Friday, October 18, 2024
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कांग्रेसी शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद: संत समाज हुआ नाराज ड्रामेबाजी से,राखी सावंत की तरह हर हफ्ते सिर्फ बयानबाज़ी, सबूत के नाम पर बत्ती गुल

ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती अपने मुखर विचारों और राजनीतिक सक्रियता, खासकर भाजपा विरोधी रुख के लिए एक उल्लेखनीय व्यक्ति बन गए हैं। हाल ही में, उन्होंने केदारनाथ मंदिर से 228 किलोग्राम सोना गायब होने का आरोप लगाकर सुर्खियाँ बटोरीं, जिसे उन्होंने “सोने का घोटाला” करार दिया। इस आरोप ने काफी विवाद खड़ा कर दिया और स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को फिर से सुर्खियों में ला दिया।

देहरादून। केदारनाथ धाम में सोना चोरी को लेकर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज के सनसनीखेज बयान पर तमाम साधु- संतों ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। संतो ने स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को सलाह दी है कि उन्हें अनर्गल बयानबाजी कर अनावश्यक विवाद पैदा नहीं करना चाहिए। संतों ने स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के बयान को गैर जिम्मेदाराना बताया है।

सोना चोरी होने का प्रमाण दें : श्री महंत रविंद्र पुरी
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष व श्री निरंजनी अखाड़ा के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्र पुरी ने कहा कि केदारनाथ धाम सनातन धर्मावलंबियों की आस्था व विशवास का केंद्र है। वह अत्यंत पवित्र स्थल है। उसकी व्यवस्था व संचालन से जुड़े लोग समर्पित व निष्ठावान हैं। ऐसे में वहां से 230 किग्रा सोना चोरी होने का आरोप लगाना हर किसी को झकझोर रहा है। इसलिए अविमुक्तेश्वरानंद को सोना चोरी होने का प्रमाण देना चाहिए। अविमुक्तेश्वरानंद के पास सोना चोरी होने का कोई प्रमाण है तो उसे पुलिस अथवा कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करें।
पवित्रतम स्थल के लिए सिर्फ अफवाह उड़ाना अनुचित : शंकराचार्य स्वामी अधोक्षजानंद

पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अधोक्षजानंद देवतीर्थ ने कहा कि श्री बदरीनाथ-केदारनाथ समिति एक जिम्मेदार समिति है, जो यात्रा का विधिवत संचालन करती है। किसी श्रद्धालु या किसी संत को आपत्ति या शक है तो मीडिया में शोर मचाने के बजाय संवैधानिक प्रक्रिया अख्तियार कर सक्षम स्तर पर जांच के लिए मांग करनी चाहिए। शंकराचार्य स्वामी अधोक्षजानंद ने कहा कि मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय का बयान भी मैंने सुना है। अध्यक्ष ने सारे तथ्य सामने रखे हैं और आरोप लगाने वाले को चुनौती दी है कि यदि उनके पास कोई आधार है या तथ्य है तो वह अदालत में जाएं, जनहित याचिका लगाएं, जांच कराएं। बेवजह बात का बतंगड़ न बनाएं। उन्होंने कहा कि केदारनाथ धाम में करोड़ों-करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था है। ऐसे महान पवित्रतम स्थल के लिए सिर्फ बातें और अफवाह उड़ाना अनुचित है। इससे श्रद्धालुओं की श्रद्धा को आघात लगता है। जिसने भी वहां सोना दिया है, वो भाव-भक्ति से दिया है। राजनैतिक टिप्पणी करना गैर जिम्मेदाराना कार्य है।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद पर जांच बैठाई जाए : स्वामी आनंद स्वरूप महाराज

शांभवी पीठाधीश्वर और शंकराचार्य परिषद के अध्यक्ष स्वामी आनंद स्वरूप महाराज ने कहा कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का बयान कितना तथ्यपूर्ण है और कितना सत्यता है, यह मैं नहीं कह सकता। मगर अविमुक्तेश्वरानंद महाराज राखी सावंत की तरह हर सप्ताह कोई न कोई सनसनी फैला देते हैं। पिछली बार आरोप लगाया गया कि सोने की जगह पीतल लगा दिया गया। अब आरोप लगाया जा रहा है कि 228 किलो सोना गायब हो गया। इस प्रकार रोज-रोज अनर्गल राजनैतिक बयान देना एक सन्यासी के लिए शोभा नहीं देता है। उन्होंने कहा कि अभी शंकराचार्य का विवाद समाप्त नहीं हुआ। सुप्रीम कोर्ट में अभी मामला चल रहा है। उस पद पर स्टे है, फिर भी शंकराचार्य नाम का दुरुपयोग करके इस प्रकार का बयान देना निंदनीय और असहनीय है। उन्होंने उत्तराखंड सरकार से मांग की कि अविमुक्तेश्वरानंद महाराज पर जांच बैठाई जाए कि आखिर ये हर रोज इस प्रकार का बयान क्यों दे रहे हैं, अनर्गल प्रलाप क्यों कर रहे हैं।
श्रद्धालुओं को भटकाने और सरकार को बदनाम करने का षड्यंत्र – महामंडलेश्वर रूपेंद्र प्रकाश महाराज

प्राचीन अवधूत मंडल के प्रमुख महामंडलेश्वर रूपेंद्र प्रकाश महाराज ने कहा कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद कांग्रेस प्रवक्ता के रूप में जिस प्रकार बयान दे रहे हैं, उन्हें कोई बयान देने से पूर्व वो प्रत्यक्ष आकर देखें कि चोरी जैसी कोई घटना हुई अथवा नहीं। केवल एक पार्टी को खुश करने के लिए अविमुक्तेश्वरानंद ऐसा कर रहे हैं। ये उनको शोभा नहीं देती। यह केवल श्रद्धालुओं को भटकाने और उत्तराखंड सरकार को बदनाम करने के लिए षड्यंत्र है।

 

एक कट्टर कांग्रेस समर्थक

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद कांग्रेस पार्टी के समर्थन के लिए जाने जाते हैं। वे राजनीतिक चर्चाओं में सक्रिय रूप से भाग लेते रहे हैं, अक्सर भाजपा की नीतियों की आलोचना करते रहे हैं। 2019 में, उन्होंने वाराणसी लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ उम्मीदवार उतारने का प्रयास किया। 2024 तक, उन्होंने गौ गठबंधन के तहत सफलतापूर्वक उम्मीदवार उतारकर अपनी राजनीतिक भागीदारी को और अधिक प्रदर्शित किया।
प्रारंभिक जीवन और शंकराचार्य का उदय
उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले की पट्टी तहसील के ब्राह्मणपुर गांव में उमाशंकर उपाध्याय के रूप में जन्मे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की, जहाँ उन्होंने शास्त्री और आचार्य की डिग्री हासिल की। ​​छात्र राजनीति में उनकी भागीदारी ने 1994 में छात्र संघ चुनाव में उनकी जीत का मार्ग प्रशस्त किया, जिससे कम उम्र से ही उनकी नेतृत्व क्षमता का पता चला।
सक्रियता और धार्मिक नेतृत्व
अपने पूरे करियर के दौरान, स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद विभिन्न कारणों के मुखर समर्थक रहे हैं। उन्होंने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण के दौरान मंदिरों को तोड़े जाने का सक्रिय रूप से विरोध किया। 2008 में, उन्होंने गंगा नदी को राष्ट्रीय नदी घोषित करने के लिए लंबी भूख हड़ताल की, जो अस्पताल में भर्ती होने और अपने गुरु द्वारा रोकने के निर्देश के बाद ही समाप्त हुई।
शंकराचार्य के रूप में नियुक्ति
सितंबर 2022 में अपने गुरु जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की मृत्यु के बाद, स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिष पीठ का शंकराचार्य घोषित किया गया। उनकी नियुक्ति स्वामी सदानंद सरस्वती के साथ हुई, जिन्हें शारदा पीठ द्वारका का शंकराचार्य नामित किया गया था।
विवाद और वर्तमान रुख
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद अक्सर अपने साहसिक बयानों और कार्यों के कारण खबरों में रहते हैं। हाल ही में, उन्होंने दिल्ली में केदारनाथ मंदिर की प्रतिकृति के निर्माण की आलोचना की, यह तर्क देते हुए कि मूल मंदिर हिमालय में है। उनकी टिप्पणियाँ अक्सर बहस को जन्म देती हैं और उन्हें मीडिया के ध्यान के केंद्र में रखती हैं।
विरासत और प्रभाव
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का एक छात्र नेता से एक प्रतिष्ठित शंकराचार्य और मुखर राजनीतिक आलोचक बनने का सफ़र धार्मिक और राजनीतिक दोनों क्षेत्रों में उनकी गतिशील भूमिका को उजागर करता है। कांग्रेस पार्टी के लिए उनकी निरंतर सक्रियता और समर्थन उन्हें समकालीन भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में स्थापित करता है।

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