Wednesday, February 5, 2025
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BREAKING NEWS : लव जिहाद कानून पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, लव जिहादियों के समर्थक पहुंचे थे सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने अंतर धार्मिक विवाह के नाम पर धर्मांतरण को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड में लागू ‘लव जिहाद’ कानूनों के विवादास्पद प्रावधानों पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। हालांकि, कोर्ट विवादास्पद कानूनों की समीक्षा करने पर राजी हो गया है। सुप्रीम कोर्ट अब इन कानूनों की संवैधानिकता की जांच करेगा, यही कारण है कि कोर्ट ने राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर इस संबंध में जवाब मांगा है।
मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे, न्यायमूर्ति वी रमासुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की खंडपीठ ने विशाल ठाकरे एवं अन्य और सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सितलवाड़ के गैर-सरकारी संगठन ‘सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस’ की याचिकाओं की सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड की सरकारों को नोटिस जारी किए। , हालांकि न्यायालय ने संबंधित कानून के उन प्रावधानों पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसके तहत शादी के लिए धर्म परिवर्तन की पूर्व अनुमति को आवश्यक बनाया गया है।

‘लव जिहाद’ के खिलाफ बने कानूनों पर रोक लगाने से SC का इनकार, तीस्ता सीतलवाड़ जैसों ने लगाई थी कई याचिकाएँ

हाल ही में विभिन्न राज्य सरकारों ने ‘लव जिहाद’ के खिलाफ कानून बनाया, ताकि महिलाओं की प्रताड़ना रोकी जा सके। उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और असम में ऐसे कानून बने, जबकि कर्नाटक, मध्य प्रदेश और हरियाणा में इसकी तैयारी चल रही है। ये सभी भाजपा शासित राज्य हैं। इन कानूनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में धड़ल्ले से याचिकाएँ दाखिल की गई हैं, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इन कानूनों पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है।
हालाँकि, इन याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई हेतु स्वीकार भी कर लिया है। इन याचिकाओं में ‘लव जिहाद’ के खिलाफ बने राज्य सरकारों के कानूनों की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाए गए हैं। याचिकाकर्ताओं ने इस बात का डर जताया है कि अन्य राज्यों में भी इसी तरह के कानून आ रहे हैं, जो ठीक नहीं है। इन कानूनों को धोखे से शादी और जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए लाया गया है, ताकि महिलाएँ इसका शिकार न बनें।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि किसी भी शादी को लेकर ये साबित करना कि ये धर्मांतरण के लिए नहीं किया गया है – कपल्स पर ही इसका सारा दारोमदार थोप दिया गया है, जो आपत्तिजनक है। लेकिन, जब उन्होंने इन कानूनों के लागू होने पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने की माँग की, तो मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि इसके लिए याचिएकाकर्ताओं को उन राज्यों के हाईकोर्ट्स में जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो इन मुद्दों पर चर्चा कर के दलीलें सुनने के पक्ष में है, बजाए कि इसे अभी रोकने के। इस मामले में राज्य सरकारों का पक्ष जानने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (जनवरी 4, 2021) को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सरकारों को नोटिस भी जारी किया। इस पीठ में जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम और जस्टिस एएस बोपन्ना भी शामिल थे। विकास ठाकरे और तीस्ता सीतलवाड़ के NGO ने ये याचिकाएँ दायर की हैं।

इन याचिकाकर्ताओं ने अपने वकीलों के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में आरोप लगाया कि ‘लव जिहाद’ कानून की आड़ में पुलिस ने कई निर्दोष लोगों को उठा लिया है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि इलाहबाद हाईकोर्ट में ऐसी याचिकाओं पर पहले से ही सुनवाई चल रही है। उन्होंने कहा कि जब कई हाईकोर्ट्स में केस पेंडिंग हैं तो सुप्रीम कोर्ट को सुनना चाहिए। CJI ने कहा कि वो देखेंगे कि ये कानून ‘दमनकारी’ (आरोपों के हिसाब से) हैं या नहीं।
हाल ही में उत्तर प्रदेश में लव जिहाद पर बने कानून के खिलाफ 104 रिटायर्ड आईएएस अधिकारियों ने सीएम योगी आदित्यनाथ को चिट्ठी लिखते हुए इसे नफरत की राजनीति का केंद्र बताया था। जिस पर योगी सरकार के मंत्री ने पलटवार करते हुए कहा कि उन अधिकारियों को सेवा के दौरान गलत तरीके से हासिल की गई संपत्ति को खोने का डर सता रहा है। हालाँकि, इससे दोगुने से भी ज्यादा अधिकारियों ने पत्र लिख कर कानून का समर्थन भी किया।

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