Sunday, October 6, 2024
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साफ बात कर्नाटक चुनाव पर:कांग्रेस ने साध लिए मुसलमान,आदिवासी वोट,भाजपा नही जोड़ पाई हिंदुओं को, मध्य प्रदेश,राजस्थान,छत्तीसगढ़ में खतरे की घंटी,मंत्री नेता भाजपा के हवा में,सिर्फ मोदी अमित शाह के भरोसे

सिर्फ मोदी और अमित शाह जितवा दें तो ठीक नही तो
बुरे हालात हैं
मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ राजस्थान में,वरना दलालों की भरमार

भाजपा की हार का विश्लेषण भी वही लोग करेंगे जिन्होंने टिकट बांटे थे,कांग्रेस में तो गांधी परिवार सब कुछ है और आप पार्टी का मालिक केजरीवाल लेकिन भाजपा अपने मूल आधारभूत संगठनों को भूल जाती है सत्ता में आते ही,सत्ता से बाहर होते ही जहां बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद पूर्ण सक्रिय होते हैं वहीं युवा मोर्चा जैसे संगठन गाहे बगाहे ही नजर आते हैं,
सत्ता की मलाई चाटते ये मंत्री विधायक अपने यहां दलालों की भरमार कर लेते हैं जो समुदाय विशेष के ज्यादा होते हैं,शराब शबाब और कबाब की व्यवस्था करने में निपुण ,
भाजपा के नेता मान लेते हैं की हिंदू तो है ही हमारे पास कुछ बाकी अन्य जोड़ लें तो अमर हो जाएंगे,
समरसता का जो प्रयास होना चाहिए वो सत्ता में रहते बिलकुल नहीं करती भाजपा,
न सक्रिय बजरंग दल न विश्व हिंदू परिषद न हिंदू जागरण मंच पसंद आता है सत्ता में बैठे इन मंत्रियों को ये इतने सेक्यूलर बन जाते हैं की आवश्यकता पड़ने पर ये इनको सत्ता तक पहुंचाने वाले संगठनों के पदाधिकारियों तक को पुलिस प्रशासन का उपयोग कर मिटा देते हैंl

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे आ रहे हैं. अभी तक के रुझानों से साफ हो गया है कि बीजेपी की हार और कांग्रेस की सत्ता में वापसी हो रही है. कर्नाटक में इस बार जिस तरह से धार्मिक ध्रुवीकरण का दांव खुलकर खेला गया. ऐसे में सभी की नजर राज्य की मुस्लिम बहुल सीटों के चुनावी नतीजों पर है.

कर्नाटक में मुसमलानों की आबादी करीब 13 फीसदी से ज्यादा है. राज्य में लगभग 20 से 23 विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिम वोट काफ़ी महत्वपूर्ण हैं. मुस्लिम समुदाय से पिछली बार केवल 7 विधायक चुनाव जीत कर आए थे और वो सभी कांग्रेस पार्टी से थे. कांग्रेस और जेडीएस दोनों पार्टियों ने मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारा है, लेकिन मुस्लिम बनाम मुस्लिम की लड़ाई नहीं बन सकी.

कर्नाटक के 9 मुस्लिम बहुल सीटों के रुझान देखें तो आठ सीटों पर कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवार आगे चल रहे हैं जबकि एक सीट पर जेडीएस कैंडिडेट आगे है.

कांग्रेस के मुस्लिम प्रत्याशी

बेलगाम उत्तर सीट से आसिफ सेठ

बीजापुर सिटी से अब्दुल हमीद काजी साहेब मुश्रीफ

गुलबर्गा उत्तर सीट से कनीज फातिमा

बीदर सीट से रहीम खान

गंगावती सीट से इकबाल अंसारी

तुमकुर सिटी से इकबाल अहमद

शिवाजीनगर सीट से रिजवान अरशद

चामराजपेट सीट से जमीर अहमद खान

रामनगरम सीट से इकबाल हुसैन एचए

मैंगलोर सीट से यूटी अब्दुल खादर अल फरीद

नरसिम्हाराजा से तनवीर सैत

जेडीएस के मुस्लिम कैंडिडेट

दावणगेरे दक्षिण सीट से अमानुल्ला खान

हुमनाबाद सीट से सीएम फयाज

बसवकल्याण सीट से एसवाई कादरी

कर्नाटक में मुस्लिम प्रतिनिधित्व

कर्नाटक विधानमंडल में मुस्लिम समुदाय के 7 विधायक पिछली बार जीते थे जो राज्य में पिछले एक दशक में सबसे कम मुस्लिम प्रतिनिधित्व था. 2008 में राज्य में 9 मुस्लिम विधायक चुने गए थे. 2013 में 11 मुस्लिम उम्मीदवार जीते, 9 कांग्रेस से और 3 जेडीएस से जीते थे. उच्चतम मुस्लिम प्रतिनिधित्व 1978 में था, जिसमें 16 मुस्लिम जीते थे और सबसे 1983 में सिर्फ 2  मुस्लिम विधायक जीतकर आए थे.

 

 

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे का दिन है. कर्नाटक के 36 मतगणना केंद्रों पर 224 विधानसभा के वोटों की गिनती जारी है. अभी तक के रुझानों में कांग्रेस सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को करारी मात देकर पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आती नजर आ रही है. अभी तक के रुझानों में बीजेपी 80 सीटों के नीचे सिमटती हुई दिख रही है.

कर्नाटक चुनाव के रुझानों में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत के साथ ही हार और जीत के कारणों को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है. कर्नाटक में बीजेपी की करारी हार के पीछे मजबूत चेहरे का न होना और सियासी समीकरण साधने में नाकामी जैसी बड़ी वजहें रही हैं.

बीजेपी की हार के छह कारण

1. कर्नाटक में मजबूत चेहरा न होना: कर्नाटक में बीजेपी की हार की सबसे बड़ी वजह मजबूत चेहरे का न होना रहा है. येदियुरप्पा की जगह बसवराज बोम्मई को बीजेपी ने भले ही मुख्यमंत्री बनाया हो, लेकिन सीएम की कुर्सी पर रहते हुए भी बोम्मई का कोई खास प्रभाव नहीं नजर आया. वहीं, कांग्रेस के पास डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया जैसे मजबूत चेहरे थे. बोम्मई को आगे कर चुनावी मैदान में उतरना बीजेपी को महंगा पड़ा.

2- भ्रष्टाचार: बीजेपी की हार के पीछे अहम वजह भ्रष्टाचार का मुद्दा रहा. कांग्रेस ने बीजेपी के खिलाफ शुरू से ही ’40 फीसदी पे-सीएम करप्शन’ का एजेंडा सेट किया और ये धीरे-धीरे बड़ा मुद्दा बन गया. करप्शन के मुद्दे पर ही एस ईश्वरप्पा को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा तो एक बीजेपी विधायक को जेल भी जाना पड़ा. स्टेट कॉन्ट्रैक्टर एसोसिएशन ने पीएम तक से शिकायत डाली थी. बीजेपी के लिए यह मुद्दा चुनाव में भी गले की फांस बना रहा और पार्टी इसकी काट नहीं खोज सकी.

3- सियासी समीकरण नहीं साध सकी बीजेपी: कर्नाटक के राजनीतिक समीकरण भी बीजेपी साधकर नहीं रख सकी. बीजेपी न ही अपने कोर वोट बैंक लिंगायत समुदाय को अपने साथ जोड़े रख पाई और ना ही दलित, आदिवासी, ओबीसी और वोक्कालिंगा समुदाय का ही दिल जीत सकी. वहीं, कांग्रेस मुस्लिमों से लेकर दलित और ओबीसी को मजबूती से जोड़े रखने के साथ-साथ लिंगायत समुदाय के वोटबैंक में भी सेंधमारी करने में सफल रही है.

4- ध्रुवीकरण का दांव नहीं आया काम: कर्नाटक में एक साल से बीजेपी के नेता हलाला, हिजाब से लेकर अजान तक के मुद्दे उठाते रहे. ऐन चुनाव के समय बजरंगबली की भी एंट्री हो गई लेकिन धार्मिक ध्रुवीकरण की ये कोशिशें बीजेपी के काम नहीं आईं. कांग्रेस ने बजरंग दल को बैन करने का वादा किया तो बीजेपी ने बजरंग दल को सीधे बजरंग बली से जोड़ दिया और पूरा मुद्दा भगवान के अपमान का बना दिया. बीजेपी ने जमकर हिंदुत्व कार्ड खेला लेकिन यह दांव भी काम नहीं आ सका.

5- येदियुरप्पा जैसे दिग्गज नेताओं को साइड लाइन करना महंगा पड़ा: कर्नाटक में बीजेपी को खड़ा करने में अहम भूमिका निभाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा इस बार के चुनाव में साइड लाइन रहे. पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व डिप्टी सीएम लक्ष्मण सावदी का बीजेपी ने टिकट काटा तो दोनों ही नेता कांग्रेस का दामन थामकर चुनाव मैदान में उतर गए. येदियुरप्पा, शेट्टार, सावदी तीनों ही लिंगायत समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं जिन्हें नजर अंदाज करना बीजेपी को महंगा पड़ गया.

6- सत्ता विरोधी लहर की काट नहीं तलाश सकी: कर्नाटक में बीजेपी की हार की बड़ी वजह सत्ता विरोधी लहर की काट नहीं तलाश पाना भी रहा है. बीजेपी के सत्ता में रहने की वजह से उसके खिलाफ लोगों में नाराजगी थी. बीजेपी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर हावी रही, जिससे निपटने में बीजेपी पूरी तरह से असफल रही.

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