पर भी गर्व करें.
भारत से भी अधिक सक्षम देशों ने ईवीएम पर बैन लगाकर चुनाव की विश्वसनीयता बनाया है. जनता ईवीएम से चुनाव नहीं चाहती तो फिर जबरदस्ती क्यों थोपा जा रहा है?जैसा कि आपको बता चुके हैं कि ईवीएम के उपयोग पर भारत और पश्चिमी लोकतंत्रों के बीच कोई तुलना नहीं है. उनका मॉडल इंटरनेट आधारित है या नेटवर्क कनेक्टिविटी की आवश्यकता है. भारत के चुनावों में सत्ता का सुचारू परिवर्तन देखा गया है. चुनाव परिणामों की वैधता पर कोई सवाल नहीं है. यहां तक कि संयुक्त राज्य अमेरिका के विपरीत, जहां पिछले राष्ट्रपति चुनावों के नतीजे कई हफ्तों तक विवादित रहे थे और यहां तक कि उनकी संसद (यूएस कैपिटल) पर भी आक्रमण होने के बावजूद कोई सहज परिवर्तन नहीं हुआ था. भारत में ईवीएम का उपयोग और भारतीय लोकतंत्र की ताकत दुनिया के बाकी हिस्सों के लिए एक संकेत है कि कैसे लोकतंत्र एक अरब के पैमाने पर काम कर सकता है और चुनावी लोकतंत्र के माध्यम से सामाजिक विकास हासिल किया जा सकता है.

ईवीएम हैकिंग के लिए चुनाव आयोग ने कई बार मौका दिया, लेकिन कोई हैक नहीं कर पाया. ऐसे में राजनीतिक दलों में कैसे विश्वास जगाया जाए?राजनीतिक दलों के भीतर ईवीएम पर विश्वास की कमी का कोई सवाल ही नहीं है. यदि आत्मविश्वास नहीं होता तो वे चुनाव में भाग नहीं लेते और न ही जीते हुए चुनाव में सरकार बनाते. हमें जो लग रहा है वह साजिश के सिद्धांतों को जीवित रखने के लिए सरासर राजनीतिक अवसरवाद और पाखंड है. यह कुछ निहित विदेशी हितों के अनुकूल है क्योंकि यह भारत और भारतीय लोकतंत्र को पीछे रखता है. जहां तक भारत के राजनीतिक दलों का सवाल है ईवीएम पर उनका भरोसा उन राज्यों के चुनावी नतीजों से जाहिर होता है, जहां उन्होंने भारी जीत हासिल की है.

जब अंतरिक्ष में लाखों मील दूर स्थित उपग्रह को धरती से कंट्रोल किया जा सकता है तो इलेक्ट्रॉनिक्स डिवाइस ईवीएम मशीन को क्यों नहीं किया जा सकता?इस तरह के बेतुके प्रश्न वैज्ञानिक सोच की बुनियादी कमी को दर्शाते हैं. सवाल पूछना बहुत जरूरी है. ऐसे सवालों का जवाब वैज्ञानिक तरीके से तलाशना भी जरूरी है. इसका उस चीज से कोई लेना-देना नहीं है, जिसे हम आमतौर पर ‘शिक्षा’ कहते हैं. इसका संबंध सामान्य ज्ञान से है और यह सामान्य ज्ञान है जो हमें यह बताना चाहिए कि भारत में निष्पक्ष चुनाव परिणाम सुनिश्चित करने के लिए ईवीएम के पास पर्याप्त जांच और सुरक्षा उपाय हैं. यदि ऐसा नहीं होता तो हमारे पास चुनाव नहीं होते जहां एक पार्टी एक राज्य में सत्ता में आती है और दूसरे राज्य में सत्ता से बाहर हो जाती है.

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