पाकिस्तान के फील्ड मार्शल सेनाध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर की वाशिंगटन में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जो मेहमाननवाजी की, उसकी वजह सामने आती जा रही है. लेकिन अब सामने आ रहा है कि इस खातिरदारी में मियां मुनीर मेहमान नहीं बल्कि मोहरा था. पाकिस्तानी मीडिया में भी ये खूब चर्चा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने जनरल मुनीर से ईरान के खिलाफ सहयोग करने को कहा है, ताकि हवाई मोर्चे पर पस्त ईरान को जमीन पर भी घुटनों के बल लाया जा सके.
पाकिस्तान की ईरान से लगती करीब 900 किलोमीटर सीमा है. सीमावर्ती प्रांतों में कुर्द विद्रोहियों का भी आतंक है. अमेरिका जानता है कि अयातुल्ला अली खामेनेई का तख्तापलट करना है तो सिर्फ तेहरान ही नहीं, बल्कि ईरान के दूसरे राज्यों में भी विद्रोही संगठनों को जिंदा करना होगा, तभी वहां पश्चिमी देशों के समर्थित सरकार बन पाएगी.
अमेरिका ईरान में पाकिस्तान की उसी तरह की भूमिका चाहता है, जैसे कि उसने अफगानिस्तान में निभाई थी. अमेरिका के एक खुफिया निगरानी विमान BCAN को ईरान-पाकिस्तान सीमा पर देखा गया है, ऐसे में यह माना जा रहा है कि मुनीर की फौज औऱ आईएसआई पहले ही पड़ोसी मुल्क की पीठ में छूरा घोंप दिया है.
पाकिस्तान उन चुनिंदा मुल्कों में से एक है, जिसने ईरान का सांकेतिक तौर पर ही सही, मगर कूटनीतिक समर्थन देने के साथ इजरायल की निंदा की है. लेकिन ईरान-इजरायल युद्ध में शिया-सुन्नी इस्लामिक देशों की खाईं साफ दिख रही है. सऊदी अरब, जॉर्डन जैसे देशों के एयरस्पेस से गुजरती हुईं इजरायल की मिसाइलें दनादन ईरान की राजधानी तेहरान को दहला रही हैं, लेकिन सुन्नी गुट के सरदार सऊदी अरब-यूएई चुप्पी साधे हैं. इसके उलट, जॉर्डन ने ईरान से इजरायल की ओर दागी गईं तमाम मिसाइलें औऱ ड्रोन मार गिराए हैं.