Monday, October 14, 2024
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ममता बनर्जी को बड़ा झटका…

आंदोलन के साथियों में आखिरी और 4 बार के विधायक ने साथ  छोड़ ही दिया बेईज्जती के बाद….

बंगाल में पिछले 10 वर्षो से सत्ता पर काबिज ममता बनर्जी को विधानसभा चुनाव से पहले लगातार झटके पर झटके लग रहे हैं। दीदी के सबसे भरोसेमंद व पुराने सिपाही भी एक-एक कर उनका साथ छोड़ते जा रहे हैं। इसी क्रम में सोमवार को ममता को उस वक्त एक और बड़ा झटका लगा जब सिंगुर आंदोलन में उनके प्रमुख साथी रहे वरिष्ठ नेता रवींद्र नाथ भट्टाचार्य (80) ने भी उनका साथ छोड़ दिया।

टिकट न मिलने से नाराज हुगली के सिंगुर से लगातार चार बार के विधायक व पूर्व मंत्री भट्टाचार्य ने तृणमूल कांग्रेस छोड़ भाजपा का झंडा थाम लिया। उनका भाजपा में जाना ममता के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। इससे पहले  नंदीग्राम आंदोलन के पोस्टर बॉय व प्रमुख साथी रहे दिग्गज नेता सुवेंदु अधिकारी दिसंबर में ही तृणमूल छोड़ भाजपा में शामिल हो गए थे। सिंगुर व नंदीग्राम आंदोलन की बदौलत ही ममता ने बंगाल में लगातार 34 साल लंबे वाम शासन का अंत कर 2011 में सत्ता हासिल की थीं।
इस दोनों आंदोलनों की अगुआई ममता ने की थीं। कहा जाता है कि इनमें से नंदीग्राम आंदोलन में जहां सुवेंदु ने जबकि सिंगुर आंदोलन में रवींद्र नाथ भट्टाचार्य ने अहम भूमिका निभाई थीं। सिंगुर में टाटा के लखटकिया नैनो कारखाने के लिए किसानों से जबरन भूमि अधिग्रहण के खिलाफ ममता ने तत्कालीन वाममोर्चा सरकार के खिलाफ 2007-08 में आंदोलन चलाया था। ममता के आंदोलन के फलस्वरूप टाटा को सिंगूर छोड़ना पड़ गया था। सिंगुर में हजारों करोड़ के निवेश से लगभग तैयार हो चुके कारखाने को टाटा को अक्टूबर, 2008 में गुजरात के साणंद में स्थानांतरित करने को मजबूर होना पड़ा था।

उस दौरान सिंगुर के विधायक भट्टाचार्य ने आंदोलन में ममता का भरपूर साथ दिया था। उन्होंने आंदोलन के लिए वहां के किसानों को ममता के पक्ष में गोलबंद किया था। लेकिन वयोवृद्ध विधायक भट्टाचार्य को इस बार तृणमूल ने टिकट नहीं दिया। सबसे बड़े प्रतिद्वंदी को तृणमूल ने दे दिया टिकट सिंगुर आंदोलन के प्रमुख साथी रहे और 2001 से ही लगातार जीतते आ रहे भट्टाचार्य की जगह ममता ने इस बार उनके सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी रहे हरिपाल से विधायक बेचाराम मन्ना को सिंगुर सीट से टिकट दे दिया। इतना ही नहीं, बेचाराम की पत्नी को भी दूसरी सीट से तृणमूल ने टिकट दे दिया। इससे नाराज होकर अंतत: भट्टाचार्य को पार्टी छोड़नी पड़ी। वहीं, भाजपा में शामिल होने के मौके पर भट्टाचार्य ने कहा कि तृणमूल अब परिवार की पार्टी बन गई हैं। उन्होंने भाजपा से टिकट मिलने पर सिंगुर से ही लड़ने की इच्छा जताई।

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