तहलका (Tehelka) के पूर्व प्रधान संपादक तरुण तेजपाल (Tarun Tejpal) को गोवा के फास्ट ट्रैक कोर्ट ने 2013 में अपनी सहकर्मी के रेप, यौन उत्पीड़न और जबरन बंधक बनाने के सभी आरोपों से बरी कर दिया है. डिस्ट्रिक्ट और सेशन जज ने फैसला सुनाते हुए कहा कि पूरी सुनवाई के दौरान शिकायतकर्ता महिला ने किसी भी तरह का ऐसा व्यवहार नहीं किया, जिससे लगे कि वो यौन उत्पीड़न की पीड़ित हैं. इसे सिर्फ दिखावा कहा जा सकता है.
कोर्ट ने तरुण तेजपाल को 21 मई को बरी किया था. मंगलवार को कोर्ट के फैसले की कॉपी आई. ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 527 पेज के फैसले में एडिशनल सेशन जज क्षमा जोशी ने लिखा, ‘रिकॉर्ड और सबूतों पर विचार करने के बाद… आरोपी को संदेह का लाभ दिया जाता है, क्योंकि शिकायतकर्ता महिला द्वारा लगाए गए आरोपों को साबिक करने वाला ऐसा कोई सबूत नहीं है.’
मिटा दिए गए CCTV सबूत, गवाह को नहीं किया गया पेश’: जानिए क्यों बरी हुए तरुण तेजपाल, सरकार पहुँची बॉम्बे HC
हाल ही में गोवा की एक अदालत ने 8 साल पुराने यौन शोषण के मामले में ‘तहलका’ पत्रिका के पूर्व संपादक तरुण तेजपाल को बरी कर दिया, जिसके बाद उन्होंने अपने शुभचिंतकों का शुक्रिया अदा किया। लेकिन, गोवा कोर्ट ने अपने जजमेंट में ये भी कहा है कि इस मामले की जाँच कर रहे पुलिस अधिकारी (IO) ने कई चूक किए और अभियोजन पक्ष महत्वपूर्ण साक्ष्यों को पेश करने में विफल रहा। यौन शोषण के इस मामले में अब इस फैसले के खिलाफ गोवा सरकार बॉम्बे हाईकोर्ट गई है।
तरुण तेजपाल को बरी किए जाने वाले आदेश में भी लिखा है कि अभियोजन पक्ष इस मामले में अहम CCTV फुटेज को अदालत के समक्ष पेश करने में विफल रहा। एडिशनल सेशन जज क्षमा जोशी ने इस मामले में फैसला सुनाया था। इस मामले में शुक्रवार (मई 21, 2021) को ही फैसला सुनाया गया था, लेकिन जजमेंट की प्रति इसके 4 दिन बाद उपलब्ध कराई गई। जज ने जाँच अधिकारी और पीड़िता के बयानों में कई विरोधाभास पाए।
जाँच अधिकारी और पीड़िता के बयान अलग-अलग थे, लेकिन जाँच अधिकारी ने इस सम्बन्ध में पीड़िता का बयान दर्ज नहीं किया। सबूतों में गड़बड़ी थी। बचाव पक्ष ने इसे अपनी दलीलों में इसका इस्तेमाल करते हुए कहा कि जानबूझ कर ऐसा किया गया है। कोर्ट ने ये भी नोट किया है कि एक गवाह बयान देने के लिए तैयार था, लेकिन फिर भी उसे पेश नहीं किया गया। साथ ही ‘तहलका’ के सर्वर में कुछ जरूरी इमेल्स थे, जिन्हें पेश नहीं किया गया।
जज ने अपने फैसले में कहा कि IO ने जानबूझ कर अपने मातहत कर्मचारियों को निर्देश दिया कि वो ग्राउंड फ्लोर और सेकेंड फ्लोर का CCTV फुटेज डाउनलोड करें, लेकिन फर्स्ट फ्लोर का नहीं। फैसले के अनुसार, IO ने महत्वपूर्ण गेस्ट लिफ्ट का अहम CCTV फुटेज देखा था, जिसमें तरुण तेजपाल और पीड़िता लिफ्ट से बाहर निकल रहे हैं। जज ने कहा, “जानबूझ कर DVR (डिजिटल वीडियो रिकॉर्डर) को सीज करने में देरी की गई और उस CCTV फुटेज को नष्ट कर दिया गया।”
जस्टिस क्षमा जोशी ने कहा कि आरोपित को ‘बेनिफिट ऑफ डाउट (संदेह का लाभ)’ दिया गया है। ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि उनके खिलाफ कोई पुष्ट सबूत अदालत के सामने लाया ही नहीं गया। साथ ही IO ने कभी उस कमरे को भी सील तक नहीं किया,जहाँ DVR रखे हुए थे। ये मामले नवंबर 7, 2013 का है, लेकिन पीड़िता का आरोप है कि अगले दिन फिर उसका यौन शोषण हुआ था। कोर्ट ने अपना आदेश 527 पन्नों में दिया है।
आरोपित के मूलभूत अधिकारों की बात करते हुए कोर्ट ने कहा कि IO ने एक के बाद एक कई गलतियाँ की। लिफ्ट का संचालन करने वाले बॉटम्स को लेकर कोई डेटा नहीं सब्मिट किया गया। साथ ही उस लिफ्ट को बनाने वाली कंपनी से कोई जानकारी नहीं ली गई। आरोपित ने अपने हाथों से लिफ्ट के भीतर क्या किया और उसने बॉटम्स को कैसे दबाए, इस बारे में पीड़िता से कुछ भी जानकारी नहीं ली गई।
कोर्ट के अनुसार, अभियोजन पक्ष ने आरोपित को दोषी साबित करने के लिए की जाने वाली प्रक्रियाओं को पूरा नहीं किया और यही तरुण तेजपाल के बरी होने का कारण बना। तरुण तेजपाल से इस मामले में 20,000 रुपए का पर्सनल बॉन्ड भी भरवाया गया है। बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा बेंच अब इस मामले की सुनवाई करेगी। मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने कहा कि जब तक पीड़िता को न्याय नहीं मिल जाता, राज्य सरकार केस लड़ती रहेगी।
आरोप है कि उन्होंने एक कार्यक्रम के दौरान लिफ्ट में तरुण तेजपाल ने अपनी महिला सहकर्मी का यौन उत्पीड़न किया था। पीड़िता के अनुसार, ये घटना गोवा के ही फाइव स्टार होटल में हुई थी। तरुण तेजपाल मई 2014 से ही जमानत पर बाहर थे। फरवरी 2014 में उनके खिलाफ 2846 पन्नों की चार्जशीट गोवा पुलिस ने दायर की थी। इस मामले की FIR नवंबर 2013 में ही दर्ज की जा चुकी थी।