बांग्लादेश में हिंदू टीचर-प्रोफेसरों से जबरन इस्तीफा ले रहे कट्टरपंथी: प्रिंसिपल शुक्ला रानी हलदर को ऑफिस में घेरा, धमकी देकर सिर्फ 4 शब्द लिखवाया- ‘मैं इस्तीफा देती हूँ’mm
भारत समर्थक माने जाने वाली प्रधानमंत्री शेख हसीना के तख्ता पलट के बाद बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर कहर जारी है। एक तरफ हिंदू ग्रामीणों के घर-मकानों में लूट-पाट करके उन्हें आग के हवाले किया जा रहा है तो दूसरी तरफ महिलाओं से बलात्कार की घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है। अब सरकारी नौकरी में शामिल हिंदुओं को इस्तीफा देने के लिए दबाव बनाया जा रहा है।
5 अगस्त 2024 को हसीना सरकार के पतन के बाद हिंदू सरकारी शिक्षकों को इस्तीफा के लिए मजबूर किया जा रहा है। सामने आई रिपोर्ट में अब तक कम-से-कम 50 हिंदू शिक्षकों को नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर किया गया है। हालाँकि, वास्तविक संख्या बहुत अधिक है। ऐसे ही एक मामले में बरिशाल के बेकरगंज सरकारी कॉलेज की प्रिंसिपल शुक्ला रानी हलदर को इस्तीफा के लिए मजबूर किया गया।
बांग्लादेशी दैनिक प्रोथोम अलो ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 29 अगस्त 2024 को छात्रों और बाहरी लोगों की भीड़ ने उनके कार्यालय पर धावा बोल दिया और उनसे इस्तीफे की माँग करने लगे। इस दौरान उन्हें तरह-तरह से धमकी दी गई। इन धमकियों के बीच हलदर ने एक सादे पर ‘मैं इस्तीफा देती हूँ’ लिख दिया। इस तरह उन्हें सरकारी नौकरी से हटने के लिए मजबूर कर दिया गया।
स्थानीय रिपोर्ट के मुताबिक, प्रिंसिपल हलदर के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व स्थानीय बीएनपी नेता के बेटे ने किया, जो कॉलेज में छात्र है। उसके साथ अधिकतर लोग बीएनपी के ही कार्यकर्ता थे। बीएनपी खालिदा जिया की पार्टी है, जो कट्टरपंथी गतिविधियों में संलिप्त रही है। वह शेख हसीना की विरोधी है। सेना को वर्तमान में इसका समर्थन प्राप्त है।
हिंदुओं के खिलाफ नफरत के कुख्यात बीएनपी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने प्रिंसिपल शुक्ला रानी हलदर पर वित्तीय भ्रष्टाचार, अनियमित उपस्थिति और अन्य कदाचार का आरोप लगाते हुए उनसे इस्तीफ़े की माँग की। कुछ प्रदर्शनकारियों ने उनके दफ़्तर पर धावा बोल दिया और उन्हें तरह-तरह से धमकाते हुए अपने पद से इस्तीफ़ा देने का दबाव बनाया।
आखिरकार दोपहर 2:00 बजे शुक्ला रानी हलदर को एक खाली कागज़ पर “मैं इस्तीफ़ा देती हूँ” लिखने के लिए मजबूर किया गया। फिर उन्हें कागज़ पर हस्ताक्षर करने और मुहर लगाने के लिए मजबूर किया गया। प्रिंसिपल शुक्ला रानी हलदर ने कहा, “मेरे कुछ छात्रों ने मुझे बहुत अपमानित किया है। हालाँकि, इसमें छात्रों से ज़्यादा बाहरी लोग शामिल थे।”
उन्होंने आगे कहा, “उन्हें शांत करने में असमर्थ होने के बाद मेरे पास इस्तीफ़ा देने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। अब, पूरे मामले का फ़ैसला शिक्षा मंत्रालय के उच्च अधिकारियों द्वारा किया जाएगा।” अपने खिलाफ़ लगे आरोपों पर उन्होंने कहा, “किसी भी आरोप के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है। शिक्षकों के बीच आपसी लड़ाई है और एक गुट ने मेरे खिलाफ़ छात्रों और बाहरी लोगों का इस्तेमाल किया है।”
प्रिंसिपल हलदर के समर्थन में उतरे शिक्षक एवं छात्र-छात्राएँ
सरकारी बीएम कॉलेज में प्रबंधन विभाग की पहली महिला शिक्षिका एवं अध्यक्ष प्रोफेसर शाह साजेदा ने इस मामले पर कहा, “जब मैंने देखा कि मेरी जूनियर सहकर्मी शुक्ला के साथ कैसा व्यवहार किया गया तो मेरी आँखों से आँसू छलक आए। जब से मैंने सोशल मीडिया पर उनकी असहाय और हताश छवि देखी है, मैं खुद को माफ नहीं कर पा रही हूँ। एक महिला शिक्षिका के साथ ऐसा व्यवहार अस्वीकार्य है।”
दरअसल, 14वें बीसीएस शिक्षा संवर्ग की अधिकारी शुक्ला रानी हलदर ने 2022 के मध्य में बेकरगंज सरकारी कॉलेज की प्रिंसिपल के रूप में अपना पद-भार संभाला। इससे पहले, उन्होंने बरिशाल में सरकारी ब्रोजोमोहन (बीएम) कॉलेज में अंग्रेजी की प्रोफेसर के रूप में काम किया। हलदर की तस्वीरें वायरल होने के बाद स्थानीय स्तर पर सोशल मीडिया पर बांग्लादेशी सरकार की खूब आलोचना हो रही है।
बीएम कॉलेज की पूर्व छात्रा मीता मिटू ने फेसबुक पर निराशा व्यक्त करते हुए लिखा, “शुक्ला रानी मैडम बीएम कॉलेज में अंग्रेजी विभाग में मेरी पसंदीदा शिक्षिका थीं। वह वर्तमान में बेकरगंज सरकारी कॉलेज में प्रिंसिपल हैं। उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया है। वह एक असाधारण व्यक्ति हैं, जो हमेशा खुश एवं मुस्कुराती रहती हैं। मैडम, आप जैसे लोग इस तरह के व्यवहार के लायक नहीं हैं। उन्हें माफ़ करें।”
बरिशाल गवर्नमेंट आईएचटी के एक अन्य पूर्व छात्र एमएम जुबैर ने फेसबुक पर लिखा, “जब मैं बरिशाल गवर्नमेंट आईएचटी में था, तब मैडम ने हमें अतिथि शिक्षक के रूप में पढ़ाया था। वह एक गर्मजोशी से भरी, छात्रों के अनुकूल शिक्षिका हैं, जो हमेशा मुस्कुराती रहती हैं। बीएम कॉलेज में सेवा देने के बाद वह अब बेकरगंज गवर्नमेंट कॉलेज में प्रिंसिपल हैं।”
बांग्लादेश की वर्तमानन स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए एमएम जुबैर ने आगे लिखा, “मेरा मानना है कि कोई अपने फायदे के लिए छात्रों का शोषण कर रहा है। उनके पूर्व छात्र और बांग्लादेश के एक चिंतित नागरिक के रूप में मैं इस घटना का विरोध करता हूँ और उचित जाँच की माँग करता हूँ। कृपया उन्हें माफ कर दें, मैडम।” फेसबुक पर छात्र-छात्राओं के बयान भरे पड़े हैं, जो उनके आक्रोश को दिखाते हैं।
वहीं, बीसीएस कैडर के एक अधिकारी ने प्रोथोम एलो नाम के मीडिया हाउस से नाम नहीं छापने की शर्त पर बात करते हुए कहा, “हलदर मैडम मेरी शिक्षिका थीं। उनका अपना कोई बच्चे नहीं है। छात्र-छात्राएँ ही उनके बच्चों की तरह थे। मैं ऐसे आदर्श शिक्षक के साथ किए गए क्रूर व्यवहार को स्वीकार नहीं कर सकता।” बांग्लादेश का संभ्रांत वर्ग भी वर्तमान सत्ता और उसके क्रूर व्यवहार की आलोचना कर रहा है।
उन्होंने ट्वीट किया, “बांग्लादेश में शिक्षकों को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया जा रहा है। पत्रकार, मंत्री, पूर्व सरकार के अधिकारी मारे जा रहे हैं, परेशान किए जा रहे हैं, जेल में बंद किए जा रहे हैं। जनरल जेड ने अहमदिया मुसलमानों के उद्योग जला दिए हैं। इस्लामी आतंकवादियों ने सूफी मुसलमानों की मजारें और दरगाहें ध्वस्त कर दी हैं। यूनुस इसके खिलाफ कुछ नहीं कहते।”
प्रिंसिपल हलदर ही नहीं, 50+ शिक्षक-शिक्षिकाओं से इस्तीफा
इसी तरह 18 अगस्त को अजीमपुर सरकारी गर्ल्स स्कूल एवं कॉलेज की लगभग 50 छात्राओं ने प्रिंसिपल गीतांजलि बरुआ और सहायक प्रिंसिपल गौतम चंद्र पाल को घेर कर उनसे इस्तीफा माँगने लगीं। इनमें शारीरिक शिक्षक शहनाज अख्तर भी थीं। गीतांजली ने डेली स्टार को बताया, “18 अगस्त से पहले उन्होंने मेरा इस्तीफा नहीं माँगा। उस दिन वे मेरे कार्यालय में घुस आईं और मुझे अपमानित किया।”
इसी तरह कबि नज़रूल विश्वविद्यालय के लोक प्रशासन और शासन अध्ययन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर संजय कुमार मुखर्जी को भी इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया। मुखर्जी ने इंडिया टुडे से बातचीत में कहा, “मुझे प्रॉक्टर और विभागाध्यक्ष के पद से इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर किया गया। हम इस समय बहुत कमज़ोर स्थिति में हैं।” हालाँकि, इन शिक्षकों में से 19 को फिर बहाल कर दिया गया है।
बता दें कि देश भर में ऐसी कई घटनाएँ हुई हैं। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे फोटो में छात्रों द्वारा शिक्षकों और अकादमिक प्रशासकों को त्यागपत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर करते हुए देखा जा सकता है। दिन-पर-दिन बिगड़ती जा रही स्थिति के बीच बांग्लादेश में हिंदू शिक्षकों के साथ-साथ अन्य सरकारी सेवाओं में काम करने वाले लोगों के बीच भय और असहाय होने की भावना बढ़ती जा रही है।
बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई ओइक्या परिषद की छात्र शाखा ‘बांग्लादेश छात्र ओइक्या परिषद’ ने शनिवार (31 अगस्त 2024) को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इस दौरान हिंदू सहित अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ कार्रवाइयों की निंदा की और उनके खिलाफ बढ़ती असहिष्णुता पर बात की। निर्वासित बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा नहीं करने के लिए मुहम्मद यूनुस सरकार पर निशाना साधा।
संगठन के समन्वयक साजिब सरकार ने कहा कि शेख हसीना सरकार के पतन के बाद धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यकों को हमलों, लूटपाट, महिलाओं पर हमले, मंदिरों में तोड़फोड़, घरों और व्यवसायों पर आगजनी और हत्याओं का सामना करना पड़ा है। इसके अलावा, अल्पसंख्यक शिक्षकों पर शारीरिक हमला किया गया है और उनमें से 50 को 30 अगस्त तक इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया है।