विगत शुक्रवार से अवैध रोहिंग्याओं को म्यांमार भेजने की शुरुआत हो चुकी है. मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह लगातार कहते रहे कि घुसपैठियों के चलते राज्य का माहौल बिगड़ रहा है, नशे और हथियारों की तस्करी बढ़ रही है. यहां तक कि मणिपुर में कुछ महीनों पहले हुई हिंसा के पीछे भी कहीं न कहीं घुसपैठियों के उकसावे की बात होती रही. अब अवैध रोहिंग्याओं की पहचान हो रही है ताकि उन्हें डिपोर्ट किया जाए सके.
कौन हैं रोहिंग्या और क्यों भागे म्यांमार से?
ये सुन्नी मुस्लिम हैं, जो म्यांमार के रखाइन प्रांत में रहते आए थे. बौद्ध आबादी वाले म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिम माइनॉरिटी में हैं. म्यांमार की सरकार उन्हें बांग्लादेशी प्रवासी मानती रही जो ब्रिटिश काल में किसानी के लिए उनके यहां पहुंचे. दूसरी ओर, बांग्लादेश भी कहता है कि रोहिंग्या उसके नहीं, म्यांमार के हैं. दोनों के इनकार के बीच ये ऐसा समुदाय बन गया जिसका कोई देश नहीं.
जनगणना में नहीं किया गया शामिल
आजादी के बाद म्यांमार लंबे समय तक अस्थिर रहा. वहां सैन्य शासन चलता रहा. 2 दशक पहले थोड़ी स्थिरता आने के दौरान इस देश में जनगणना हुई. इस दौरान रोहिंग्याओं को सेंसस में शामिल नहीं किया गया. कहा गया कि वे बांग्लादेश से यहां जबरन चले आए हैं और उन्हें वापस लौट जाना चाहिए. लेकिन मामला तब भी उतना जटिल नहीं हुआ था.
इस घटना के बाद हुई बड़ी हिंसा
बौद्ध आबादी के बीच मुस्लिमों को लेकर गुस्सा तब एकदम से भड़का जब रोहिंग्याओं ने एक बौद्ध महिला की बलात्कार के बाद हत्या कर दी. इसके बाद से सांप्रदायिक हिंसा शुरू हुई और रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार से खदेड़े जाने लगे. कहा तो ये तक जाता है कि आम लोग और सैनिक, दोनों ने मिलकर रोहिंग्या आबादी पर हिंसा की. उनके गांव के गांव जला दिए गए. साल 2017 में नरसंहार के बीच बड़ी संख्या में लोग भागकर बांग्लादेश पहुंच गए.
बांग्लादेश में ये समुदाय सबसे बड़ी संख्या में
इनकी आबादी कितनी है, इसका ठीक-ठाक डेटा कहीं नहीं मिलता. साल 2017 में जब रोहिंग्या यहां आने लगे तो बांग्लादेश के दक्षिण-पूर्वी तट कॉक्स बाजार में शरणार्थियों को बसाया जाने लगा. बंगाल की खाड़ी के इस लंबे समुद्री तट में शेल्टर बनने लगे. सरकार के रिफ्यूजी रिलीफ एंड रीपेट्रिएशन कमीशन के अनुसार, कॉक्स बाजार एरिया में 1 लाख 20 हजार से ज्यादा शेल्टर बने.
भारत में कितने रोहिंग्या
हमारे यहां इनकी जनसंख्या का सही आंकड़ा नहीं मिलता. UNHRC के अनुसार, यहां 21 हजार से ज्यादा आबादी है. वहीं अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्याओं की संख्या इससे कहीं ज्यादा है. कहीं-कहीं दावा है कि अकेले नॉर्थईस्ट में लगभग एक लाख लोग बस चुके होंगे. रोहिंग्या देश के कई हिस्सों समेत जम्मू-कश्मीर में भी रहने लगे हैं.
शरणार्थियों पर क्यों भड़का देश
भारत वैसे शरणार्थियों के मामले में काफी उदार रहा. रोहिंग्याओं को लेकर भी शुरुआत में रवैया नर्म ही था, लेकिन धीरे-धीरे अस्थिरता में कथित तौर पर रोहिंग्याओं का हाथ माना जाने लगा. कई देशों से संपर्क के कारण ये लोग तस्करी में लिप्त रहने लगे. अवैध स्टेटस को वैध बनाने के लिए गलत ढंग से कागज-पत्तर भी बनाए जाने लगे.
बात तब ज्यादा बिगड़ी, जब देश के कई राज्यों के मूल निवासी नाराज रहने लगे. उनका कहना है कि इनके आने से उनके अधिकार बंट रहे हैं. खासकर पिछली गर्मियों में हुई मणिपुर हिंसा में ये नाम निकलकर आया. मई में हिंसा शुरू होने से ठीक पहले सीएम एन बीरेन सिंह ने म्यांमार से बड़ी संख्या में रिफ्यूजियों के आने की बात कही थी. बहुतों को डिटेन भी किया गया था.
नॉर्थईस्ट कैसे आते हैं वे
मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश की सीमाएं म्यांमार से सटी हुई हैं. ये बॉर्डर 15 सौ किलोमीटर से भी लंबा है. दोनों ही सीमाओं पर पहाड़ी आदिवासी रहते हैं, जिनका आपस में करीबी रिश्ता रहा. उन्हें मिलने-जुलने या व्यापार के लिए वीजा की मुश्किलों से न गुजरना पड़े, इसके लिए भारत-म्यांमार ने मिलकर तय किया कि सीमाएं 16 किलोमीटर तक वीजा-फ्री कर दी जाएं. मुक्त आवागमन की ये व्यवस्था घुसपैठियों के भी काम आने लगी. वे बड़ी संख्या में सीमा पार आने लगे.
अब इसी अस्थिरता को खत्म करने के लिए अवैध रोहिंग्याओं के डिपोर्टेशन की शुरुआत हो चुकी है. इससे पहले मुक्त आवागमन को भी बंद करने का फैसला लिया जा चुका. अब दोनों देशों के बीच सीमाएं घेर दी जाएंगी.
वापस भेजने की एक और वजह
म्यांमार आर्थिक और राजनैतिक तौर पर काफी अस्थिर है. यहां समय-समय पर अलग-अलग गुटों में हिंसा होती रही. इस दौरान कमजोर गुट भागकर भारत में घुसने लगता है. कई मीडिया रिपोर्ट्स दावा करती हैं कि अकेले मिजोरम में ही हजारों रिफ्यूजी रह रहे हैं. इसके अलावा मणिपुर और बाकी नॉर्थईस्टर्न राज्यों में भी ये आबादी रहती है. ऐसे में लगातार शरणार्थियों को अपनाना देश के लिए मुश्किल ला सकता है.
बांग्लादेश भी कर सकता है डिपोर्ट
यहां भी तनाव बढ़ रहा है. लोकल्स और शरणार्थियों के बीच झड़पें आम हैं. इसी असंतोष को देखते हुए बांग्लादेश ने भी कई फैसले लिए. ऑफिस ऑफ यूनाइटेड नेशन्स हाई कमिश्नर फॉर ह्यूमन राइट्स के अनुसार कुछ साल पहले बांग्लादेश और म्यांमार के बीच एग्रीमेंट साइन हुआ. इसके तहत रोहिंग्या रिफ्यूजी धीरे-धीरे करके वापस अपने देश भेज दिए जाएंगे. कहा गया कि वहां उन्हें राखाइन प्रांत में बसाया जाएगा और रोजगार भी दिया जाएगा.