अखबार के नाम पर रियल स्टेट की दुकान सजा रखी थी दैनिक भास्कर ने, मॉल की आड़ में 408 करोड़ के लोन का फर्जीवाड़ा, कंपनी डायरेक्टर्स ने कबूला जुर्म!
अखबार की आड़ में जमीन, जायदाद और शापिंग मॉल के धंधे के सरगना बन चुके इस ग्रुप ने मॉल की खातिर लिए गए लोन में भी फर्जीवाड़ा किया। इसने मॉल की खातिर एक नेशनल बैंक से 597 करोड़ का लोन लिया। इसके बाद लोन की इसी रकम से 408 करोड़ रुपए अपनी ही एक सहयोगी कंपनी को केवल एक फीसदी के ब्याज पर बतौर लोन दे दिए गए। फर्जीवाड़े की इस स्टोरी का एक अहम पहलू यह भी रहा कि इस समूह की रियल एस्टेट कंपनी ने अपने टैक्सेबल मुनाफे से ब्याज के खर्चें लगातार क्लेम किए। ये तब हुआ जबकि इस रकम को होल्डिंग कंपनी के निजी निवेश में खपा दिया गया।
आयकर के छापों में सच्ची पत्रकारिता का दावा करने वाले दैनिक भास्कर (Dainik Bhaskar) अखबार के काले कारनामो की कलई खुल गई है। ये ग्रुप सिर से पैर तक बेनकाब हो गया है। पत्रकारिता की आड़ में ये ग्रुप वही सारे काले धंधे कर रहा है जो नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे भगौड़े आर्थिक अपराधी करते आए हैं। आयकर के छापों में 6000 करोड़ के सालाना टर्न ओवर वाले इस ग्रुप का बेइमानी से खड़ा किया ताश के पत्तों का महल रेशा रेशा ढ़ह गया। मीडिया, पावर, टेक्सटाइल्स और रियल एस्टेट में पैठ बना चुके इस समूह के अलग अलग राज्यों में स्थित 9 शहरों के 32 ठिकानों पर रेड की गई। इस रेड में मालूम पड़ा कि ये ग्रुप सौ से अधिक कंपनियों के जरिए कालेधन को जुटाने और फिर उन्हें सफेद में बदलने के अवैध कारोबार में शामिल है। मीडिया, एथिक्स और नैतिकता के प्रवचन देने वाले इस समूह ने पैसा कमाने की इस अंधी हवस में अपने कर्मचारियों तक का मोहरे की तरह इस्तेमाल किया। आयकर छापे में मालूम पड़ा कि इस कथित मीडिया समूह ने अपने कर्मचारियों के नाम पर कई कंपनियां खड़ी कर रखी हैं जिनका इस्तेमाल फर्जी खर्चों और बोगस फंड ट्रांसफर के लिए किया जा रहा है।
नई दिल्ली। दैनिक भास्कर अखबार पर पड़े आयकर छापों ने काले अक्षरों की आड़ में छिपाए गए हजारों करोड़ के काले कारोबार की बखिया उधेड़ दी है। जांच से जो तथ्य सामने आए हैं, उसे जानकर आपका पत्रकार और पत्रकारिता दोनो से यकीन उठ जाएगा। दैनिक भास्कर के खातों में काली रकम का विशाल चक्रव्यूह शामिल है। जांच में मालूम पड़ा है कि भास्कर के खातों में छुपे 2200 करोड़ के फर्जीवाड़े को छिपाने की खातिर बेहद ही शातिर तरीके का इस्तेमाल किया गया। फर्जीवाड़े का नया रिकॉर्ड स्थापित किया गया। ऐसे सौदे दिखाए गए जिसमें माल की कोई भी डिलेवरी या मूवमेंट शामिल नहीं था। टैक्स चोरी का पूरा का पूरा कच्चा चिट्ठा भी इस छापे में सामने आया है जिसका परीक्षण जारी है।
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अखबार की आड़ में जमीन, जायदाद और शापिंग मॉल के धंधे के सरगना बन चुके इस ग्रुप ने मॉल की खातिर लिए गए लोन में भी फर्जीवाड़ा किया। इसने मॉल की खातिर एक नेशनल बैंक से 597 करोड़ का लोन लिया। इसके बाद लोन की इसी रकम से 408 करोड़ रुपए अपनी ही एक सहयोगी कंपनी को केवल एक फीसदी के ब्याज पर बतौर लोन दे दिए गए। फर्जीवाड़े की इस स्टोरी का एक अहम पहलू यह भी रहा कि इस समूह की रियल एस्टेट कंपनी ने अपने टैक्सेबल मुनाफे से ब्याज के खर्चें लगातार क्लेम किए। ये तब हुआ जबकि इस रकम को होल्डिंग कंपनी के निजी निवेश में खपा दिया गया।
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दैनिक भास्कर की लिस्टेड मीडिया कंपनी भी फर्जीवाड़े की इस रेस का अहम हिस्सा रही। इसने विज्ञापन के राजस्व के लिए बार्टर सौदे किए। इन सौदों के तहत नकद पेमेंट के बदले अचल संपत्तियां हथियाई गईं। इस बात के भी सबूत मिले कि बाद में इन्हीं प्रापर्टीज को बेचकर नकद धनराशि हासिल की गई। इसका भी परीक्षण जारी है। इस बात के भी सबूत मिले हैं इस ग्रुप की रियलिटी विंग ने नकद लेकर फ्लैट्स की बिक्री की। इस कंपनी के दो कर्मचारियों और एक डायरेक्टर ने इस फर्जीवाड़े की पुष्टि की। इस फर्जीवाड़े के तरीके औैर उससे जुड़े दस्तावेजों का भी भंडाफोड़ हुआ है। हैरानी की बात यह भी रही कि कंपनी के प्रमोटर्स और प्रमुख कर्मचारियों के घरों के भीतर ही कुल 26 लॉकर पकड़े गए। इसके साथ ही भारी मात्रा में कागजात भी जब्त किए गए जिनका अध्ययन जारी है।
इस छानबीन में यह भी पता चला कि दैनिक भास्कर ने अपने जिन कर्मचारियों का नाम इन कंपनियों के शेयर होल्डर्स और डायरेक्टर के तौर पर दे रखा है, उन्हें ये बात मालूम तक ही नहीं है। पूछताछ में भास्कर के इन कर्मियों ने बताया कि उन्होंने यकीन करके इस समूह को अपने आधार कार्ड और डिजिटल सिगनेचर दे दिए थे। उन्हें ख्वाब में भी इस बात का अंदेशा नहीं था कि इनका इस्तेमाल इन अवैध धंधों के लिए किया जाएगा।
इन कंपनियों के जरिए दैनिक भास्कर ने फर्जीवाड़े की पूरी की पूरी चेन तैयार कर रखी थी। इनके जरिए फर्जी खर्चे दिखाए जाते थे और साथ ही लिस्टेड कंपनियों से हुए मुनाफे को खपा दिया जाता था। कंपनियों में फंड ट्रांसफर से लेकर सर्कुलर ट्रांजैक्शन तक के अवैध धंधे इनके ही जरिए अंजाम दिए जाते थे। इस फर्जीवाड़े से भास्कर ने पिछले छह सालों में 700 करोड़ रुपए का वारा न्यारा किया। आयकर के छापे में गलत तरीकों से जमा की गई इस रकम का भी खुलासा हुआ।
अहम बात यह है कि फर्जीवाड़े की यह रकम और भी बड़ी हो सकती है। इसकी वजह लेनदेन के सौदों की अनेक सतहें यानि लेयर्स हैं जो इस ग्रुप ने हजारों करोड़ रुपए के अपने फर्जीवाड़े को सही ठहराने के लिए इस्तेमाल की हैं। दैनिक भास्कर ने इस तरीके से कंपनी एक्ट और सेबी के लिस्टिंग एग्रीमेंट के प्रावधानों का भी खुला उल्लंघन किया है। इस ग्रुप के खिलाफ बेनामी ट्रांजैक्शन ऐक्ट का मामला भी विचाराधीन है। इतना ही नही बल्कि भास्कर समूह की ग्रुप कंपनियों के बीच एक दूसरे से असंबद्ध व्यवसाय से जुड़ी हुई 2200 करोड़ रुपए की साइक्लिल ट्रेडिंग एवं फंड ट्रांसफर का भी पर्दाफाश हुआ है। आयकर छापे के इस खुलासे से मीडिया के नाम पर आर्थिक अपराध का महल खड़ा कर चुके इस समूह का काला चरित्र पूरी तरह बेनकाब हो गया है।