पूरे देश में रेमडेसिविर इंजेक्शन की किल्लत का हाहाकार भी जारी है। इस इंजेक्शन को लेकर कई शहरों में कालाबाजारी भी चल रही है। कोरोना मरीजों के परिजन अधिक से अधिक दाम चुकाकर भी बस रेमडेसिविर इंजेक्शन को लाने की पूरी कोशिश में लगे हैं। सामान्य लोगों में इस इंजेक्शन को लेकर खौफ भी बैठ गया है लेकिन कोरोना के हर मरीज को इस इंजेक्शन की आवश्यकता नहीं लगती है। अगली स्लाइड्स से जानिए कोरोना मरीज को कब लगाया जाता है रेमडेसिविर इंजेक्शन।
जब ऑक्सीजन लेवल कम हो
सामान्य लक्षणों वाले मरीजों को रेमडेसिविर इंजेक्शन नहीं लगाना होता है वे घर पर ही आइसोलेशन और सही देखरेख से ठीक हो सकते हैं लेकिन वे मरीज जिनमें गंभीर लक्षणों के साथ ऑक्सीजन लेवल की कमी पाई जाती है, उन्हें यह इंजेक्शन देना जरूरी हो जाता है। ऑक्सीजन लेवल जब सामान्य से 92 प्रतिशत कम हो तब इंजेक्शन दिया जाता है।
तेज बुखार उतरने का नाम न ले
बुखार कोरोना का मुख्य लक्षण है लेकिन यदि बुखार 100 डिग्री से अधिक हो और दो दिन तक तापमान कम होने का नाम कम न ले, तब रेमडेसिविर इंजेक्शन लगाना आवश्यक हो जाता है। सामान्य बुखार में इंजेक्शन की जरूरत नहीं पड़ती है, मरीज को दवा खाने से लाभ होने लगता है।
फेफड़ों में संक्रमण बढ़ जाए
कोरोना वायरस फेफड़ों पर बुरी तरह से हमला करता है। ऐसे में जिन लोगों को पहले से फेफड़ों की कोई समस्या होती है, उनपर तो यह बहुत प्रभावशाली साबित होता है। सीटी स्कैन कराने पर फेफड़ों में 25 प्रतिशत से अधिक संक्रमण नजर आता है तो चिकित्सक रेमडेसिविर इंजेक्शन लगाते हैं।
वायरस को बढ़ने से रोकता है रेमडेसिविर
कोरोना वायरस शरीर पर आक्रमण करते ही बढ़ने लगता है, वायरस बहुत तेजी से शरीर पर नकारात्मक प्रभाव दिखाता है जिससे कि लक्षण खतरनाक होने लगते हैं, फेफड़े खराब हो जाते हैं। रेमडेसिविर इंजेक्शन लगाने से वायरस का शरीर में बढ़ना रूक जाता है। गंभीर मामलों में ही इस इंजेक्शन का प्रयोग किया जाता है।
कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच केंद्र सरकार ने इस वैश्विक महामारी के इलाज में उपयोगी साबित हो रहे रेमडेसिविर इंजेक्शन और इसके कच्चे माल (एपीआइ) के निर्यात पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है। केंद्र ने रविवार को यह फैसला तब किया जब देश के कई हिस्सों में एंटी वायरल ड्रग रेमडेसिविर की कमी होने की सूचनाएं आने लगीं। कोरोना मरीजों की संख्या काफी बढ़ने के साथ ही रेमडेसिविर का इस्तेमाल भी देश के डॉक्टर बड़ी संख्या में कर रहे हैं। भारत ने आधिकारिक तौर पर पहली बार कोरोना महामारी से जुड़ी किसी दवा या इंजेक्शन के निर्यात पर रोक लगाई है। वैसे पिछले एक पखवाड़े से कोरोना की वैक्सीनों के निर्यात की रफ्तार काफी धीमी कर दी गई है।
कोरोना वैक्सीन निर्यात को लेकर विपक्षी दल भी सरकार पर लगातार हमलावर हो रहे हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय की तरफ से जारी सूचना में बताया गया कि 11 अप्रैल, 2021 तक देश में कोविड के एक्टिव मरीजों की संख्या 11.08 लाख पहुंच गई है। संख्या अभी भी बढ़ रही है। इससे कोविड से प्रभावित रोगियों के इलाज में इस्तेमाल होने वाले रेमडेसिविर इंजेक्शन की मांग काफी बढ़ गई है। इसकी मांग और बढ़ने की संभावना है। रेमडेसिविर अमेरिकी कंपनी गिलीड साइंसेज की इजाद है जिसे अभी सात भारतीय कंपनियां स्वैच्छिक लाइसेंसिंग समझौते के तहत भारत में घरेलू उपयोग और 100 से अधिक देशों में निर्यात के लिए बना रही हैं। सिप्ला लिमिटेड, डॉ.रेड्डी सहित अभी इन भारतीय कंपनियों की कुल उत्पादन क्षमता 38.8 लाख यूनिट प्रति माह है। इन सभी हालात को देखते हुए भारत सकार ने रेमडेसिविर इंजेक्शन और रेमडेसिविर एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रेडिएंट्स (एपीआइ) के निर्यात पर रोक लगा दी है।
भारत सरकार ने यह स्पष्ट किया कि हालात सुधरने तक यह रोक लगाने का फैसला किया गया है। इसके साथ ही सरकार की तरफ से देश के अस्पतालों व चिकित्सा केंद्रों पर इसकी उपलब्धता को ज्यादा पारदर्शी बनाने के लिए भी कुछ कदम उठाए हैं। मसलन, रेमडेसिविर बनाने वाली सभी कंपनियों जैसे बायोकॉन, जुबैलेंट लाइफ, कैडिला हेल्थकेयर आदि को कहा गया है कि वो अपनी वेबसाइट पर इस दवा के सारे स्टाकिस्टों व वितरकों का वितरण सार्वजनिक करें। ताकि दवा लेने वाले उन तक आसानी से पहुंच सकें। इसके साथ ही ड्रग इंस्पेक्टरों व दूसरे जांच अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि वो सूचना के मुताबिक स्टॉक का परीक्षण करें और यह सुनिश्चित करें कि किसी तरह की गड़बड़ी ना हो। अगर कहीं ब्लैक मार्केटिंग या जमाखोरी की सूचना हो तो उसके खिलाफ भी सख्त कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया है। राज्यों के स्वास्थ्य सचिवों को कहा गया है कि वो ड्रग इंस्पेक्टरों के साथ मिल कर उस आदेश के पालन को सुनिश्चित करें।