क्रिकेट की दुनिया में नामुमकिन को बिहार के लाल ने मुमकिन कर दिया। बिहार का समस्तीपुर जिला। ब्लॉक का नाम है ताजपुर। मोतीपुर गांव में सुबह 3 बजे से एक मां अपने 8 साल के बेटे के लिए नाश्ता बना रही है। वक्त कम है क्योंकि बेटे को बस पकड़नी है। दरवाजे पर पिता इंतज़ार कर रहे हैं। उन्हें लगभग 100 किलोमीटर की दूरी तय करनी है। पटना पहुंचना है। ग्लोबल वार्मिंग अभी गांव तक नहीं पहुंची थी, इसलिए महीनों का मान रखते हुए मौसम अक्टूबर में भी पर्याप्त ठंड है।
पटना के स्टेडियम में लड़का 3 घंटे तक बल्ला भांज रहा है। बिना रुके, बिना थके। भूख क्या है, नहीं पता। थकान क्या है, अंदाजा ही नहीं है। 30 मिनट सुस्ताने के बाद प्रक्रिया दोबारा शुरू होती है। सूरज ढल रहा है। घर लौटने का वक्त है। 100 किलोमीटर वापस मोतीपुर भी आना है। इंतजार करती मां और हफ्ते के 4 दिन 200 किलोमीटर का शारीरिक श्रम करते किसान पिता को उम्मीद है कि बेटे की मेहनत एक दिन रंग लाएगी। यह सिलसिला पिछले कुछ सालों से लगातार चला आ रहा है।
संघर्ष एक ऐसे राज्य में जारी था, जहां खिलाड़ियों के लिए अवसरों के साथ-साथ बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर की भी भारी कमी है। एक ऐसे राज्य में जहां लड़के-लड़कियों को खेलने के लिए पलायन करना पड़ता है वहां एक परिवार का इतना साझा संघर्ष क्या वाकई फलीभूत हो सकता था? लेकिन…
होके मायूस न आंगन से उखाड़ो पौधे,
धूप बरसी है तो बारिश भी यहीं पर होगी
नियति सब देख रही थी और रच रही थी। अब वही लड़का सिर्फ 14 साल की उम्र में दुनिया की सबसे बड़ी क्रिकेट लीग में खेलता हुआ नजर आ रहा है। यह कहानी ब्रायन लारा के संभवतः सबसे बड़े फैन और सिर्फ 14 साल की उम्र में राजस्थान रॉयल्स के लिए पहला मैच खेल रहे वैभव सूर्यवंशी की है। इस लड़के का IPL की किसी टीम में जगह बनाना न सिर्फ एक परिवार के संघर्ष का सफल होना है बल्कि पूरी तरह सड़ चुके सिस्टम के खिलाफ एक स्पोर्ट्समैन का प्रोटेस्ट है। बिहार में खेल के प्रशंसकों, जरा सिस्टम के प्रति जोरदार हुंकार तो भरो। मेरे अजीज मित्र आदर्श भाई की कलम से। 🌻❤️