Thursday, December 12, 2024
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103 किसानों की पुश्तैनी जमीन,वक़्फ़ बोर्ड बोला हमारी…,कॉन्ग्रेसी पाप भुगत रहे किसान

 

वक्फ बोर्ड ने 103 किसानों की जमीनों पर ठोका दावा, खाली करने का दिया नोटिस: जानिए वक्फ संपत्ति के नाम पर कहाँ-कहाँ की गई ऐसी दुस्साहस

विभिन्न राज्यों के वक्फ बोर्डों द्वारा गाँव-के-गाँव और बड़े-बड़े होटलों-कॉलेजों को अपनी संपत्ति बताने के बाद वक्फ बोर्ड के इरादे खुलकर सामने आ गए हैं। इसके बावजूद वह रूकने का नाम नहीं ले रहा है। अब महाराष्ट्र वक्फ बोर्ड ने लातूर के 103 किसानों की जमीनों पर अपना दावा ठोका है। उसने इन जमीन के मालिक किसानों को नोटिस भी जारी किया है।

पीड़ित किसानों का कहना है कि जिन जमीनों पर वे पीढ़ियों से खेती करते आ रहे हैं, उसे अब वक्फ हड़पना चाह रहा है। किसानों का आरोप है कि उनकी लगभग 300 एकड़ जमीन पर वक्फ बोर्ड की नजर पड़ गई और उसे हड़प लिया। इसे खाली करने के लिए 103 किसानों को नोटिस दी गई है। इस मामले में दावा छत्रपति संभाजीनगर के महाराष्ट्र राज्य वक्फ न्यायाधिकरण में वाद दायर किया गया है।

वक्फ बोर्ड की ओर से भेजे गए नोटिस में कहा गया है कि लातूर के तालेगाँव के किसान इन जमीनों को तुरंत खाली कर दें। नोटिस मिलने से घबराए किसानों ने सरकार और प्रशासन से उनकी जमीनों को बचाने के लिए मदद की गुहार लगाई है। किसानों का कहना है कि ये उनकी अपनी जमीन है, वक्फ बोर्ड का इसमें कोई हिस्सा नहीं है। नोटिस भेजे हुए लगभग दो महीने हो चुके हैं।

वक्फ बोर्ड का कहना है कि ये जमीनें गाँव वालों को उसकी ओर से दी गई हैं और अब ये जमीनें उसे वापस चाहिए। कुछ ग्रामीणों का कहना है कि उनके पास इन जमीनों के निजामकालीन दस्तावेज मौजूद हैं। वहीं, एक किसान ने हैदराबाद गजट दिखाया और यह जमीन का दस्तावेज है। उसने बताया कि यह दस्तावेज उसके पास तब से है, जब बीदर एक जिला था। उसी दौरान उसके पूर्वजों ने जमीन खरीदी थी।

वक्फ बोर्ड की दुस्साहस की कई कहानियाँ

बता दें कि यह अकेला मामला नहीं है वक्फ बोर्ड की मनमानी का। उत्तर प्रदेश वक्फ बोर्ड ने वाराणसी में स्थित प्रसिद्ध उदय प्रताप कॉलेज (यूपी कॉलेज) पर भी अपना दावा ठोका है। बोर्ड का का कहना है कि यह संपत्ति उसकी है। उदय प्रताप कॉलेज की स्थापना लगभग 115 साल पहले सन 1909 में भिनगा (बहराइच, उत्तर प्रदेश) के राजा उदय प्रताप सिंह जूदेव ने की थी।

साल 2022 में तमिलनाडु के वक्फ बोर्ड ने हिंदुओं के पूरे थिरुचेंदुरई गाँव को वक्फ संपत्ति बताते हुए उस पर अपना दावा ठोक दिया। यहाँ 1500 साल पुराना एक मंदिर है। उसे भी वक्फ बोर्ड ने अपनी संपत्ति घोषित कर दी। इस तरह वक्फ बोर्ड ने 369 एकड़ भूमि पर अपना दावा ठोका है। हालाँकि, ग्रामीणों का कहना है कि ये जमीनें उनकी पुश्तैनी हैं। उन्होंने बोर्ड के दावे को फर्जी बताया।

कर्नाटक में भी वक्फ बोर्ड ने वहाँ की 1200 एकड़ (लगभग 2000 बीघा) जमीन को शाह अमीनुद्दीन दरगाह का बताकर अपनी संपत्ति बताई है। इसके बाद राज्य के कॉन्ग्रेस सरकार ने किसानों को नोटिस भेजकर उन जमीनों को खाली करने के लिए कहा था। बाद में विजयपुरा जिले के टिकोटा तालुक स्थित होनवाड़ा गाँव के किसानों ने इसकी शिकायत मंत्री एमबी पाटिल से की।

वहीं, बेंगलुरु का ईदगाह मैदान भी एक बड़ा विवाद है। सन 1950 में वक्फ बोर्ड ने इसे वक्फ संपत्ति बताते हुए अपना दावा ठोक दिया था। वक्फ का दावा है कि यह 1850 के दशक से वक्फ की संपत्ति थी, इसलिए यह अब हमेशा के लिए वक्फ संपत्ति है। हालाँकि, यह विवाद अदालत में है और इस पर अंतिम निर्णय आना बाकी है। इसी तरह बेंगलुरु में आईटीसी विंडसर होटल पर भी वक्फ ने दावा ठोका है।

इसी तरह का मामला अप्रैल 2024 में हैदराबाद से आया था। तेलंगाना वक्फ बोर्ड ने राजधानी के एक नामी 5 स्टार होटल मैरियट को ही अपनी जागीर घोषित कर दिया था। हालाँकि, हाई कोर्ट ने उसके इस मंसूबे को धाराशायी कर दिया था। दरअसल, साल 1964 में अब्दुल गफूर नाम के एक व्यक्ति ने तब वायसराय नाम से चर्चित इस होटल पर अपना हक जताते हुए मुकदमा कर दिया था।

इसी तरह गुजरात वक्फ बोर्ड ने सूरत नगर निगम की बिल्डिंग पर ही दावा ठोक दिया। अब यह वक्फ की संपत्ति है, क्योंकि इस बिल्डिंग से जुड़े किसी भी दस्तावेज को अपडेट नहीं किया गया था। वक्फ के अनुसार, मुगल काल के दौरान सूरत नगर निगम की इमारत एक होटल थी और हज यात्रा के दौरान इस्तेमाल की जाती थी। ब्रिटिश शासन के दौरान संपत्ति तब ब्रिटिश साम्राज्य की थी।

इसी तरह कोलकाता के टॉलीगंज क्लब और रॉयल कलकत्ता गोल्फ क्लब को भी वक्फ बोर्ड ने अपनी संपत्ति बताई है। इसके अलावा भी देश के विभिन्न हिस्सों में कई ऐसी संपत्तियाँ हैं, जिन पर वक्फ बोर्ड अपना दावा ठोकता है और उन्हें वक्फ संपत्ति बताता है। ये सारे मामले विवाद के घेरे में हैं। अब इन संपत्तियों के राष्ट्रीयकरण की माँग होने लगी है।

करीब पाँच साल पहले साल 2019 में वक्फ बोर्ड ने दावा किया था कि केरल में मुनम्बम, चेराई और पल्लिकाल के इलाके की संपत्ति उसकी है। यह इलाका न केवल केरल के 600 से अधिक परिवारों का घर है, बल्कि यहाँ विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं, जिनके पास 1989 से जमीन के वैध कागजात हैं। इसके बावजूद, वक्फ बोर्ड ने इस इलाके पर अपना दावा ठोक दिया।

 

 

इसी तरह, केरल के वायनाड जिले के तलापुझा गाँव में 28 अक्टूबर 2024 को कुछ परिवारों को अचानक एक गंभीर और चौंकाने वाला नोटिस मिला। इस नोटिस में केरल राज्य वक्फ बोर्ड ने दावा किया था कि वे ज़मीनें जो इन परिवारों की मानी जा रही थीं, असल में वक्फ बोर्ड की संपत्ति हैं। वक्फ बोर्ड ने इन जमीनों को तुरंत खाली करने के लिए कहा है।

वक्फ बोर्ड भारत सरकार के अंतर्गत आने वाले स्मारकों पर भी दावा करता है। कई स्मारक तो उसके कब्जे में भी हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने वक्फ संशोधन बिल को लेकर गठित JPC को ऐसे 120 स्मारकों की सूची दी, जो उसके अधीन है लेकिन वक्फ बोर्ड उन पर दावा करता है। कई संपत्तियाँ तो वक्फ के कब्जे में है। इसका उदाहरण यूपी के संभल का विवादित जामा मस्जिद है, जिसे हिंदू हरिहर मंदिर बताते हैं।

यह संपत्ति ASI के अधीन है, लेकिन उन्हें परिसर में घुसने तक नहीं दिया जाता है। इसका निरीक्षण करने के लिए ASI की टीम को पुलिस-प्रशासन से मदद लेनी पड़ती है। इतना ही नहीं, ASI की जानकारी के बिना ही, इस संरक्षित स्मारक में कई तोड़फोड़ पर निर्माण भी किए गए हैं। यह सारी जानकारी खुद ASI ने संभल मामले में हलफनामा दायर कर कोर्ट को दी है।

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