Saturday, December 7, 2024
Uncategorized

नरेंद्र मोदी ने वो कर दिखाया,जो किसी प्रधान मंत्री ने सिर्फ सोचा ही होगा,विश्व के सबसे प्राचीन सबसे बड़े विश्वविद्यालय की पुनर्स्थापना

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नालंदा विश्वविद्यालय के नवीन परिसर का बुधवार को उद्घाटन किया। नए कैंपस के उद्घाटन के साथ ही इस प्राचीन विश्वविद्यालय के इतिहास की चर्चा हो रही है। दुनिया के पहले आवासीय नालंदा विश्वविद्यालय का प्राचीन इतिहास है। इसका जिक्र कई किताबों में किया गया है। इस विश्वविद्यालय में कई महान लोगों ने पढ़ाई की थी। ऑक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज से भी 600 साल पहले नालंदा विश्वविद्यालय बना था। ना, आलम और दा शब्दों से मिलकर नालंदा बना है, जिसका मतलब ऐसा उपहार, जिसकी कोई सीमा नहीं है। गुप्त काल के दौरान पांचवी सदी में इसका निर्माण किया गया था। इसका इतिहास, शिक्षा के प्रति भारतीय दृष्टिकोण और इसकी समृद्धि को दिखाता है। विश्वविद्यालय का महत्व भारत समेत पूरी दुनिया के लिए अनमोल धरोहर है।

नालंदा विश्वविद्यालय का गौरवशाली इतिहास

प्राचीन भारत का नालंदा विश्वविद्यालय एक प्रमुख और ऐतिहासिक शिक्षण केंद्र था। यह दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय है, जहां पर एक ही परिसर में शिक्षक और छात्र रहते थे। गुप्त सम्राट कुमार गुप्त प्रथम ने नालंदा विश्वविद्यालय की 450 ई. में स्थापना की थी। हर्षवर्धन और पाल शासकों ने भी बाद में इसे संरक्षण दिया। इस विश्वविद्यालय की भव्यता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसमें 300 कमरे, 7 बड़े कक्ष और अध्ययन के लिए 9 मंजिला एक विशाल पुस्तकालय था। पुस्तकालय में 90 लाख से ज्यादा किताबें थीं।

पूरी हुई 832 साल की प्रतीक्षा, राष्ट्र को PM मोदी ने समर्पित की नालंदा की विरासत: कहा- आग की लपटें ज्ञान को नहीं मिटा सकती

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार के राजगीर में नालंदा विश्वविद्यालय के नए परिसर का उद्धघाटन किया। नया परिसर नालंदा विश्वविद्यालय के प्राचीन खंडहरों के पास है, जिसे नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2010 के माध्यम से स्थापित किया गया था। यह अधिनियम 2007 में फिलीपींस में दूसरे पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में लिए गए निर्णय का पालन करता है। प्रधानमंत्री मोदी ने नालंदा विश्वविद्यालय के नए परिसर का उद्घाटन करने के बाद कहा, “नालंदा इस सत्य का उद्घोष है कि आग की लपटों में पुस्तकें भले जल जाएं लेकिन आग की लपटें ज्ञान को नहीं मिटा सकतीं।”

नालंदा विश्वविद्यालय में अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “मुझे तीसरे कार्यकाल के लिए शपथ ग्रहण करने के बाद पहले 10 दिनों में ही नालंदा आने का अवसर मिला है। यह मेरा सौभाग्य तो है ही, मैं इसे भारत की विकास यात्रा के एक शुभ संकेत के रूप में देखता हूँ। नालंदा केवल एक नाम नहीं है। नालंदा एक पहचान है, एक सम्मान है। नालंदा एक मूल्य है, मंत्र है, गौरव है, गाथा है। नालंदा इस सत्य का उद्घोष है कि आग की लपटों में पुस्तकें भले जल जाएँ, लेकिन आग की लपटें ज्ञान को नहीं मिटा सकतीं।”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि मैं बिहार के लोगों को भी बधाई देता हूँ। बिहार अपने गौरव को वापस लाने के लिए जिस तरह विकास की राह पर आगे बढ़ रहा है, नालंदा का ये परिसर उसी की एक प्रेरणा है।

पीएम मोदी ने कहा, “नालंदा एक पहचान है, एक सम्मान है। नालंदा केवल भारत के ही अतीत का पुनर्जागरण नहीं है। इसमें विश्व के, एशिया के कितने ही देशों की विरासत जुड़ी हुई है। नालंदा यूनिवर्सिटी के पुनर्निर्माण में हमारे साथी देशों की भागीदारी भी रही है। मैं इस अवसर पर भारत के सभी मित्र देशों का अभिनंदन करता हूँ। अपने प्राचीन अवशेषों के समीप नालंदा का नवजागरण। ये नया कैंपस, विश्व को भारत के सामर्थ्य का परिचय देगा। जो राष्ट्र, मजबूत मानवीय मूल्यों पर खड़े होते हैं… वो राष्ट्र इतिहास को पुनर्जीवित करके बेहतर भविष्य की नींव रखना जानते हैं।”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “हम सभी जानते हैं कि नालंदा कभी भारत की परंपरा और पहचान का जीवंत केंद्र हुआ करता था… शिक्षा को लेकर यही भारत की सोच रही है… शिक्षा ही हमें गढ़ती है, विचार देती है और उसे आकार देती है। प्राचीन नालंदा में बच्चों का प्रवेश उनकी पहचान, उनकी राष्ट्रीयता को देख कर नहीं होता था। हर देश हर वर्ग के युवा हैं यहाँ पर। नालंदा विश्वविद्यालय के इस नए परिसर में हमें उसी प्राचीन व्यवस्था को फिर से आधुनिक रूप में मजबूती देनी है और मुझे ये देख कर खुशी है कि दुनिया के कई देशों से आज यहाँ कई विद्यार्थी आने लगे हैं।

डॉ कलाम ने नालंदा विश्वविद्यालय को फिर से स्थापित करने की जताई थी इच्छा: नीतीश कुमार

सीएम नीतीश कुमार ने कहा कि खुशी की बात है कि नालंदा विश्वविद्यालय के परिसर का उद्घाटन आज प्रधानमंत्री मोदी के करकमलों से किया जा रहा है। पुराने नालंदा विश्वविद्यालय में देश के ही नहीं दुनिया की अनेक जगह के लोग आकर पढ़ते थे लेकिन दुर्भाग्य से ये विश्वविद्यालय 1200 ईस्वी में नष्ट हो गया था। 2005 से हम लोगों को काम करने का मौका मिला तब से हमने बिहार के विकास का काम शुरू किया। 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम बिहार आए थे और उन्होंने अपने संबोधन में नालंदा विश्वविद्यालय को फिर से स्थापित करने की बात की थी।

साल 2014 से अस्थाई कैंपस में संचालित हो रहा था नालंदा विश्वविद्यालय

मूल रूप से पाँचवीं शताब्दी में स्थापित नालंदा विश्वविद्यालय, दुनिया भर के छात्रों को आकर्षित करने वाला एक प्रसिद्ध संस्थान था। यह 12वीं शताब्दी में नष्ट होने तक 800 वर्षों तक फलता-फूलता रहा। आधुनिक विश्वविद्यालय ने 2014 में 14 छात्रों के साथ एक अस्थायी स्थान से परिचालन शुरू किया। नए परिसर का निर्माण 2017 में शुरू हुआ। नालंदा विश्वविद्यालय को ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, भूटान, चीन, इंडोनेशिया और थाईलैंड सहित 17 अन्य देशों का समर्थन प्राप्त है, जिन्होंने समझौता ज्ञापन (MOU) पर हस्ताक्षर किए हैं। विश्वविद्यालय अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को 137 छात्रवृत्तियाँ प्रदान करता है। 2022-24 और 2023-25 ​​के लिए स्नातकोत्तर कार्यक्रमों और 2023-27 के पीएचडी कार्यक्रम में नामांकित अंतर्राष्ट्रीय छात्रों में अर्जेंटीना, बांग्लादेश, कंबोडिया, घाना, केन्या, नेपाल, नाइजीरिया, श्रीलंका, अमेरिका और जिम्बाब्वे के छात्र शामिल हैं।

नालंदा विश्‍वविद्यालय कैम्पस में 40 कक्षाओं वाले दो शैक्षणिक ब्लॉक हैं, जिनकी कुल बैठने की क्षमता लगभग 1900 है। इसमें 300 सीटों की क्षमता वाले दो सभागार हैं। इसमें लगभग 550 छात्रों की क्षमता वाला एक छात्र छात्रावास है। इसमें अंतरराष्ट्रीय केंद्र, 2000 व्यक्तियों तक की क्षमता वाला एम्फीथिएटर, फैकल्टी क्लब और खेल परिसर सहित कई अन्य सुविधाएँ भी हैं। यह परिसर एक ‘नेट जीरो’ ग्रीन कैंपस है।

यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल

साल 1193 में दिल्ली सल्तनत के शासक कुतुबुद्दीन ऐबक के सेनापति मोहम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने आग लगाकर इस विश्‍वविद्यालय को जला दिया था। इस यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में इतनी किताबें थीं कि 3 दिनों तक आग धधकती रही। आज ये नालंदा खंडहर के रूप में जाना जाता है और यूनेस्‍को की विश्‍व धरोहर सूची में शामिल है।

इसकी नींव गुप्त राजवंश के कुमार गुप्त प्रथम ने रखी थी। पाँचवीं सदी में बने प्राचीन विश्वविद्यालय में करीब 10 हजार छात्र पढ़ते थे, जिनके लिए 1500 अध्यापक हुआ करते थे. छात्रों में अधिकांश एशियाई देशों चीन, कोरिया और जापान से आने वाले बौद्ध भिक्षु होते थे। इतिहासकारों के मुताबिक, चीनी भिक्षु ह्वेनसांग ने भी सातवीं सदी में नालंदा में शिक्षा ग्रहण की थी। उन्होंने अपनी किताबों में नालंदा विश्वविद्यालय की भव्यता का जिक्र किया है। यह ज्ञान और बुद्धिमत्ता के प्रसार की दिशा में प्राचीन भारत के योगदान का गवाह है।

नालंदा विश्‍वविद्यालय के नए परिसर के उद्घाटन के मौके पर प्रधानमंत्री के साथ भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर, बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, नालंदा विश्वविद्यालय के कुलाधिपति अरविंद पनगढ़िया भी मौजूद रहे। इसके साथ ही नालंदा विश्वविद्यालय के स्थापना में अहम योगदान देने वाले कुल 17 देशों के राजदूत भी शामिल हुए, तो नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन कर रहे कई देशों के छात्र-छात्राएं भी इस अवसर पर उपस्थित रहे।

Leave a Reply