Monday, October 14, 2024
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NOTA ने औकात दिखा दी,जंगल के शेर नही,अपनी गली के कुत्ते हैं

बिहार विधानसभा चुनाव में उतरे महाराष्ट्र के क्षेत्रीय दल कोई कमाल नहीं कर पाए हैं लेकिन बिहार चुनाव में राकांपा महाराष्ट्र की अपनी सहयोगी पार्टी शिवसेना से बीस जरुर रही। हालांकि राकांपा और शिवसेना दोनों दलों का साल 2015 के चुनाव की तुलना में इस बार प्रदर्शन और खराब रहा। बिहार विधानसभा चुनाव में राकांपा ने 110 सीटों पर उम्मीदवार उतारकर 94 हजार 835 वोट हासिल किया। राकांपा को 0.23 प्रतिशत वोट मिला है। जबकि शिवसेना ने 22 सीटों पर प्रत्याशी खड़े कर केवल 20 हजार 195 हासिल किया। शिवसेना को कुल 0.05 प्रतिशत वोट मिले हैं। शिवसेना के सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई है। शिवसेना के उम्मीदवारों में से सबसे अधिक वोट कल्याणपुर सीट से पार्टी प्रत्याशी शत्रुघ्न पासवान को 3 हजार 303 वोट मिले हैं। शिवसेना को समस्तीपुर सीट पर पार्टी उम्मीदवार कुंदन कुमार को सबसे कम 230 वोट मिले हैं। वहीं साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में राकांपा ने 41 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। जिसमें राकांपा को 1 लाख 85 हजार 437 वोट मिले थे। राकांपा ने कुल 0.49 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। राकांपा की 41 में से 40 सीटों पर जमानत जब्त हो गई थी। जबकि शिवसेना ने साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में 73 सीटों पर चुनाव लड़कर 2 लाख 11 हजार 36 वोट हासिल किया था। शिवेसना को 0.55 प्रतिशत वोट मिल थे। उस चुनाव में भी शिवसेना के सभी 73 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। साल 2015 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना को राकांपा से ज्यादा वोट मिले थे।

राकांपा के राष्ट्रीय महासचिव के के शर्मा ने  बातचीत में कहा कि बिहार चुनाव में पहले ही ध्रुवीकरण हो चुका था। इसलिए राकांपा चुनाव में बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई।

पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि शिवसेना बड़े उत्साह से बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने गई थी। पर उसे तो नोटा से भी कम वोट मिले हैं।

छोटे दल भी साबित हुए बड़े फिसड्डी

महाराष्ट्र में भाजपा की सहयोगी राष्ट्रीय समाज पक्ष और आरपीआई ने बिहार चुनाव में उम्मीदवार उतारे थे। राष्ट्रीय समाज पक्ष के अध्यक्ष तथा पूर्व कैबिनेट मंत्री महादेव जानकर ने कहा कि पार्टी ने बिहार में छह सीटों पर चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में पार्टी को लगभग 7 हजार वोट मिले हैं। जानकर ने कहा कि हमारी पार्टी ने पहली बार चुनाव लड़कर इतना वोट हासिल किया है। इससे पार्टी की नींव खड़ी करने में मदद मिलेगी। जानकर ने कहा कि पार्टी को गया जिले की सीटों पर वोट मिले हैं। इसलिए हम गया से ही संगठन मजबूत करने की शुरुआत करेंगी।

आरपीआई अध्यक्ष तथा केंद्रीय सामाजिक न्याय व अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास आठवले ने 12 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। लेकिन आरपीआई की सभी सीटों पर जमानत जब्त हुई है। आरपीआई के मधुबनी के उम्मीदवार दिनेश मंडल को सबसे अधिक 2057 मिले हैं जबकि फारबिसगंज सीट से पार्टी उम्मीदवार राम कुमार भगत को सबसे कम 416 वोट मिले हैं।

वीबीए ने ईवीएम को बताया दोषी

वंचित बहुजन आघाड़ी (वीबीए) के बिहार प्रदेश के प्रवक्ता डॉ. संजय वाल्मीकि ने चुनाव में बड़ी हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ा है। वाल्मीकि ने कहा कि जब तक ईवीएम पर चुनाव होते रहेंगे तब तक भाजपा के अलावा किसी और दल का जीतना मुश्किल है। वाल्मीकि ने कहा कि वीबीए ने बिहार में 19 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन किसी भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई।

महाराष्ट्र की दो बड़ी पार्टियों शिवसेना और राकांपा की हुई बुरी गत

महाराष्ट्र की दो बड़ी पार्टियों शिवसेना और राकांपा की बुरी गत हुई है। इस चुनाव में शिवसेना भाजपा को सबक सिखाने के मकसद से चुनावी समर में उतरी थी, लेकिन उसका कोई भी उम्मीदवार 1000 वोट के आंकड़े तक नहीं पहुंच पाया। बिहार चुनाव में शिवसेना ने 21 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से किसी को 33 वोट मिले तो किसी को 75 वोट मिले हैं। पार्टी को सबसे ज्यादा 801 वोट बहादुरगंज सीट पर मिला है।

राकांपा को मिला है 0.23 प्रतिशत वोट

दरअसल सुशांत सिंह राजपूत प्रकरण के बाद शिवसेना भाजपा से बदला लेने की जिद के साथ बिहार चुनाव में उतरी थी। लेकिन वहां इसकी दुर्गति हो गई। न केवल शिवसेना बल्कि राकांपा की हालत भी वहां देखने लायक रही है। महाराष्ट्र की सत्ता मंे शामिल इन दोनों दलों को बिहार में नोटा से भी कम वोट मिले हैं। चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि बिहार चुनाव में राकांपा को 0.23 प्रतिशत वोट मिला है तो शिवसेना को इससे भी कम 0.05 प्रतिशत वोट से संतोष करना पड़ा है। इन दोनों पार्टियों से ज्यादा वोट (1.68 प्रतिशत) नोटा में गए हैं। शिवसेना से कम वोट केवल फारवर्ड ब्लॉक (0.02 प्रतिशत) को ही मिले हैं। शिवसेना के एक नेता ने बताया कि सभी 21 सीटों पर शिवसेना को कुल 6 हजार वोट मिले हैं।

समस्तीपुर सीट पर शिवसेना को महज 33 वोट मिले हैं तो पालीगंज में उनके उम्मीदवार ने काफी मेहनत करके 79 वोट जुटाया है। राघोपुर सीट पर शिवसेना प्रत्याशी को 111 वोट मिले तो वजीरगंज में 68 वोट ही मिल पाए। जानकारी के मुताबिक एक दो सीटों को छोड़ दें तो किसी भी सीट पर शिवसेना को नोटा से ज्यादा वोट नहीं मिला है।

कोई बड़ा नेता प्रचार करने नहीं गया बिहार

दरअसल शिवसेना और राकांपा ने बिहार मंे अपने उम्मीदवार तो उतार दिए थे, लेकिन उन्हें अपनी बुरी स्थिति का अंदाजा था। लिहाजा दोनों दलों का कोई भी बड़ा नेता वहां प्रचार करने नहीं पहुंचा। राकांपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि हमने 106 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। लेकिन यह पूरी तरह प्रतीकात्मक था, क्योंकि चुनाव में न तो किसी केन्द्रीय नेता ने रूचि दिखाई और न ही बिहार राकांपा के प्रभारी महासचिव के के शर्मा ने। यहां तक कि चुनाव के ऐन पहले बिहार इकाई को भंग कर दिया गया था। ऐसे में पार्टी का क्या हस्त्र होगा, यह पहले ही पता था। शिवसेना के इस प्रदर्शन पर कांग्रेस नेता संजय निरूपम को बोलने का मौका मिल गया है। निरूपम ने शिवसेना पर तंज कसते हुए कहा कि सुना है कि 21 सीटों पर शिवसेना को नोटा से भी कम वोट मिले हैं। इसलिए कांग्रेस को नसीहत देने की बजाय वह अपना मुंह बंद रखे।

 

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