1987 में भाजपा में शामिल हुए। 1987 में उन्हें भारतीय जनता युवा मोर्चा का सदस्य बनाया गया। शाह को पहला बड़ा राजनीतिक मौका मिला 1991 में, जब आडवाणी के लिए गांधीनगर संसदीय क्षेत्र में उन्होंने चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाला। दूसरा मौका 1996 में मिला, जब अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात से चुनाव लड़ना तय किया। इस चुनाव में भी उन्होंने चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाला। पेशे से स्टॉक ब्रोकर अमित शाह ने 1997 में गुजरात की सरखेज विधानसभा सीट से उप चुनाव जीतकर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। 1999 में वे अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव बैंक (एडीसीबी) के प्रेसिडेंट चुने गए। 2009 में वे गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष बने। 2014 में नरेंद्र मोदी के अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद वे गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष बने। 2003 से 2010 तक उन्होने गुजरात सरकार की कैबिनेट में गृहमंत्रालय का जिम्मा संभाला।
2012 में नारनुपरा विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से उनके विधानसभा चुनाव लड़ने से पहले उन्होंने तीन बार सरखेज विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। वे गुजरात के सरखेज विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से चार बार क्रमशः 1997 (उप चुनाव), 1998, 2002 और 2007 से विधायक निर्वाचित हो चुके हैं। वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के करीबी माने जाते हैं। शाह तब सुर्खियों में आए जब 2004 में अहमदाबाद के बाहरी इलाके में कथित रूप से एक फर्जी मुठभेड़ में 19 वर्षीय इशरत जहां, ज़ीशान जोहर और अमजद अली राणा के साथ प्रणेश की हत्या हुई थी। गुजरात पुलिस ने दावा किया था कि 2002 में गोधरा बाद हुए दंगों का बदला लेने के लिए ये लोग गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मारने आए थे। इस मामले में गोपीनाथ पिल्लई ने अदालत में एक आवेदन देकर मामले में अमित शाह को भी आरोपी बनाने की अपील की थी। हालांकि 15 मई 2014 को सीबीआई की एक विशेष अदालत ने शाह के विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य न होने के कारण इस याचिका को ख़ारिज कर दिया।
एक समय ऐसा भी आया जब सोहराबुद्दीन शेख की फर्जी मुठभेड़ के मामले में उन्हें 25 जुलाई 2010 में गिरफ्तारी का सामना करना पड़ा। शाह पर आरोपों का सबसे बड़ा हमला खुद उनके बेहद खास रहे गुजरात पुलिस के निलंबित अधिकारी डीजी बंजारा ने किया। सोलहवीं लोकसभा चुनाव के लगभग 10 माह पूर्व शाह दिनांक 12 जून 2013 को भारतीय जनता पार्टी के उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया, तब प्रदेश में भाजपा की मात्र 10 लोक सभा सीटें ही थी। उनके संगठनात्मक कौशल और नेतृत्व क्षमता का अंदाजा तब लगा जब 16 मई 2014 को सोलहवीं लोकसभा के चुनाव परिणाम आए। भाजपा ने उत्तर प्रदेश में 71 सीटें हासिल की। प्रदेश में भाजपा की ये अब तक की सबसे बड़ी जीत थी। इस करिश्माई जीत के शिल्पकार रहे अमित शाह का कद पार्टी के भीतर इतना बढ़ा कि उन्हें भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष का पद प्रदान किया गया।
2010 मे #अमित_शाह को एक #फेक_एनकाउंटर मे #गुजरात से तड़ीपार किया गया था, उस समय #सोनिया_गाँधी खुश थी चर्चा मे थी कि इंदिरा गाँधी से भी बड़ी लोह महिला बनेगी दूसरा #मुलायम_सिंह_यादव खुश था और बड़े बड़े बयान दे रहा था।
लेकिन बस चार साल मे दोनों की खी खी दूर होनी थी, अमित शाह दिल्ली आये फिर उत्तरप्रदेश के प्रभारी बने और 2014 के चुनावमें #समाजवादी गुंडों का सफाया कर दिया साथ ही #सोनिया के बच्चे को प्रधानमंत्री बनने मे सदा का ग्रहण लगा दिया।
इसे कहते है कि एक कदम पीछे खींचो तो ढाई कदम आगे बढ़ जाना, 2014 मे भारत मे सीमित #स्टार्टअप थे मगर अब विश्व के तीसरे सबसे अधिक स्टार्टअप भारत मे है इनमे से कई #यूनिकॉर्न भी बने, 2014 मे बीजेपी भी एक प्रकार का स्टार्टअप ही थी।
अमित शाह ने बीजेपी की कमान 2014 मे संभाली थी नाम के अध्यक्ष थे असल मे वे बीजेपी के CEO थे और आज भी डायरेक्टर के पद पर तो बैठे है। वे #अमित_शाह ही थे जिन्होंने राजनीति मे पद अनुक्रम की व्यवस्था स्थापित की, एक अधिकारी लोकसभा देखता है उसके अधीन कई विधानसभा अधिकारी आते है।
ये काफी हद तक #RSS के ही सिस्टम जैसा है, भाजपा अध्यक्ष किसी भी नेता से सीधे सम्पर्क करके हालचाल पूछ सकता है। राज्य का मुख्यमंत्री फालतू की बयानबाजी नहीं कर सकता, ना ही राष्ट्रीय मुद्दों पर टिप्पणी देकर संतुलन बिगाड़ सकता है। ये व्यवस्था कॉर्पोरेट वाली है जिस वजह से बहुराष्ट्रीय कंपनीया शताब्दी तक चलती रहती है।
अमित शाह के गृहमंत्री बनने के बाद सिर्फ एक शाहीन बाग़ जैसा दंगा हुआ है उसके बाद पूर्ण शांति है। घुसपैठ का मुद्दा सिर्फ तब तक बचा है ज़ब तक ममता की सत्ता खत्म नहीं होती, कश्मीर और अयोध्या सुलझ चुके, नक्सलवाद भी लग रहा है 2026 से पहले ही खत्म हो जायेगा।
ऐसा नहीं है कि उनके आने से बीजेपी कभी नहीं हारी मगर उसका अस्तित्व कही खत्म नहीं हुआ, कांग्रेस 1967 मे तमिलनाडु, 1990 मे उप्र बिहार, 1977 मे बंगाल, 1995 मे गुजरात, 2003 मे मध्यप्रदेश और 2014 मे महाराष्ट्र और हरियाणा जो हारी जिसकी आज तक वापस नहीं लौटी और कई जगह तो इन्होने हराने वालो से ही गठबंधन करके आत्मसमर्पण कर दिया।
लेकिन बीजेपी ने उत्तरप्रदेश और दिल्ली को दो दशक बाद वापस हासिल किया। महाराष्ट्र, हरियाणा और उड़ीसा मे पहली बार सत्ता मे आयी जिन राज्यों मे थी उन्हें वापस प्राप्त किया। आज बीजेपी छोटे भाई के रूप मे सिर्फ वही गठबंधन मे है जहाँ उसका आधार बहुत कम है, लेकिन जैसे जैसे आधार बढेगा वह सत्तारूढ़ अवश्य होंगी।
ये तो अमित शाह के युग के आपने सिर्फ 10 साल देखे, मोदीजी 2029 या 2034 मे चले जायेंगे मगर अमित शाह अभी यही है। कांग्रेस रूपी मुग़ल सल्तनत को समाप्त करने वाले हिन्दू हदय सम्राट को जन्मदिन की शुभकामनायें।






