Friday, June 20, 2025
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दो हाई कोर्ट,दो फैसले एक हिन्दू के लिए,एक मुसलमान के लिए

खदीजा शेख को जमानत क्योंकि जेल में रहती तो ‘जिंदगी हो जाती बर्बाद’, शर्मिष्ठा पर कहा- आसमान नहीं टूट जाएगा: क्या अभिव्यक्ति की आजादी के मायनों को संकुचित कर रही हैं अदालतें?

भारत देश की नींव संविधान पर टिकी है, जिसके तहत हर नागरिक को समान अधिकार और सम्मान की बात कही गई है। लेकिन आज देश की दो हाई कोर्ट्स के दो अलग-अलग फैसलों ने इस सपने पर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक तरफ बॉम्बे हाई कोर्ट ने खदीजा शेख को जमानत दे दी, जिसने ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ जैसे नारे लगाए। दूसरी तरफ कोलकाता हाई कोर्ट ने शर्मिष्ठा पनोली को जमानत देने से इनकार कर दिया, जिसने ‘पाकिस्तान मुर्दाबाद’ कहा।

इन दोनों मामलों में आरोपित छात्राएँ हैं। दोनों ने ही अपनी अभिव्यक्ति व्यक्त की.. लेकिन एक को बेल मिल गई, तो दूसरी को जेल में ठूँट दिया गया। इन दोनों मामलों में न्याय का तराजू एक तरफ झुका हुआ क्यों दिखता है? आखिर क्या वजह है कि एक को उसकी जिंदगी और करियर की चिंता में राहत मिलती है, जबकि दूसरी को जेल की सलाखों के पीछे धमकियाँ और परेशानी झेलनी पड़ रही है? ये सवाल हर भारतीय के मन में उठ रहे हैं।

दो छात्राएँ, दो हाई कोर्ट, दो फैसले, दो कहानियाँ

खदीजा शेख को रिहाई: पुणे की इंजीनियरिंग छात्रा खदीजा ने सोशल मीडिया पर ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ लिखा। उसने भारत के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की आलोचना की, जिसमें भारत ने पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों को नष्ट किया था। खदीजा ने इसे ‘फासीवादी’ करार दिया और जम्मू-कश्मीर को ‘अधिकृत’ बताया। उसकी पोस्ट में भारत की संप्रभुता को चुनौती थी, फिर भी बॉम्बे हाई कोर्ट ने उसे जमानत दे दी

कोर्ट ने कहा कि खदीजा ने माफी माँग ली है, वह एक छात्रा है और उसकी जिंदगी बर्बाद नहीं करनी चाहिए। कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाई कि एक छात्रा को उसकी राय के लिए इस तरह सजा देना गलत है। कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित किया कि खदीजा बिना किसी डर के अपनी परीक्षाएँ दे सके।

शर्मिष्ठा पनोली को कैद: 22 साल की लॉ स्टूडेंट शर्मिष्ठा ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो डाला, जिसमें उसने ‘पाकिस्तान मुर्दाबाद’ कहा। उसका गुस्सा जायज था – पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 24 हिंदुओं की हत्या के बाद, जिसमें आतंकियों ने धर्म पूछकर गोली मारी थी। शर्मिष्ठा ने पाकिस्तान के खिलाफ बोलते हुए कुछ शब्दों का इस्तेमाल किया, जिससे भारत के कुछ इस्लामी कट्टरपंथी नाराज हो गए। यहाँ तक कि हिंदू देवी-देवताओं पर आपत्तिजनक टिप्पणियाँ करने वाले वजाहत खान ने एफआईआर करा दी।

नतीजा? बंगाल पुलिस ने उसे 1500 किमी दूर आकर हरियाणा के गुरुग्राम से गिरफ्तार कर लिया। उसके खिलाफ IPC की धारा 295A (धार्मिक भावनाएँ आहत करना), 505(2) (सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाना) और 504 (जानबूझकर अपमान) के तहत केस दर्ज हुआ। कोलकाता हाई कोर्ट ने उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी, यह कहते हुए कि ‘दो दिन जेल में रहने से आसमान नहीं टूट पड़ेगा‘ और उसके वीडियो ने ‘लोगों की भावनाएँ आहत’ की हैं।

खदीजा को बेल, शर्मिष्ठा को जेल क्यों?

दोनों मामले देखने के बाद सवाल उठता है – अगर खदीजा को छात्र होने के नाते, माफी माँगने के बाद और उसकी शिक्षा व करियर की चिंता करते हुए जमानत मिल सकती है, तो शर्मिष्ठा को क्यों नहीं? अगर खदीजा की अभिव्यक्ति की आजादी का सम्मान किया जा सकता है, तो शर्मिष्ठा की क्यों नहीं? अगर खदीजा की पोस्ट – जिसमें उसने भारत की संप्रभुता को चुनौती दी, ‘भावनात्मक’ मानी जा सकती है, तो शर्मिष्ठा का भारत के दुश्मन देश और आतंकवाद के संरक्षक पाकिस्तान के खिलाफ बोलना अपराध कैसे हो गया? वो भी तब, जब भारत और पाकिस्तान ने हाल ही में एक लड़ाई लड़ी हो और पूरा मामला उसी के इर्द-गिर्द घूम रहा हो।

शर्मिष्ठा ने अपनी याचिका में बताया कि उसे जेल में धमकियाँ मिल रही हैं। उसे साफ पानी तक नहीं मिल रहा और जेल की हालत ऐसी है कि उसकी सेहत को खतरा है। फिर भी कोलकाता हाई कोर्ट ने उसकी जमानत खारिज कर दी। दूसरी तरफ बॉम्बे हाई कोर्ट ने खदीजा के लिए कहा कि उसे बिना डर के पढ़ाई का मौका मिलना चाहिए। क्या शर्मिष्ठा का करियर, उसकी सुरक्षा, उसकी अभिव्यक्ति का अधिकार मायने नहीं रखता?

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