Friday, March 14, 2025
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मोसाद: सिर्फ मौत बचा सकती है,20 साल तक ढूंढ कर मार,जिस्म में दागी 60 गोलियां, तबाह किये 30 हवाई जहाज

 

दुश्मन मतलब दुश्मन ,20 साल में ढूंढ ढूंढ कर मारना हो,एक ही आदमी के जिस्म में 60 गोलियां दागना हो या एयरपोर्ट पर मौजूद 30 से ज्यादा प्लेन तबाह करना हो…..

मोसाद का मतलब मौत. एक बार जो मोसाद की निगाह में चढ़ गया, उसका बचना मुश्किल ही नामुमकिन है. मोसाद के खूंखार एजेंट उसे दुनिया के किसी भी कोने से ढूंढ निकालने का दमख़म रखते हैं. यही वजह है कि इजराइल की इस खुफिया एजेंसी को दुनिया की सबसे खतरनाक एजेंसी कहा जाता है. मोसाद की पहुंच हर उस जगह तक है जहां इजराइल या उसके नागरिकों के खिलाफ कोई भी साजिश रची जा रही हो. मोसाद का इतिहास 63 साल पुराना है. इसका मुख्यालय इजराइल के तेल अवीब शहर में है.
मोसाद यानी इंस्टीट्यूट फॉर इंटेलीजेंस एंड स्पेशल ऑपरेशन इजरायल की नेशनल इंटेलीजेंस एजेंसी. इसका गठन 13 दिसंबर 1949 को ‘सेंट्रल इंस्टीट्यूशन फॉर को-ऑर्डिनेशन’ के बतौर हुआ. इस एजेंसी को बनाने का प्रस्ताव रियुवैन शिलोह द्वारा प्रधानमंत्री डेविड बैन गुरैना के कार्यकाल में दिया गया था. उन्हें ही मोसाद का डायरेक्टर बनाया गया. इसका मुख्य उद्‍येश्य आतंकवाद के खिलाफ लड़ना, खुफिया जानकारी एकत्रित करना और राजनीतिक हत्याओं को अंजाम देना है. यह इंटेलीजेंस कम्यूनिटी में प्रमुख वर्चस्व रखती है.

 

जब मोसाद ने चुरा लिया सोवियत का मिग-21

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मिग-21 लड़ाकू विमान जब सोवियत एयरफोर्स का हिस्‍सा बना तो अमेरिका समेत दुनिया के बाकी देश हैरान रह गए थे। यह उस वक्‍त का सबसे ऐडवांस्‍ड और तेज विमाान था। सोवियत यूनियन ने अरब देशों को यह विमान बेच दिया था जिससे इजरायल की टेंशन बढ़ गई थी। मोसाद की कोशिश मिग-21 को हासिल करने की थी ताकि उसके बारे में सबकुछ जाना जा सके। मगर यह इतना आसान नहीं था। एक नहीं, दो नहीं, तीन-तीन बार कोशिश करने के बाद मोसाद को कामयाबी मिली। पहली कोशिश मिस्र में की गई। मोसाद के एजेंट ने एक पायलट से संपर्क किया और उसको एक मिलियन डॉलर का लालच देकर विमान को उड़ाकर इजरायल पहुंचाने को कहा। पायलट ने प्रशासन को खबर कर दी और इजरायली एजेंट को 1962 में फांसी दे दी गई। दूसरी कोशिश इराक में हुई। मोसाद ने दो पायलटों से संपर्क किया और मिग-21 को इजरायल पहुंचाने को कहा लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया।

मोसाद को सफलता मिली साल 1964 में। तेहरान के इजरायली दूतावास में काम करने वाले एक शख्‍स की गर्लफ्रेंड की दोस्त की शादी एक इराकी क्रिस्चन पायलट से हुई थी। वह सेना में अपने साथ भेदभाव से खफा था। जब इसकी भनक इजरायल को लगी तो मोसाद ने अपनी एक महिला एजेंट को इराक भेजा। उस एजेंट को पायलट से दोस्ती कर यूरोप की यात्रा पर बुलाना था। लाखों डॉलर और फैमिली को प्रोटेक्‍शन का वादा किया गया। वह मान गया। 16 अगस्त, 1966 को वह पायलट मिग-21 लेकर उड़ा और तबतक नहीं रुका जबतक वह इजरायल नहीं पहुंच गया। मिग-21 हासिल करने का फायदा इजरायल को तब हुआ जब अरब देशों संग उसकी जंग हुई। केवल छह दिन में इजरायल ने उन्‍हें घुटनों पर ला दिया था।

फोटो: warhistoryonline.com

अर्जेंटीना सरकार को भनक तक न लगी और मोसाद एजेंट्स कर गए अपना काम

साल था 1960। नाजियों ने यहूदियों पर जो जुल्‍म किए थे, इजरायल उनका बदला लेने के लिए बेचैन था। जब मोसाद को पता चला कि नाजी युद्ध अपराधी एडोल्फ एकमैन अर्जेंटीना में है तो जाल बिछाया गया। पांच एजेंट्स नाम बदलकर अर्जेंटीना पहुंचे और एकमैन को ढूंढ निकाला। न सिर्फ ढूंढा बल्कि एक सीक्रेट लोकेशन पर ले जाकर उसकी पहचान कन्‍फर्म की। फिर उसे वहां से इजरायल भी ले आए। अर्जेंटीना की सरकार को इस पूरे मिशन की भनक तक न लगी। मोसाद के इस मिशन ने उसे दुनियाभर की खुफिया एजेंसियों में अलग पहचान दिलाई।

मोसाद का शायद सबसे लंबा ऑपरेशन…

ऑपरेशन रैथ ऑफ गॉड। अगर इसे मोसाद का सबसे मशहूर ऑपरेशन कहा जाए तो गलत नहीं होगा। हॉलिवुड के मशहूर डायरेक्‍टर स्टीवन स्पीलबर्ग ने 2005 में इसी पर ‘म्‍यूनिख’ नाम की फिल्‍म बनाई थी। दरअसल 5 सितंबर 1972 को फिलिस्तीनी आतंकवादियों ने जर्मनी के म्‍यूनिख में इजरायली ओलिंपिक टीम के 11 सदस्‍यों को मार दिया था। इस बर्बर हमले का बदला लेने के लिए मोसाद ने बेहद डीटेल्ड ऑपरेशन प्‍लान किया। सभी हमलावर अलग-अलग देशों में छिप गए थे। मगर मोसाद एजेंट्स ने न सिर्फ उन्‍हें खोज निकाला, बल्कि एक-एक को बेहद अनूठे तरीके से मार दिया। पता नहीं इसमें कितनी सच्‍चाई है मगर कहते हैं कि हर हमलावर को 11-11 गोलियां मारी गई थीं।

ऑपरेशन थंडरबोल्‍ट: जब दुनिया देखती रह गई मोसाद का दम

27 जून 1976 को इजरायल से ग्रीस के लिए रवाना हुए एक यात्री विमान को अगवा कर लिया गया था। प्‍लेन लीबिया ले जाया गया। वहां ईंधन भरने के बाद उसे अरब देशों में लैंड कराने की कोशिश हुई मगर वे जानते थे कि इजरायली नागरिकों से भरे इस विमान को अपने यहां रुकवाना कितना खतरनाक है। आखिर में 28 जून को विमान युगांडा के एंतेबे एयरपोर्ट पर लैंड कराया गया। वहां के तानाशाह ईदी अमीन ने सेना के खास लड़ाकों को तैनात किया ताकि बंधकों की निगरानी की जा सके। आतंकवादियों ने डिमांड रखी कि इजरायल अपनी जेलों में बंद उनके साथियों को छोड़े। 48 घंटे का वक्‍त दिया गया। इजरायल ने एक तरफ तो बातचीत जारी रखी और पीछे से मोसाद एजेंट्स सक्रिय हो गए।

30 जून को कुछ बंधकों को रिहा किया गया जिनमें से ज्‍यादातर बीमार या बुजुर्ग थे। किसी तरह इजरायल ने आतंकियों से बातचीत करके 4 जुलाई तक का वक्‍त जुगाड़ लिया। आतंकियों को लगा कि इजरायली सरकार उनके आगे झुक रही है। वह इजरायली नागरिकों को छोड़ बाकी देशों के बंधकों को रिहा करने पर राजी हो गए। विमान में कुल 258 लोग सवार थे जिनमें से अब 116 ही बचे थे। 3 जुलाई को मोसाद के प्‍लान को अप्रूव कर दिया गया। जिस बिल्डिंग में बंधकों को रखा गया था, उसकी पूरी डीटेल्‍स मोसाद के कमांडोज के पास थी। 100 कमांडोज की एक टीम पूरे इंतजाम के साथ एंतेबे के लिए निकली। अचानक हमला किया और सातों किडनैपर्स को मार गिराया। युंगाडा आर्मी के करीब 50 सैनिक भी मारे गए। इजरायल के 3 बंधकों की जान भी इस पूरे मिशन में चली गई। जब कमांडोज लौटने लगे तो एयरपोर्ट पर मौजूद सभी फाइटर प्‍लेन्‍स को बमों से उड़ा दिया गया।

जब मोसाद ने चुराईं ईरान के न्‍यूक्लियर मिशन की फाइल्‍स

साल 2018 में मोसाद ने ईरान में घुसकर बेहद खतरनाक मिशन को अंजाम दिया। करीब साढ़े छह घंटे के इस ऑपरेशन में दो दर्जन जासूस शामिल थे। टारगेट था तेहरान में बना एक वेयरहाउस जिसमें ईरान के न्‍यूक्लियर मिशन के राज वाली फाइलें रखी थीं। 31 जनवरी की रात 10.30 बजे मोसाद एजेंट्स ने अलार्म सिस्‍टम से छेड़छाड़ करके वेयरहाउस में एंट्री की। वेयरहाउस को खुफिया रखने के लिए रात के वक्‍त गार्ड्स तैनात नहीं किए जाते थे। इसी का फायदा मोसाद ने उठाया। स्‍पेशल टॉर्च के जरिए तिजोरियों में सेंध लगा दी गई। वे अपने साथ करीब 50,000 पेज और 163 सीडी लेकर सुबह 5 बजे तक निकल गए थे। उन फाइलों में क्‍या था, इसका ऐलान अप्रैल में किया गया।

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