नेटफ़्लिक्स पर हाल में रिलीज़ हुई छह एपिसोड की सिरीज़ ‘द स्पाई’ का ये दृश्य एक आम इंसान के जासूस बनने के बाद, फिर से आम इंसान बनने की चाहत और ज़रूरत दिखाता है.
एली या कामिल. कामिल या एली. इसराइली या सीरियाई. जासूस या कारोबारी.
कहानी भले फ़िल्मी लगे, लेकिन एली कोहेन की ज़िंदगी कुछ इसी तरह के थ्रिल से सजी थी. पूरा नाम एलीआहू बेन शॉल कोहेन.
इन्हें इसराइल का सबसे बहादुर और साहसी जासूस भी कहा जाता है. वो जासूस जिसने चार साल न केवल दुश्मनों के बीच सीरिया में गुज़ारे, बल्कि वहां सत्ता के गलियारों में ऐसी पैठ बनाई कि शीर्ष स्तर तक पहुंच बनाने में कामयाब रहे.
‘द स्पाई’ सिरीज़ में दिखाया गया है कि किस तरह कोहेन, कामिल बनकर सीरियाई राष्ट्रपति के इतना क़रीब पहुंच गए थे कि वो सीरिया का डिप्टी डिफ़ेंस मिनिस्टर बनने से ज़रा फ़ासले पर थे.
ऐसा कहा जाता है कि कोहेन की जुटाई ख़ुफिया जानकारी ने साल 1967 के अरब-इसराइल युद्ध में इसराइल की जीत में अहम भूमिका निभाई.
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मिस्र में जन्मे एली इसराइल कैसे पहुंचे?
ये शख़्स ना इसराइल में जन्मे थे, ना सीरिया या अर्जेंटीना में. एली का जन्म साल 1924 में मिस्र के एलेग्ज़ेंड्रिया में एक सीरियाई-यहूदी परिवार में हुआ था.
उनके पिता साल 1914 में सीरिया के एलेप्पो से यहां आकर बसे थे. जब इसराइल बना तो मिस्र के कई यहूदी परिवार वहां से निकलने लगे.
साल 1949 में कोहेन के माता-पिता और तीन भाइयों ने भी यही फ़ैसला किया और इसराइल जाकर बस गए. लेकिन इलेक्ट्रॉनिक्स की पढ़ाई कर रहे कोहेन ने मिस्र में रुककर अपना कोर्स पूरा करने का फ़ैसला किया.
एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के मुताबिक अरबी, अंग्रेज़ी और फ़्रांसीसी भाषा पर ग़ज़ब की पकड़ की वजह से इसराइली ख़ुफ़िया विभाग उन्हें लेकर काफ़ी दिलचस्प हुआ.
साल 1955 में वो जासूसी का छोटा सा कोर्स करने के लिए इसराइल गए भी और अगले साल मिस्र लौट आए. हालांकि, स्वेज़ संकट के बाद दूसरे लोगों के साथ कोहेन को भी मिस्र से बेदख़ल कर दिया गया और साल 1957 में वो इसराइल आ गए.
यहां आने के दो साल बाद उनकी शादी नादिया मजाल्द से हुई, जो इराक़ी-यहूदी थीं और लेखिका सैमी माइकल की बहन भी. साल 1960 में इसराइली ख़ुफ़िया विभाग में भर्ती होने से पहले उन्होंने ट्रांसलेटर और एकाउंटेंट के रूप में काम किया.
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पहले अर्जेंटीना, फिर स्विट्ज़रलैंड होते हुए सीरिया
आगे की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद कोहेन 1961 में अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स पहुंचे, जहां उन्होंने सीरियाई मूल के कारोबारी के रूप में अपना काम शुरू किया.
कामिल अमीन थाबेत बनकर कोहेन ने अर्जेंटीना में बसे सीरियाई समुदाय के लोगों के बीच कई संपर्क बनाए और जल्द ही सीरियाई दूतावास में काम करने वाले आला अफ़सरों से दोस्ती गांठकर उनका भरोसा जीत लिया.
इनमें सीरियाई मिलिट्री अटैचे अमीन अल-हफ़ीज़ भी थे, जो आगे चलकर सीरिया के राष्ट्रपति बने. कोहेन ने अपने ‘नए दोस्तों’ के बीच ये संदेश पहुंचा दिया था कि वो जल्द से जल्द सीरिया ‘लौटना’ चाहते हैं.
साल 1962 में जब उन्हें राजधानी दमिश्क जाने और बसने का मौका मिला तो अर्जेंटीना में बने उनके संपर्कों ने सीरिया में सत्ता के गलियारों तक उन्हें गज़ब की पहुंच दिलाई.
कदम जमाने के तुरंत बाद कोहेन ने सीरियाई सेना से जुड़ी ख़ुफ़िया जानकारी और योजनाएं इसराइल तक पहुंचाना शुरू कर दिया.
जासूसी के क्षेत्र में कोहेन की कोशिशें उस वक़्त और अहम हो गईं जब साल 1963 में सीरिया में सत्ता परिवर्तन हुआ. बाथ पार्टी को सत्ता मिली और इनमें ऐसे कई लोग थे जो अर्जेंटीना के ज़माने से कोहेन के दोस्त थे.
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सीरियाई राष्ट्रपति के बेहद क़रीब पहुंचे
तख़्तापलट की अगुवाई की अमीन अल-हफ़ीज़ ने, जो राष्ट्रपति बने. हफ़ीज़ ने कोहेन पर पूरा एतबार किया और ऐसा कहा जाता है कि एक बार तो वो उन्हें सीरिया का डिप्टी रक्षा मंत्री बनाने का फ़ैसला कर चुके थे.
कोहेन को ना केवल ख़ुफ़िया सैन्य ब्रीफ़िंग में मौजूद रहने का मौक़ा मिला बल्कि उन्हें गोलान हाइट्स में सीरियाई सैन्य ठिकानों का दौरा तक कराया गया.
उस समय गोलान हाइट्स इलाके को लेकर सीरिया और इसराइल के बीच काफ़ी तनाव था.
‘द स्पाई’ सिरीज़ में एक वाकया दिखाया गया कि किस तरह कोहेन, गर्मी और सीरियाई सैनिकों के उसमें तपने का हवाला देकर वहां यूकेलिप्टस पेड़ लगाने का आइडिया देते हैं और ये पेड़ लगाए भी जाते हैं.
कहा जाता है कि साल 1967 की मिडल ईस्ट वॉर में इन पेड़ों और गोलान हाइट्स से जुड़ी कोहेन की भेजी दूसरी जानकारी ने इसराइल के हाथों सीरिया की हार की नींव रखी थी.
इन्हीं पेड़ों की वजह से इसराइल को सीरियाई सैनिकों की लोकेशन पता लगाने में काफ़ी मदद मिली.
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कैसे पकड़े गए थे एली?
जासूसी पर कोहेन की ज़बरदस्त पकड़ के बावजूद उनमें लापरवाही की एक झलक भी दिखती थी. इसराइल में उनके हैंडलर बार-बार उन्हें रेडियो ट्रांसमिशन के समय चौकन्ना रहने की हिदायत दिया करते थे.
साथ ही उन्हें ये निर्देश भी थे कि एक दिन में दो बार रेडियो ट्रांसमिशन ना करें. लेकिन कोहेन बार-बार इन चेतावनियों को नज़रअंदाज़ किया करते थे और उनके अंत की वजह यही लापरवाही बनी.
जनवरी 1965 में सीरिया के काउंटर-इंटेलीजेंस अफ़सरों को उनके रेडियो सिग्नल की भनक लग गई और उन्हें ट्रांसमिशन भेजते समय रंगे हाथ पकड़ लिया गया. कोहेन से पूछताछ हुई, सैन्य मुक़दमा चला और आख़िरकार उन्हें सज़ा-ए-मौत सुनाई गई.
कोहेन को साल 1966 में दमिश्क में एक सार्वजनिक चौराहे पर फांसी दी गई थी. उनके गले में एक बैनर डाला गया था, जिसका शीर्षक था ‘सीरिया में मौजूद अरबी लोगों की तरफ़ से.’
इसराइल ने पहले उनकी फांसी की सज़ा माफ़ करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाया लेकिन सीरिया नहीं माना. कोहेन की मौत के बाद इसराइल ने उनका शव और अवशेष लौटाने की कई बार गुहार लगाई लेकिन सीरिया ने हर बार इनकार किया.
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53 साल बाद मिली एली की घड़ी
मौत के 53 साल गुज़रने के बाद 2018 में कोहेन की एक घड़ी ज़रूर इसराइल को मिली. इसराइली प्रधानमंत्री के कार्यालय ने इस बात की घोषणा की थी. इसराइल के कब्ज़े में ये घड़ी कब और कैसे आई, इस बात की जानकारी नहीं दी गई थी.
सिर्फ़ इतना बताया गया कि ‘मोसाद (इसराइली ख़ुफ़िया एजेंसी) के ख़ास ऑपरेशन’ में इस घड़ी को बरामद कर इसराइल वापस लाया गया.
मोसाद के डायरेक्टर योसी कोहेन ने तब कहा था कि ये घड़ी एली कोहेन ने पकड़े जाने वाले दिन तक पहनी हुई थी और ये ‘कोहेन की ऑपरेशनल इमेज और फ़र्ज़ी अरब पहचान का अहम हिस्सा थी.’
इस घड़ी के मिलने पर इसराइली प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू ने एक बयान में कहा था, “मैं इस साहसिक और प्रतिबद्धतापूर्ण अभियान के लिए मोसाद के लड़ाकों को लेकर गर्व महसूस कर रहा हूं.”
“इस ऑपरेशन का एकमात्र उद्देश्य उस महान योद्धा से जुड़ा कोई प्रतीक इसराइल लाना था, जिसने अपने देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने में अहम भूमिका अदा की.”
पिछले साल मई के महीने में ये घड़ी कोहेन की विधवा नादिया को एक निजी समारोह में सौंपी गई थी. उन्होंने इसराइली टीवी से तब कहा था, “जिस पल मुझे पता चला कि ये घड़ी मिल गई है, मेरा गला सूख गया और शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई.”
नादिया ने कहा, “उस वक़्त मुझे लगा जैसे कि मैं उनका हाथ अपने हाथ में महसूस कर सकती हूं, ऐसा अहसास हुआ कि उनका एक हिस्सा हमारे साथ है.”