क्या यह सच है कि मजार दरगाह और पक्का कब्रिस्तान हराम है इसीलिए अरब में एक भी मजार दरगाह और पक्का कब्रिस्तान नहीं है
इस्लाम एकईश्वरवाद (तौहीद) मे आस्था का मज़हब है। इसके अनुसार सिवाय एक ईश्वर के किसी के पास कोई शक्ति नहीं है। सब उसके सामने मोहताज होते है कोई दूसरी शक्ति काम नहीं करती। और मृत्यु के बाद किसी के पास कोई अधिकार नहीं होता। और ईश्वर के साथ किसी को साझेदार समझना यह इस्लाम का सबसे बड़ा गुनाह (शिर्क) माना जाता है।
पक्की क़ब्रे बनाना और कब्रो पर कोई इमारत बनाना इस्लाम में इसकी इजाजत नहीं है और पैगंबर मोहम्मद रसूलुल्लाह (ﷺ) के हुक्म के मुताबिक एक हदीस इस प्रकार है।
“हजरत जाबिर रजि. से रिवायत है की रसूलुल्लाह (ﷺ) ने पक्की कब्रे बनाने और और उनपर बैठने और इमारत तामीर करने से मना किया है” Reference : Sahih Muslim 2245
लेकिन सूफी लोगों की आस्था होती है कि उनके गुरु को ईश्वर स्पेशल शक्ति देता है और उनके पास कुछ अधिकार होते हैं। इसलिए वह उनकी पक्की कब्र बना उनसे मन्नत (दुआएं) मांगने जाते है ।
कि अगर उनके हवाले से मांगा जाए तो खुदा जल्दी दुआएं स्वीकार करता है। क्योंकि वह ईश्वर के पसंदीदा बंदो में से थे और उन पर खास ईश्वर की कृपा होती है। और खुदा उनकी बातों को रद्द नहीं करता। और कब्र या मजार के कारण वह अपने गुरु से हमेशा लगाव महसूस करते हैं अगर उनकी कोई निशानी ना हो तो वह कैसे उनको याद करेंगे।
इसी के लिए वह पैगंबरो कि कब्र का उदाहरण देते हैं। उनकी कब्रों पर भी तो इमारते बनी हुई है। और शुरू के लोगों ने इस्लाम को बेहतर तरीके से समझा था। इसके बावजूद मक्का मदीना शहर में और ौ दूसरी ् जगहों पर पुरानी ऐतिहासिक कब्रे मौजूद मिलती है । जिसके कारण लोगों की आस्था उनसे जुड़ी रहती है।
यह वह कब्रिस्तान है जिसमें पैगंबर मोहम्मद उनके परिवार और उनके साथियों की कब्र सऊदी अरब के मदीना शहर में मौजूद थी।
अगर इस्लाम में दरगाह बनाना जाईज होता या उसकी कोई अहमियत होती तो अम्बिया अलैहि. की दरगाहें बनती जबकि कुछ को छोडकर बाकी सब अम्बिया की कब्रों का पता तक नहीं है.
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आईशा रजि. का बयान है कि रसूल सल्ल. ने फ़रमाया, “अल्लाह कि लानत हो यहूद और नसारा पर उन्होंने अपने अम्बिया कि कब्रों को सजदा (इबादत) गाह बना लिया” (बुखारी:१३३०, नसाई:७०६, मुस्लिम:८६२)
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आईशा रजि. से रिवायत है कि रसूल सल्ल. ने फ़रमाया, “यहूद और नसारा में जब कोई सालेह (नेक) शख्स मर जाता तो उसकी कब्र पर मस्जिद तामीर कर देते, फिर उसका बुत उसमें रखते. अल्लाह के नजदीक ये लोग सारी मखलूक में बुरे है” (बुखारी:१३४१, नसाई:७०७)
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इब्ने अब्बास रजि. बयान करते है कि अल्लाह के रसूल सल्ल. ने फ़रमाया, “सबसे बुरे वोह लोग होंगे जिन पर क़यामत कायम होगी और वो लोग जो कब्रों को मस्जिदों (इबादत गाहो) की हैसियत देते है.” (मुसनद अहमद, इब्ने हब्बान-सही)
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आप सल्ल. ने कब्र को पुख्ता (पक्की) करने, उस पर (मुजावर बनके) बैठने और उस पर ईमारत बनाने से मना फ़रमाया. (अबू दावूद:३२२५, मुस्लिम:१६३९, नसाई:२०३२, इब्ने माजा:९२३) (जाबिर बिन अब्दुल्लाह रजि.)
जियाराते कुबूर (कब्रों की जियारत)
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बुरैदह रजि. का बयान है कि रसूल सल्ल. ने फ़रमाया, “मैंने तुम्हे कब्रों की जियारत से मना किया था, अब उनकी जियारत करो, बेशक कब्रों की जियारत मौत याद दिलाती है” (मुस्लिम:१६५१, अबू दावूद:३२२५, नसाई:२०३६)
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अबू हुरैरह रजि. से रिवायत है कि आप सल्ल. ने अपनी कब्र पर भी बार-बार आने से मना किया और फ़रमाया, “मेरी कब्र को ईद न बनाना अलबत्ता मुझ पर दुरूद भेजो कि तुम जहां कही भी हो. तुम्हारा दुरूद मुझ तक पहुँच जायेगा” (अबू दावूद:२०४२)
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अबू हुरैरह रजि. का बयान है कि नबी सल्ल. जब कब्रिस्तान तशरीफ़ ले गये तो दुआ पढ़ी, “अस्सलामु अलैकुम दारा कौमिन मोमिनीना व इन्ना इन्शा अल्लाहु बिकुम लाहिकून” यानि “ए इन घरों के मोमिन लोगो, तुम पर सलामती हो और हम भी इन्शाअल्लाह तुम्हारे साथ मिलने वाले है.” (मुस्लिम:३९५, अबू दावूद: ३२३७)
वजाहत (बात का मतलब): कब्रिस्तान में नमाज पढ़ना या तिलावते कुरआन करना या कब्र को मकामे कुबूलियत समझना या साहिबे कब्र के वास्ते या वसीले से दुआ करना या खुद उसी को अपनी हाजात (जरूरियात) पेश करना या कब्रों पर मेले, उर्स और कव्वाली वगैरह का एहतेमाम करना इन सब कामो का अहादीसे रसूल सल्ल. और अमले सहाबा रजि. में कोई नामो निशान तक नहीं मिलता (उमर फारुक सईदी हाशिया-अबू दावूद जिल्द ३ सफा:५८३)
मजारों पे चादर चढ़ाना और क़ब्र परस्ती की हकीकत
ये कहाँ तक सही है और क़ुरआन और हदीस में इसका क्या हुक्म है ?जब आप उन लोगों से सवाल करें के क्यों आप क़ब्र वालों से, मजार वालों से मांगते हो तो ये कहते हैं के हम उनसे नहीं मांगते,हम तो उनको वसीला बनाते हैं के वो (क़ब्र वाले ) अल्लाह के नज़दीकी हैं इसलिए वो हमारी बात उन तक पहुंचाएंगे तो अल्लाह हमारी दुआ कुबूल करेगा.
मगर अल्लाह फरमाता है :
देखो, इबादत खालिस अल्लाह ही के लिए हैं और जिन लोगों ने उसके सिवा औलिया बनाए हैं वो कहते हैं के हम इनको इसलिए पूजते हैं की ये हमको अल्लाह के नज़दीकी मर्तबा तक हमारी सिफारिश कर दें, तो जिन बातों में ये इख़्तेलाफ़ करते हैं अल्लाह उनमे इनका फैसला कर देगा, बेशक अल्लाह झूटे और नाशुक्रे लोगों को हिदायत नहीं देता.
(सुरह जुमर, आयत नंबर 3)
गौर करने की बात है की हमारी दुआओं को अल्लाह के सिवा कोई क़ुबूल करने वाला नहीं, बस अल्लाह ही हमारा माबूद है, फिर कुछ नाशुक्रे लोग अल्लाह को भूल कर उनके बनाए हुए इंसानो से फ़रियाद करते हैं और उनसे भी जो के क़ब्र के अंदर है अपनी हाजत बयान करते हैं जबकि अल्लाह फरमाता है:
भला कौन बेक़रार की इल्तिजा क़ुबूल करता है, और कौन उसकी तकलीफ को दूर करता है,और कौन तुमको ज़मीन में जानशीन बनाता है, (ये सब कुछ अल्लाह करता है) तो क्या अल्लाह के सिवा कोई और भी माबूद है (हरगिज़ नहीं ) मगर तुम बहुत कम गौर करते हो.
(सुरह अल-नमल , आयत नंबर 62)
अल्लाह के सिवा कोई हमे नफा या नुक्सान पहुंचने वाला नहीं है, फिर क़बर वाले हमे क्या नफा पंहुचा सकते हैं, फिर कुछ नासमझ लोग क़ब्र वालों से ही उम्म्दी लगाए बैठे हैं और उन्ही से माँगना जायज़ समझते हैं जो की सरासर शिर्क है.
अल्लाह फरमाता है:
और ये के (ऐे मुहम्मद सब से) यकसू हो दीन-ए-इस्लाम की पैरवी किये जाओ, और मुशरिकों में से हरगिज़ न होना,और अल्लाह को छोड़ कर किसी ऐसी चीज़ को न पुकारना जो न तुम्हारा कुछ भला कर सके,और न कुछ बिगाड़ सके. अगर ऐसा करोगे तो ज़ालिमों में हो जाओगे.
(सुरह युनूस, आयत 105-106)
मरने के बाद सबका मामला अल्लाह के सुपुर्द होता है, वो हमे नहीं सुन सकते. उन तक जब हमारी आवाज़ ही नहीं पहुंच सकती तो फिर वो हमारी दुआओं के सिफारिशी कैसे बन जायेंगे.
क़ुरआन में अल्लाह का फरमान है :
और ये जिन्दे और मुर्दे बराबर नहीं हो सकते, अल्लाह जिसको चाहता है सुना देता है.और तुम इनको जो अपनी क़ब्रों में दफन हुए हैं इनको नहीं सुना सकते.
(सुरह फातिर, आयत 22 )
ये क़ब्र वाले न तो हमे सुन सकते हैं और ही जवाब दे सकते हैं . गौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फरमाता है:
और उस शख्स से बढ़ कर कौन गुमराह हो सकता है जो ऐसे को पुकारे जो क़यामत तक उसे जवाब न दे, और उनको इनके पुकारने की ही खबर न हो.
(सुरह अहकाफ, आयत नंबर 5)
जो क़ब्रों में हैं, बेशक वो औलिया हों, पीर हों या पैगम्बर हों, ये भी हमारी तरह के ही मखलूक हैं जिन्हे अल्लाह ने पैदा किया. इन लोगों ने अपनी तरफ से किसी चीज़ की तख़लीक़ नहीं की फिर भी कुछ जाहिल लोग उनसे मदद की गुहार लगाते हैं . गौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फरमाता है:
और जिन लोगों को ये अल्लाह के सिवा पुकारते हैं वो कोई चीज़ भी तो पैदा नहीं कर सकते बल्कि खुद वो पैदा किये गए , बेजान लाशें हैं. इनको ये भी नहीं मालूम के ये कब उठाये जायेंगे.
(सुरह नहल आयत नंबर 20-21)
क़ब्रों पे मुजावर बन कर बैठने वाले वो लोग, जो क़ब्रों की पूजा करते हैं, क़ब्र वाले की इबादत करते हैं और ये समझते हैं की ये उनकी हाजते पूरी करेंगे, तो ये सच में अँधेरे में हैं और ये बदतरीन लोग हैं.
रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि० ने फ़रमाया “मेरी उम्मत के बदतरीन लोग वो होंगे जो क़ब्रों की इबादत करेंगे, और जिनकी ज़िन्दगी ही में उनके ऊपर क़यामत आएगी.”
( मुसनद अहमद, हदीस नंबर 4844)
और जिन लोगों ने क़ब्रों को सजदहगाह बन लिया है और उनपे माथा टेकते हैं और उनसे अक़ीदत रखते हैं ऐसे लोगों पे अल्लाह की फटकार है जैसा की अल्लाह के रसूल ﷺ की हदीस है के
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि० से रिवायत है के जब आप सल० अलैहि० मर्ज़-ए-वफ़ात में मुब्तिला हुए तो आप अपनी चादर को बार बार अपने चेहरे पे डालते और कुछ अफाका होता तो चादर अपने चेहरे से हटा लेते. आप सल० अलैहि० ने उस इज़्तिराब-ओ-परेशानी की हालत में फ़रमाया :
“यहूद-ओ-नसारा पे अल्लाह की फटकार जिन्होंने अपने नबियों की क़बर को सजदहगाह बन लिया”
आप सल० अलैहि० ये फरमा कर उम्मत को ऐसे कामों से डराते थे.
(सही बुखारी, हदीस नंबर 435-436)
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं
“ऐे मेरी उम्मत के लोगों, खबरदार हो जाओ के तुमसे पहले जो लोग गुज़रे हैं उन्होंने अपने औलिया और अम्बिया की कब्रों को अपना इबादतगाह बन लेते थे, खबरदार..तुम कबरों को इबादतगाह मत बनाना, मैं तुम्हे ऐसा करने से मना करता हूँ”
(मुस्लिम 1188)
मुहम्मद सल० अलैहि० ने दुआ की “ऐे अल्लाह मेरी क़बर को इबादत की जगह न बना देना, उनलोगों पे कहर बेहद खौफनाक था जिन्होंने अपने पैगम्बरों की क़ब्रों को सजदहगाह बना लिया “
(मोअत्ता मालिक 9/88)
आज अगर कोई अल्लाह का नेक बन्दा वफ़ात पाता है तो कुछ लोग उनकी क़ब्रों को पक्का बना देते हैं फिर उसे मज़ार की शकल दे देते हैं .
अल्लाह के रसूल ﷺ ने तो क़ब्रों को पक्का बनाने, या उनपे प्लास्टर करने और उनको इमारत बनाने से भी मना फ़रमाया है :
हज़रते जाबिर रजि० से रिवायत है के रसूलल्लाह ﷺ ने क़ब्रो को पक्का बनाने से या उनको बैठने की जगह बनाने से या उनपर कोई इमारत तामीर करने मन फ़रमाया है.
(सही मुस्लिम, हदीस नंबर 970, अबु दाऊद हदीस नंबर 3225)
जो लोग क़ब्रों पे मुजावर बन बैठे हैं उनके लिए बहुत बड़ा अज़ाब है जैसा के अल्लाह के रसूल ﷺ की ये हदीस है :
हज़रते अबु हुरैरह रजि० से रिवायत है की रसूलल्लाह ﷺ फरमाते हैं “जो शख्स किसी क़ब्र पर (मुजावर बन कर) बैठे उस से बेहतर है के वो आग के अंगारों पर बैठे और आग उसके जिस्म और कपड़ों को जला कर कोयला बन दे”
(सही मुस्लिम हदीस नंबर 971)
खास कर एक तबका हमारे यहां है जो इमाम अबु हनीफा के कौल को मानते हैं और खुद को हनफ़ी कहते हैं ….तो क्या अबु हनीफा से ऐसी कोई दलील मिलती है के हमे क़ब्रों की पूजा करनी चाहिए, या क़ब्र पे चादर चढ़ानी चाहिए या क़बर वालों से मदद की गुहार लगानी चाहिए?
आइये देखते हैं उनका कौल क्या है.
इमाम अबु हनीफा फरमाते हैं “अम्बिया और औलिया की क़ब्रों पर सजदा करना, तवाफ़ करना , नज़राना चढ़ाना हराम व कुफ्र है”
(दुर्रे मुख्तार , जिल्द 1 सफहा नंबर 53)
क़ब्र परस्तों का नजरिया और इनकी दलील :
क़ब्र की पूजा करने वाले और इनसे मदद तलब करने वाले अक्सर ऐसी किताबों से दलील इकटठी करके लोगों को बरगलाते हैं जो न तो हदीस में कही दर्ज़ है और न ही सहाबा रजि० या तबो ताबइन से कही साबित है बल्कि कुछ मौलवी मुल्लाओं ने अपनी दूकान चलाने के लिए अपने नज़रियात को किताब की शक्ल में पेश किया और ये ही उनके लिए दलील बन गयी जिनपे वो बहस कर सकें और ऐसे मौलवियों की रोज़ी रोटी चलती रहे.
कुछ पाखंडी मौलवियों ने तो हद्द कर दी के वो भोले भाले मुसलमानो को बरगलाने के लिए हदीस को तोड़ मरोड़ कर पेश करते हैं और फिर उनसे कहते हैं के फलां फ़िरक़े के लोग तुम्हे भटका रहे हैं और हमारी बात सही है. आइये उनके तोड़ मरोड़ कर पेश किये गए एक हदीस पे गौर करें जिन्हे वो क़ब्रों/मजारों पर चादर चढाने के लिए दलील के रूप में पेश करते हैं
हज़रते इब्ने अब्बास रजि० से रिवायत है के रसूलल्लाह ﷺ की क़ब्र मुबारक पर सुर्ख रंग की चादर डाली गयी थी
ये वो हदीस है जिसपे ये लोग बहस करते हैं. अब सही हदीस पे गौर करते हैं :
हज़रते इब्ने अब्बास रजि० से रिवायत है के रसूलल्लाह ﷺ की क़ब्र में सुर्ख रंग की मखमली चादर रखी गयी थी
(सुनन निसाई हदीस 2011, अल तिर्मिज़ी 1048)
आप गौर करें के सही हदीस में है के चादर उनकी क़ब्र के अंदर रखी गयी थी मगर इन्होने उसे क़ब्र के ऊपर कर दिया और क़ब्रों पर चादर चढाने की दलील बना दी.
अब इतनी सारी दलीलों के बाद भी कोई न माने तो फिर उसका मामला अल्लाह के सुपुर्द है.
बस आप सभी से दरख्वास्त है के जहाँ तक हो सके ऐसे शिर्किया कामों से खुद को बचाएँ और सिर्फ अल्लाह ही से मदद मांगे
अल्लाह हम सबको क़ुरआने करीम और सुन्नते नबवी पे अमल करने की तौफ़ीक़ आता करे
कब्र परस्ती का रद्द हदीस की रौशनी में
इस सहीह हदीस से मालूम हुआ की पक्की क़ब्रे बनाना और उन पर इमारत तामीर करना हराम है।
✅सवाल : रसूलुल्लाह (ﷺ) के इंतेक़ाल के बाद आप (ﷺ) की कब्रे-मुबारक घर में किस वजह से बनाई गयी?
यही वजह थी की रसूलुल्लाह (ﷺ) की कब्र-मुबारक आप (ﷺ) के घर में ही बनाई गयी ।
✅सवाल : रसूलुल्लाह (ﷺ) की कब्र-मुबारक आप (ﷺ) के घर में बना देने के बाद, मौजूद घर की इमारत को हटा कर कब्रे-मुबारक को नुमाया किस वजह नहीं किया गया ?
📚Reference : Sahih Bukhari 1390
📚Reference : Sahih Muslim 2242 (968)
“………तुम से पहले के लोग अपने अम्बिया और स्वालेहीन (नेक लोग) की कब्रो को मस्जिद (places of worship and prayers / सज्दागाहें) बना लिया करते थे, कब्रो को मस्जिद मत बनाना,में तुम को इससे मना करता हुँ”
📚Reference : Sahih Muslim 1188 (532)
☑जवाब : इस सवाल का जवाब यह हदीस बेहतर दे रही है :-
📚Reference : Sahih Muslim 2243 (969)
📚Reference : Sunan Abu Dawud 2042