Thursday, September 19, 2024
Uncategorized

वो जगह जहां तालिबानियों की सारी मर्दानगी अंदर घुस जाती है,मुंह भी नही करते इस तरफ,काबुल से सिर्फ 100 किलोमीटर

काबुल: तालिबान भले ही पूरे अफगानिस्तान पर अपना कब्जा होने का दावा कर रहा हो लेकिन सच्चाई यह है कि तालिबान ने यहां की पंजशीर घाटी में घुसने की अभी तक हिम्मत नहीं की है। पंजशीर घाटी पर तालिबान का कब्जा नहीं है। अमरुल्लाह सालेह, जिन्होंने अब खुद को अफगानिस्तान को केयरटेकर राष्ट्रपति घोषित कर दिया है, वह इसी पंजशीर घाटी से आते हैं। सालेह ने साफ कर दिया है कि वह तालिबान के आगे सरेंडर नहीं करेंगे।

पंजशीर प्रांत में उत्तरी गठबंधन का झंडा लहरा रहा है
काबुल पर कब्जे के बाद तालिबान ने अफगानिस्तान के ज्यादातर हिस्सों पर भले कब्जा कर लिया हो लेकिन एक प्रांत अबतक उसकी पहुंच से दूर है और डटकर सामना करने को तैयार भी है. काबुल से सिर्फ 100 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद है पंजशीर प्रांत (Panjshir province). इसका अनुवाद करें तो मतलब होगा ‘फारस के पांच शेर’. पंजशीर प्रांत पर अबतक कोई भी कब्जा नहीं कर पाया है और यह लम्बे वक्त से आजाद क्षेत्र बना हुआ है.

पंजशीर प्रांत का घाटी वाला इलाका देखने में बहुत मनमोहक है. यह अफगानिस्तान के 34 प्रांतों में से एक है, जिसमें 7 जिले हैं, जिनमें 512 गांव मौजूद हैं. 2021 के आंकड़ों के मुताबिक, पंजशीर की जनसंख्या 173,000 के करीब है. इसकी प्रांतीय राजधानी बाजारक है.

अमरुल्ला सालेह यहीं से बना रहे तालिबान के खिलाफ रणनीति

इसी प्रांत में ही अमरुल्ला सालेह (अफगानिस्तान के पूर्व उप राष्ट्रपति) मौजूद हैं. यहीं से उन्होंने दावा किया कि वह अशरफ गनी के भागने के बाद अफगान के केयर टेकर प्रेसिडेंट हैं. उन्होंने पहले भी कहा था कि वह तालिबान के आगे झुकेंगे नहीं.

अमरुल्ला सालेह (Amrullah Saleh) की कुछ तस्वीरें भी इन दिनों इंटरनेट पर घूम रही हैं. इसमें वह अहमद मसूद के साथ दिख रहे हैं. वह तालिबान विद्रोही लीडर अहमद शाह मसूद के बेटे हैं. दावा किया जा रहा है कि अफगान फोर्स के सिपाही मसूद के बुलावे पर पंजशीर में जुट रहे हैं. अहमद शाह मसूद को 9/11 हमले के पहले अल कायदा और तालिबान ने साजिश रचकर मार दिया था.

 

यहीं से उत्तरी गठबंधन तैयार किया जा रहा है जो कि एंटी-तालिबान फ्रंट होगा. पंजशीर में उत्तरी गठबंधन का झंडा भी लहराता देखा गया है. उत्तरी गठबंधन एक मिलिट्री फ्रंट है जो कि 1996 में बनाया गया था. तालिबान के खिलाफ लड़ने वाले इस फ्रंट को ईरान, भारत, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान की तरफ से समर्थन भी मिला था. 1996 से 2001 के बीच तालिबान इसी फ्रंट की वजह से पूरे अफगान पर कब्जा नहीं कर पाया था.

हालांकि, पंजशीर के लिए इसबार तालिबान का मुकाबला इतना आसान नहीं होने वाला, क्योंकि आसपास के सभी इलाकों पर तालिबान कब्जा जमा चुका है और पहले से ज्यादा ताकतवर बनकर लौटा है. इतना ही नहीं उसके आतंकियों के पास एक से बढ़कर एक आधुनिक हथियार हैं.

अफगानिस्तान का ये प्रांत अब भी तालिबान के कब्जे में नहीं, जानिए किन कमांडर्स ने संभाल रखा है मोर्चा?
कौन हैं अफगान के राष्ट्रपति होने का दावा करने वाले अमरुल्लाह? तालिबान से जानी दुश्मनी

 

पंजशीर घाटी में कभी तालिबान का कब्जा नहीं रहा

अफगानिस्तान की राजधानी काबुल सहित देश के ज्यादातर हिस्से तालिबानी लड़ाकों के कब्जे में हैं लेकिन पंजशीर घाटी अब भी आजाद है। तालिबान अभी यहां नहीं पहुंच पाया है। सिर्फ अभी ही नहीं बल्कि तालिबान कभी भी इस इलाके में अपने पैर नहीं जमा पाया है। आज तक तालिबान की कभी हिम्मत नहीं हुई कि वह पंजशीर घाटी पर कब्जा कर सके।

अजेय है पंजशीर घाटी!
तालिबान न सिर्फ अभी बल्कि अपने पहले शासन के दौरान भी पंजशीर घाटी पर कब्जा नहीं कर पाया था। वहीं, उससे पहले 1970 के दशक में सोवियत संघ भी कभी पंजशीर घाटी पर अपना कब्जा नहीं जमा पाया। सोवियत संघ के अलावा अमेरिकी सेना ने भी इस इलाके में सिर्फ हवाई हमले ही किए जबकि जमीन के रास्ते कभी कार्रवाई नहीं की।

पंजशीर घाटी की खासियत
कहा जाता है कि पंजशीर घाटी की भौगोलिक बनावट ही इसकी सबसे बड़ी ताकत है। यह ढाल की तरह काम करती है। इलाके की भौगोलिक बनावट ऐसी है, जहां कोई भी सेना घुसने की हिम्मत नहीं जुटा पाती। दरअसल, यह इलाका चारों ओर से ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों से घिरा हुआ है। इलाके की भूलभुलैया बहुत खतरनाक है। इस इलाके को समझना किसी बाहरी शख्स के लिए आसान नहीं है।

कहां है पंजशीर घाटी?
पंजशीर घाटी उत्तर-मध्य अफगानिस्तान में स्थित है। यह राजधानी काबुल से करीब 150 किमी उत्तर में है। हिंदु कुश पर्वतों के पास स्थित इस घाटी में करीब एक लाख से ज्यादा लोग रहते हैं, जिसमें अफगानिस्तान के सबसे बड़े ताजिक समुदाय के लोग भी शामिल हैं। यह इलाका नॉर्दन अलायंस के पूर्व कमांडर अहमद शाह मसूद का गढ़ है, उन्हें यहां ‘शेर-ए-पंजशीर’ भी कहा जाता है।

Leave a Reply