Wednesday, February 5, 2025
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125 रुपये किलो हुआ आटा, पाकिस्तान में,यही होने वाला था भारत मे,यदि विजय माल्या नीरव मोदी जैसो को कर्ज देते रहते तो

मनमोहन सिंह बड़े अर्थशास्त्री थे,रघुराम राजन भी बड़ा अर्थशास्त्री था लेकिन आयल बॉन्ड्स और माल्या, मेहुल चौकसी,नीरव मोदी ,यस बैंक के राणा कपूर जैसे आर्थिक घोटालो पर चुप्पी वाले भी यही थे…..

भीषण नकदी संकट से जूझ रहे पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक ने कीमत और वित्तीय स्थिरता को दांव पर लगाकर वृद्धि को तरजीह देने के लिए शहबाज शरीफ सरकार की आलोचना की है.

पाकिस्तान में महंगाई के चलते खाने-पीने की वस्तुओं के दाम भी तेजी से बढ़े हैं.

आर्थिक राजधानी कराची में 1 किलो आटे की कीमत 125 रुपये पर पहुंच गई है.

सेंट्रल बैंक ने शहबाज शरीफ की आर्थिक नीतियों की आलोचना की है.

इस्लामाबाद. बढ़ती महंगाई और चौपट होती अर्थव्यवस्था के कारण पाकिस्तान (Economic Crisis in Pakistan) में भी श्रीलंका जैसे गंभीर आर्थिक हालात बन रहे हैं. भीषण नकदी संकट से जूझ रहे पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक ने कीमत और वित्तीय स्थिरता को दांव पर लगाकर वृद्धि को तरजीह देने के लिए शहबाज शरीफ सरकार की आलोचना की है. वहीं, पाकिस्तान में महंगाई के चलते खाने-पीने की वस्तुओं के दाम भी तेजी से बढ़े हैं.
पाकिस्तान ब्यूरो ऑफ स्टैटिस्टिक्स के आंकड़ों से पता चलता है कि कराची में आटे की कीमतें पिछले हफ्ते के 2,400 रुपये प्रति बैग के मुकाबले 2500 रुपये प्रति 20 किलोग्राम की नई ऊंचाई पर पहुंच गई है.
आर्थिक मोर्चे पर नाकाम शहबाज शरीफ सरकार
वित्तीय मोर्चे पर नाकाम शहबाज शरीफ सरकार को लताड़ लगाते हुए स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान (SBP) ने हाल ही में जारी अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि अंतरराष्ट्रीय अनुभव ने बार-बार बताया है कि जो देश कीमत और वित्तीय स्थिरता को दांव पर लगाकर वृद्धि को प्राथमिकता देते हैं, वे वृद्धि को बरकरार नहीं रख पाते हैं.
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‘डॉन न्यूज’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्रीय बैंक ने कहा है कि ऐसी स्थिति में देशों को बार-बार आर्थिक वृद्धि के बाद आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है. गौरतलब है कि पाकिस्तान इस समय गहरे नकदी संकट से जूझ रहा है.
सबसे बुरे आर्थिक दौर में पाकिस्तान
प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली वर्तमान सरकार ने वित्त वर्ष 2023 के लिए वृद्धि पर ध्यान केंद्रित करने से परहेज किया है. इसके बावजूद वह वित्तीय और मूल्य स्थिरता लाने में विफल रही है. एसबीपी का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2023 में वृद्धि दर तय लक्ष्य के मुकाबले कम होगी. इस तरह वृद्धि दर 3-4 फीसदी से कम रह सकती है.
वृद्धि में तेज गिरावट के कारण पहले ही व्यापार और औद्योगिक क्षेत्रों में भारी छंटनी हो चुकी है और माना जा रहा है कि छंटनी का एक और बड़ा दौर जल्द शुरू होगा. कपड़ा मिलों, निर्यातकों और आयातकों ने साख पत्र के न खुलने पर गंभीर चिंता जताई है, जिसने व्यापार चक्र को पंगु बना दिया है. सरकार द्वारा कीमतों पर ध्यान देने के बावजूद, पिछले पांच महीनों से मुद्रास्फीति 25 प्रतिशत के आसपास है, जिससे स्थिरता और वृद्धि की संभावनाएं बिगड़ रही हैं

 

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