Saturday, March 15, 2025
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एक विश्लेषण:बीच बाजार नंगे खड़े हो जाओ और कहो लोग हंस रहे,अरे बेवकूफों पूरा प्रदेश उसे कुर्सी कुमार के नाम से जानता है

बिहार भाजपा ने सत्ता में हुए परिवर्तन को भांपने और खुद की कोई तैयारी करने के बजाय फिर नीतीश कुमार को कोसना शुरू कर दिया,नीतीश तो प्रसिद्ध ही कुर्सी कुमार के नाम से है खुद की गलतियां भी तो देखो शहंशाहों या इतने साल मलाई चाट कर ठंडे हो गए हो।

जदयू तीसरे नंबर की पार्टी बनी थी और उसे सिर्फ 43 सीटें मिली थी। जबकि भाजपा के खाते में 74 सीट गई थी। बावजूद इसके भाजपा की ओर से नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री के लिए आगे किया गया था। नीतीश कुमार के पलटी मारने को लेकर अब भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने जबरदस्त तरीके से उन पर निशाना साधा है।

भूल गए जायसवाल साहब की जरूरत इनको भी उतनी ही थी बहुमत नही था इनका…

बिहार में राजनीतिक उठापटक के बीच मुख्यमंत्री पद से नीतीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया है। हालांकि, अब वह एक बार फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। दरअसल, भाजपा और जदयू का गठबंधन टूट चुका है। इस बात का ऐलान नीतीश कुमार की ओर से किया गया। लेकिन अब नीतीश कुमार के पार्टी जदयू का गठबंधन राजद और कांग्रेस के साथ हो रहा है। आपको बता दें कि 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और जदयू एक साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी। जदयू तीसरे नंबर की पार्टी बनी थी और उसे सिर्फ 43 सीटें मिली थी। जबकि भाजपा के खाते में 74 सीट गई थी। बावजूद इसके भाजपा की ओर से नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री के लिए आगे किया गया था। नीतीश कुमार के पलटी मारने को लेकर अब भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने जबरदस्त तरीके से उन पर निशाना साधा है।

भाजपा की ओर से साफ तौर पर कहा गया है कि नीतीश कुमार ने जनादेश का अपमान किया है। अपने बयान में संजय जायसवाल ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश के बाद ही हमने 2020 में नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया था। लेकिन उन्होंने हमारे साथ-साथ बिहार की जनता को धोखा दिया है। उन्होंने जनादेश के साथ खिलवाड़ किया है। उन्होंने कहा कि हमने NDA के तहत 2020 का चुनाव एक साथ लड़ा, जनादेश जद-यू और बीजेपी को था। हमने ज्यदा सीटें जीतीं, उसके बावजूद नीतीश कुमार को सीएम बनाया गया। आज जो कुछ भी हुआ वह बिहार के लोगों और भाजपा के साथ विश्वासघात है। इसके साथ ही नीतीश कुमार के राजद के साथ जाने को लेकर भी संजय जायसवाल से पूछा गया संजय जायसवाल ने साफ तौर पर कहा कि है तो नीतीश कुमार ही बताएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि नीतीश कुमारको बताना चाहिए कि तब और अब के भ्रष्टाचार में क्या अंतर है।

श्रीमान जी गठबंधन के नाम पर मलाई दोनो के क्षेत्रीय नेताओं ने खूब बटोरी….

आपको बता दें कि 2017 में नीतीश कुमार ने राजद के साथ गठबंधन तोड़ते वक्त तेजस्वी के ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों का हवाला दिया। केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता आरके सिंह ने कहा कि ये हमारे राज्य का दुर्भाग्य है, 15 साल राजद की सरकार रही, वे (जदयू) पहले भी राजद के साथ गए थे फिर वापस आए, अब फिर से उनके साथ जा रहे हैं। इसमें बिहार की भलाई नहीं नहीं है। ये विकास की नहीं सत्ता की राजनीति हो रही है। भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन ने कहा कि हम अपनी पार्टी को मजबूत करते हैं, हम किसी अन्य पार्टी को कमजोर नहीं करते हैं। हमने बिहार के लोगों के व्यापार और रोजगार के लिए ईमानदारी से काम किया है।

आखिरी और मुख्य बात…. कोर हिंदू वोटर जो बीजेपी की रीड की हड्डी है उसको भरपूर रुलाया….

बिहार भाजपा का कोई नेता अपने जिले के बाहर कीमत ही नही रखता बस मोदी के नाम की खा रहे

 

2014 में लोकसभा चुनाव हुए। नरेंद्र मोदी की प्रचंड लहर थी। बिहार में पार्टी को 22 सीटें मिलीं। उसकी सहयोगी लोजपा को 6 और रालोसपा को 3 सीटें मिलीं। इस तरह 40 में से 31 सीटें राजग गठबंधन ने अपने नाम कर ली। लेकिन, इसके डेढ़ वर्षों बाद विधानसभा चुनाव हुए। 243 में से 151 सीटें राजद-जदयू गठबंधन ने अपने नाम कर लिया। भाजपा 53 पर सिमट गई। ये सब उसके बावजूद हुआ, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धुआँधार 31 रैलियाँ की।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शायद ही किसी राज्य के चुनाव में इतनी रैलियाँ की हों, लेकिन इसके बावजूद हुई भाजपा की इस हार ने शायद पार्टी को इतना डरा दिया कि जब 2017 में नीतीश कुमार वापस NDA में आए तो उसने बाहें फैला कर उनका स्वागत किया और फिर 2020 के विधानसभा चुनाव में ज्यादा सीटें होने के बावजूद उन्हें ही मुख्यमंत्री के पद पर सुशोभित देखना पसंद किया। क्या भाजपा को बिहार में अकेले जाने से डर लगता है?

इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि बिहार में भाजपा के पास एक सर्व-स्वीकार्य नेता नहीं है, जिसके नाम पर वो पूरे राज्य में वोट माँग सके। जो बिहार में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं, उनका खुद का जनाधार पश्चिम चंपारण जिले से बाहर कहीं नहीं है। उन्होंने भले ही लोकसभा में हैट्रिक लगाईं हो और कभी उनके पिता भी इसी पार्टी से बतौर सांसद हैट्रिक लगा चुके हों, लेकिन तब भी आस-पड़ोस के जिले के अलावा बाकी की जनता शायद ही उन्हें जानती हो।

इनके पड़ोसी जिले के ही सांसद हैं राधा मोहन सिंह, उन्होंने भी 2019 में लोकसभा जीत की हैट्रिक लगाई। 6 बार सांसद रहने वाले राधा मोहन सिंह ने पहली जीत 1989 में ही दर्ज की थी। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और केंद्र में 5 साल कृषि मंत्री रहने के बावजूद भाजपा उनके नाम पर पूर्वी चंपारण से बाहर वोट नहीं माँग सकती। चंपारण में इन दोनों की आपसी अदावत की भी चर्चाएँ अंदरखाने में होती रहती हैं। फ़िलहाल राधा मोहन सिंह भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं।

 

अब बात करते हैं भाजपा के दोनों उप-मुख्यमंत्रियों की। तारकिशोर प्रसाद ने कटिहार विधानसभा क्षेत्र से चौथी बार जीत दर्ज की है, लेकिन पूर्वी बिहार से बाहर अधिकतर ऐसे लोग हैं जिन्होंने इनका नाम पहली बार तभी सुना जब इन्हें डिप्टी सीएम का पद दिया गया। दूसरी उप-मुख्यमंत्री रेणु देवी बेतिया से चौथी बार विधायक बनी हैं, लेकिन इन्हें पूरे पश्चिम चंपारण में भी सभी नहीं जानते होंगे। वैसे भी ये बिहार का सबसे बड़ा जिला है।

पटना के नितिन नवीन युवाओं के बीच लोकप्रिय हैं और भाजयुमो बिहार के प्रदेश अध्यक्ष भी, लेकिन 4 बार विधायक बनने के बावजूद राजधानी से बाहर वो अपनी छवि नहीं बना पाए और अनुभवी नेताओं की फ़ौज में खोए-खोए से हैं। भाजपा के अन्य अनुभवी नेताओं में आते हैं – सुशील कुमार मोदी, नंदकिशोर यादव, प्रेम कुमार और शाहनवाज हुसैन। सुशील कुमार मोदी को लेकर लोगों और कार्यकर्ताओं ने गुस्सा इस कदर है कि उन्हें उप-मुख्यमंत्री का पद इस बार नहीं दिया गया था।

उनकी पूरी की पूरी राजनीति लालू यादव और उनके परिवार के भ्रष्टाचार के खुलासों पर ही टिकी रह गई। नंदकिशोर यादव बढ़िया बोलते हैं, नेता प्रतिपक्ष और कई बार मानते रहे हैं। लेकिन, 6 बार विधायक रहने के बावजूद वो चर्चा में नहीं रहते। कोई व्यक्ति 8 बार विधायक रहा हो (2005 में बिहार में दो बार चुनाव हुए थे) तो उसका कद अपने-आप बढ़ जाता है। गया के प्रेम कुमार नेता प्रतिपक्ष भी रहे हैं, लेकिन जिले के बाहर उनके नाम पर भी कोई वोट नहीं देगा।

सैयद शाहनवाज हुसैन अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे थे, लेकिन आज बिहार सरकार में मंत्री हैं और वो भी आलाकमान की कृपा से। वरना वो भी नेपथ्य में ही थे। राजीव प्रताप रूड़ी इस बार केंद्रीय मंत्री नहीं बनाए गए। गिरिराज सिंह अपने बयानों की वजह से चर्चा में ज़रूर रहते हैं और कन्हैया कुमार को हरा कर लगातार दूसरी बार केंद्रीय मंत्री भी बने, बिहार में लगभग हर इलाके के लोग उन्हें जानते भी हैं, लेकिन वो खुद कह चुके हैं कि ये उनकी राजनीति का अंतिम चरण है। उनके नाम पर दाँव खेलने का रिस्क भाजपा शायद ही लेगी

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