अम्बेडकर से लेकर आज तक सिर्फ इस्तेमाल क्यों….?
लोकसभा चुनाव में जीत से कांग्रेस और विपक्षी दलों के नेता खासे उत्साहित हैं. बार-बार एकजुटता का प्रदर्शन कर सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं. इतना नहीं, लोकसभा स्पीकर के चुनाव में भी उन्होंने दलित कार्ड खेल दिया है, जिसे लेकर खुद को मोदी का हनुमान कहने वाले चिराग पासवान ने हमला बोला है. शिंदे, मीरा कुमार का जिक्र करते हुए चिराग ने विपक्ष पर तगड़ा वार कहा. कहा, हर बार जब भी वे शिकस्त खाते हैं, तो दलितों का नाम आगे कर देते हैं…
बिहार से सांसद और लोकजनशक्ति पार्टी (R) के नेता चिराग पासवान ने एक्स पर लिखा, जब भी कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष को पता चलता है कि उनकी हार सुनिश्चित है, तो वे दलित कार्ड चल देते हैं. 2002 में जब उन्हें पता था कि वे उपराष्ट्रपति पद का चुनाव हार रहे हैं, तो उन्होंने सुशील कुमार शिंदे को उम्मीदवार बना दिया. 2017 में जब वे जानते थे कि वे राष्ट्रपति पद का चुनाव हार रहे हैं तो उन्होंने मीरा कुमार को उम्मीदवार बनाया. अब जब उनके पास स्पष्ट रूप से लोकसभा अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए संख्याबल नहीं है तो वे कांग्रेस के दलित के नेता के सुरेश को नामांकित कर रहे हैं. विपक्ष के लिए क्या दलित नेता केवल और केवल प्रतीकात्मक उम्मीदवार हैं?
बता दें कि इस बार विपक्ष ने 8 बार के सांसद और कांग्रेस नेता के सुरेश का नाम लोकसभा स्पीकर के लिए तय किया है. सुरेश ने अपना नामांकन पत्र भी दाखिल कर दिया है. बीजेपी इसे अवसरवादी राजनीति करार दे रही है. उसका आरोप है कि कांग्रेस संसद की मर्यादा का उल्लंघन कर रही है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, मल्लिकार्जुन खरगे जी सीनियर लीडर हैं और मैं उनका सम्मान करता हूं. कल से लेकर आज तक उनसे तीन बार बात हुई है. वहीं, कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल का कहना है कि अगर सरकार डिप्टी स्पीकर पद दे, तो हम उनका नामांकन वापस ले सकते हैं.