अफ़ग़ानिस्तान शांतिवार्ता की टेबल पर भारत को शामिल किए जाने और रूस की ओर से ‘भारत को इससे दूर रखने की कोशिशों’ को लेकर अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट का रूस ने खंडन किया है.
दिल्ली स्थित रूसी दूतावास ने बयान जारी कर इस रिपोर्ट को ग़लत सूचनाओं पर आधारित बताया है.
इस बयान में कहा गया, ”जाने-माने अंग्रेजी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट, जिसमें दावा किया जा रहा है कि रूस ने अफ़ानिस्तान में शांति बहाल करने की कोशिशों से ‘भारत को दूर रखा’ ये रिपोर्ट एक ऐसे सूत्र के हवाले से लिखी गई है जिसकी जानकारियां ग़लत हैं.”
”रूस और भारत के बीच संवाद हमेशा सभी वैश्विक और अफ़ानिस्तान सहित क्षेत्रीय मुद्दों पर बहुत क़रीबी का और दूरदर्शी रहा है. ”
”अफ़ग़ानिस्तान समझौते की जटिलता के कारण, एक क्षेत्रीय सहमति और अमेरिका सहित अन्य भागीदारों के साथ समन्वय बनाना महत्वपूर्ण है. रूस ने हमेशा ये कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में भारत की भूमिका अहम है. और ऐसे में इस मामले में उसकी गहरी भागीदारी और संवाद होना स्वभाविक है.”
इस रिपोर्ट में क्या था?
मंगलवार को इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक ख़बर छपी जिसके मुताबिक़ कहा गया कि भारत आख़िरकारअफ़ग़ानिस्तान में शांति के लिए तैयार किए जा रहे रोडमैप पर फ़ैसला लेने वाले छह देशों की सूची में शामिल हो गया है. हालांकि ऐसा अमेरिका के कारण संभव हो सका है. क्योंकि रूस ने जिन देशों की भागीदारी का नाम सुझाया था उसमें भारत शामिल नहीं था और बीते 6 महीने से लागातार इस डॉयलॉग टेबल पर आना चाहता था.
सूत्रों के हवाले से द इंडियन एक्सप्रेस ने बताया कि रूस और चीन के बीच बढ़ती नज़दीकी के बीच रूस ने जो तऱीका सुझाया था, उसमें रूस, चीन, अमेरिका, पाकिस्तान और ईरान को बातचीत के मेज पर रखे जाने की बात कही गई थी.
अख़बार ने एक अधिकारी के हवाले से बताया था कि ऐसा पाकिस्तान के कहने पर किया गया था जो नहीं चाहता कि भारत इस इलाक़े में शांति के लिए तैयार किए जा रहे रोडमैप का हिस्सा बने. लेकिन भारत इस पर लंबे वक़्त से काम कर रहा था और इसके लिए सभी भारत ने अफ़गानिस्तान और उससे बाहर सभी अहम किरदारों से संपर्क साधा ताकि वह बातचीत की इस टेबल का हिस्सा बन सके.
अब इस टीम का हिस्सा होने के कारण भारत को उम्मीद है कि वह विशेष रूप से आतंकवाद, हिंसा, महिलाओं के अधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर नियमों को तय करने में अहम भूमिका निभाएगा.
भारत का यह मानना है कि वह एक अफ़ग़ानिस्तान-नेतृत्व वाली, अफ़ग़ानिस्तान-नियंत्रित और अफ़ग़ानिस्तान के स्वामित्व वाली प्रणाली चाहता है, लेकिन अफ़ग़ानिस्तान में ज़मीनी हक़ीक़त कुछ ऐसी रही है कि यहाँ ऐसा हो नहीं सका है.
एक सूत्र ने अख़बार से कहा कि ये लंबे वक़्त से जारी भारत की कूटनीति का फल है. पिछले साल सितंबर में अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व उपराष्ट्रपति अब्दुल रशीद दोस्तम की भारत यात्रा के दौरान इस पर बातचीत हुई थी. फिर अफ़गानिस्तान के पूर्व सीईओ अब्दुल्ला-अब्दुल्ला और अफ़ग़ानिस्तान नेता अता मोहम्मद से बीते साल अक्टूबर में इसे लेकर चर्चा हुई थी.
इसके बाद इस साल जनवरी में भारतीय एनएसए अजीत डोभाल की गुपचुप अफ़ग़ानिस्तान यात्रा भी इसी कोशिश का हिस्सा थी. जहाँ उन्होंने काबुल के नेताओं से मुलाक़ात की थी.
अमेरिका की पहल पर भारत की एंट्री
सात मार्च को टोलो न्यूज़ में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने पिछले सप्ताह अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी और हाई काउंसिल फोर नेशनल रिकंसिलिएशन के अध्यक्ष अब्दुल्ला अब्दुल्ला को एक चिट्ठी भेजी थी जिसमें संयुक्त राष्ट्र के संरक्षण में एक रिजनल कॉन्फ्रेंस के गठन का प्रस्ताव दिया गया था. इसके अंतर्गत अमेरिका, भारत, रूस, चीन, पाकिस्तान और ईरान के विदेश मंत्री एक साथ मिलकर अफ़गानिस्तान में बेहतरी लाने की कोशिश करेंगे.
इस चिट्टी के बाद अफ़ग़ान शांति प्रक्रिया के लिए अमेरिका के विशेष प्रतिनिधि ज़लमय ख़लीलज़ाद ने फ़ोन पर भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर के बीच शांति वार्ता को लेकर हालिया घटनाक्रमों पर बातचीत हुई.
एस. जयशंकर ने एक ट्वीट में लिखा है, “अमेरिकी विदेश प्रतिनिधि ज़लमय ख़लीलज़ाद का कॉल आया. शांति वार्ता के संबंध में हालिया घटनाक्रमों पर चर्चा हुई. हम संपर्क में रहेंगे.”
हालांकि, इन प्रस्तावों के साथ ही ब्लिंकेन ने यह भी स्पष्ट किया है कि अमेरिका अफ़ग़ानिस्तान से पूर्ण सैन्य वापसी की एक मई की डेडलाइन समेत सभी विकल्पों पर विचार कर रहा है. अमरीका और तालिबान के बीच फ़रवरी 2020 में शांति समझौते पर दस्तख़त हुए थे और इसके तहत विदेशी सैन्य बलों को अफ़ग़ानिस्तान छोड़कर जाना है