हरियाणा विधानसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस की हार पर राहुल गाँधी ने एक दिन बाद अपनी पहली प्रतिक्रिया दी है। राहुल गाँधी ने पहली प्रतिक्रिया में ही अपने पुराने प्रोपेगेंडा को हवा दे दी है। यह वही प्रोपेगेंडा जो कॉन्ग्रेस हर हार के बाद आगे बढ़ाती रहती है। राहुल गाँधी ने अपनी प्रतिक्रिया में जम्मू कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस के गठबंधन को बधाई दी और लोकतंत्र की जीत बताया लेकिन हरियाणा में उन्होंने हार को स्वीकार करने के बजाय चुनाव प्रक्रिया पर ही प्रश्न उठा दिए।
राहुल गाँधी ने बुधवार (9 अक्टूबर, 2024) को अपने ट्वीट में लिखा, “जम्मू-कश्मीर के लोगों का तहे दिल से शुक्रिया – प्रदेश में INDIA की जीत संविधान की जीत है, लोकतांत्रिक स्वाभिमान की जीत है। हम हरियाणा के अप्रत्याशित नतीजे का विश्लेषण कर रहे हैं। अनेक विधानसभा क्षेत्रों से आ रही शिकायतों से चुनाव आयोग को अवगत कराएँगे।”
राहुल गाँधी के इस ट्वीट से साफ़ होता है कि वह जम्मू कश्मीर में कॉन्ग्रेस गठबंधन की जीत को तो लोकतंत्र बचाने का प्रमाण पत्र जारी कर रहे हैं लेकिन हरियाणा की हार को पचा नहीं पा रहे। इस ट्वीट में उन्होंने शिकायतों का जिक्र भाजपा की जीत पर प्रश्न उठाने के लिए किया।
हरियाणा के नतीजे आने से पहले सभी एग्जिट पोल और चुनावी पंडित बता रहे थे कि कॉन्ग्रेस सत्ता में आ सकती है। नतीजों के दिन हरियाणा में सुबह कुछ समय रुझानों में कॉन्ग्रेस आगे चल भी रही थी। इस समय कॉन्ग्रेस प्रवक्ता और नेता जश्न के मूड में थे। इस दौरान ना ही राहुल गाँधी और ना ही बाकी कॉन्ग्रेस नेता EVM पर अथवा चुनावी पर प्रश्न प्रक्रिया उठा रहे थे।
कुछ कॉन्ग्रेस प्रवक्ता बता रहे थे कि भाजपा 20 सीट भी नहीं पार करेगी जबकि कुछ अति उत्साही प्रवक्ता प्रधानमंत्री मोदी को ही जलेबी भेजने को लेकर अट्टाहास कर रहे थे।
जब चुनाव नतीजे के रुझानों में कुछ देर के बाद भाजपा आगे होने लगी और कॉन्ग्रेस को लगा कि उनसे जनता का मूड भाँपने में गलती हो गई है तो उन्होंने अपनी पुरानी ट्रिक लगाना चालू कर दी। सबसे पहले कॉन्ग्रेस के राज्यसभा सांसद जयराम रमेश ने प्रलाप चालू किया। उन्होंने दावा किया कि चुनाव आयोग वोटों की गिनती बताने में देरी कर रहा है।
जयराम रमेश ने कहा कि चुनाव आयोग कि वेबसाइट पर वोटों की गिनती की जानकारी धीमे अपडेट किया जा रहा है। जयराम रमेश ने इसको लेकर एक ज्ञापन भी चुनाव आयोग को दिया। चुनाव आयोग ने जयराम रमेश के इस दावे को हवा हवाई बताया और इसका जवाब भी दिया।
चुनाव आयोग ने कहा, “नतीजों के अपडेट में देरी के आपके बेबुनियाद आरोप को पुष्ट करने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं है। आपके ज्ञापन में हरियाणा या जम्मू-कश्मीर के किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में देरी के बारे में कोई तथ्य भी नहीं है।” जयराम रमेश इस जवाब के बाद भी नहीं माने और आरोप जारी रखे।
चुनाव आयोग के जवाब के बाद राहुल गाँधी ने जब इन चुनावों को लेकर बात की तो उन्होंने भी यही राग दोहराया और हरियाणा में हार स्वीकार करने के बजाय गड़बड़ियों की बात की। कॉन्ग्रेस ने हरियाणा में EVM में गड़बड़ी का रोना एक बार फिर रोया। कॉन्ग्रेस ने वोटिंग में इस्तेमाल हुई बैट्री को लेकर प्रश्न उठाए।
कॉन्ग्रेस नेताओं ने दावा किया जहाँ उनकी हार हुई वहाँ EVM की बैट्री 99% थी। उन्होंने EVM में छेड़छाड़ का आरोप लगाया। हालाँकि, सच यह है कि EVM मशीन में 8 वोल्ट की बैट्री लगी होती है। यह बैट्री पूरे एक चुनाव तक चल जाती है, कई बार उसके बाद यह बची रहती है।
इंडियन एक्सप्रेस को चुनाव आयोग से जुड़े लोगों ने बताया है कि इस 8 वोल्ट की बैट्री में जब 7.4 वोल्ट की क्षमता रहेगी तब यह 99% चार्ज ही दिखाएगी। इसके बाद यह अपने आप नीचे जाना शुरू कर देगी। ऐसे में कॉन्ग्रेस का EVM में गड़बड़ी का दावा फिर से धराशायी हो जाता है।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब कॉन्ग्रेस ने अपनी सुविधा के हिसाब से चुनाव प्रक्रिया और EVM को कठघरे खड़ा किया हो। इससे पहले लोकसभा चुनाव में जब भाजपा बहुमत के आँकड़े से नीचे रह गई और कॉन्ग्रेस समेत बाकी पार्टियों की सीटों में इजाफा हुआ तब उन्होंने EVM पर प्रश्न नहीं उठाए। तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में जीतने पर भी EVM सही रही।
जब कॉन्ग्रेस मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्य हारी तो उसने चुनाव प्रक्रिया और EVM पर सवाल उठाने चालू कर दिए। EVM पर सवाल उठाना कॉन्ग्रेस की खीझ को दर्शाता है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट तक EVM को क्लीनचिट दे चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान यह भी कहा था कि वह मात्र इसलिए EVM पर रोक नहीं लगाएँगे क्योंकि किसी को इस पर संदेह है।
कॉन्ग्रेस और उसके नेताओं को यह समझने की जरूरत है कि जब चुनाव होता है तो उसका परिणाम दो ही तरीके का हो सकता है। या तो आपकी पार्टी जीतती है या फिर हार जाती है। जीतने पर आपकी जिम्मेदारी है कि आप सरकार का गठन करें और जनता से किए गए वादे निभाएँ।
हारने पर आपको अपनी समीक्षा करनी होती है और साथ ही सरकार को सकारात्मक तरीके से सहयोग दें और जनता के मुद्दों को उठाएँ। कॉन्ग्रेस के मामले में इसका ठीक उल्टा है। वह जीत के बाद अति उत्साहित हो जाते हैं जबकि हार के बाद अपनी समीक्षा के बजाय आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति करने लगते हैं।
कॉन्ग्रेस 2014 के बाद यह नहीं समझ पा रही कि यदि वह EVM या चुनावी प्रक्रिया पर प्रश्न उठाएगी तो जनता उसको समर्थन नहीं करने वाली। जनता को भी पता है कि भारतीय चुनावी प्रक्रिया बहुत मजबूत है और यहाँ गड़बड़ियों की आशंका नहीं है। कॉन्ग्रेस यह बात जितनी जल्द समझ कर अपने संगठन और विचारधारा को ठीक करके काम करेगी, उतना अच्छा होगा।