Sunday, September 8, 2024
Uncategorized

हराम है कब्रपरस्ती इस्लाम मे,पर मज़ारों पर चुप हैं मुसलमान,480 मज़ारे तोड़ी गयी,हिन्दू औरतों को फंसाने का जाल

देवभूमि उत्तराखंड में इन दिनों गैरक़ानूनन तौर से कब्जाए गए जमीनों पर जिहादियों द्वारा बनाई गयी मस्जिद और दरगाहो को ध्वस्त करने का अभियान चलाया जा रहा है।

देवभूमि उत्तराखंड में इन दिनों गैरक़ानूनन तौर से कब्जाए गए जमीनों पर जिहादियों द्वारा बनाई गयी मस्जिद और दरगाहो को ध्वस्त  करने का अभियान चलाया जा रहा है। आपको बता दे की अब तक यह 50 से भी अधिक की संख्या में इस गैरक़ानूनन कब्जाए गए निर्माणों को तोड़ दिया गए है व इस अभियान के कदम अभी और अग्रसर है।  जानकारी है की पहले सिर्फ खली प्लॉटों , जमीनों या मुस्लिम लोगों के घरो में ही मजारो को बनवाया हुआ था व अभियान के चलते इसने भी तोडा गए है आपको बता दे की अब इन जिहादियों ने इस्लामिक शाजिश रच कर हिन्दुओं के घरों  में ही मजारो का निर्माण करवा कर अवैध कब्ज़ा करने की फिराक में है।    
क्या है पूरा ममलमा 

हिंदू संगठनों ने हिंदुओं के बीच जागरूकता अभियान चलाकर अवैध मजारों को ध्वस्त करना शुरू कर दिया है। अभी तक 27 मजारों को जो की हिन्दुओं के घरों में अवैध तोर से निर्मित थी उन्हें तोडा जा चूका है। आपको बता दे की देवभूमि उत्तराखंड के ऋषिकेश में कुछ दिनों से हिन्दू संगठनो द्वारा अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया जा रहा है।  जिसमे अब हिन्दुओं के घरों में  गैरक़ानूनन तोर से जबरन कब्ज़ा करके इस्लामिक षडियन्त्रों का पर्दाफाश किया है। इसी क्रम में एक सर्वेक्षण में ऋषिकेश के भट्टोवाला, केशव ग्राम, रूपा फार्म गुमानीवाला आदि क्षेत्रों में लगभग 72 हिंदू परिवारों के घरों में मजारें मिली हैं। अभियान के अंतर्गत अभी तक सरकारी जमीन पर बनी लगभग 480 अवैध मजारें हटाई जा चुकी हैं।

हिन्दुओं को बरगलाया 

जिहादियों ने हिन्दुओं के उन परिवारों को निशान बनाया गया जहाँ कोई पुरुष मौजूद नहीं था या फिर घर से दूर नौकरी करने गए हो।  इन  हिन्दू परिवारों की महिलाओं  को जिहादी  अपने जाल में फंसाते हैं कि उनकी जमीन में मुस्लिम पीर-फकीरों का वास है। खादिम बुजुर्ग महिलाओं को अपनी बड़ी मजारो पर चादर चढ़वाते थे  , फिर उन्हें बरगलाते हैं कि दुआ कबूल होने या मन्नत पूरी होने के बाद अपने घर में मजार बनाना।कई मजारों पर ‘भूमिया देवता पीर मजार लिखा हुआ है।

जिन हिंदुओं के घरों में मजारें बनी हुई हैं, उनका कहना है कि उनकी मां किसी पीर-फकीर की मजार पर गई थी और मन्नत मांगी थी। और मन्नत पूरी होने के बाद मजार के खादिम ने उन्हें अपनी जमीन पर ‘मजार देवता’ बनाने के लिए कहा था। इसके बाद खादिम उनके घर आया और अपने सामने मजार बनवाई।

इस्लाम क्या कहता है
मजारों पे चादर चढ़ाना और क़ब्र परस्ती की हकीकत
हमारे मआशरे में एक और शिर्क देखने को मिलती है जो एक खास तबके के अंदर कुछ ज़्यादा ही है और वो है … मज़ार पे कसरत के साथ जाना, वहां रौशनी करना, वहां सजदे करना और फिर मजार वालों से मन्नतें मांगना, उनसे अपने हाजतें बयान करना और उनके सामने झोली फैला कर माँगना जैसा के वो ही अल्लाह हों,  फिर ,मन्नत पूरी हो जाने की सूरत में उनकी क़ब्र पे चादर चढ़ाना, वहाँ उन मज़ार वालों की तारीफ़ में कौवालियां पढ़ना वगैरह वैगरह..
ये कहाँ तक सही है और क़ुरआन और हदीस में इसका क्या हुक्म है ?जब आप उन लोगों से सवाल करें के क्यों आप क़ब्र वालों से, मजार वालों से मांगते हो तो ये कहते हैं के हम उनसे नहीं मांगते,हम तो उनको वसीला बनाते हैं के वो (क़ब्र वाले ) अल्लाह के नज़दीकी हैं इसलिए वो हमारी बात उन तक पहुंचाएंगे  तो अल्लाह हमारी दुआ कुबूल करेगा.
मगर अल्लाह फरमाता है :
देखो, इबादत खालिस अल्लाह ही के लिए हैं और जिन लोगों ने उसके सिवा औलिया बनाए हैं वो कहते हैं के हम इनको इसलिए पूजते हैं की ये हमको अल्लाह के नज़दीकी मर्तबा तक हमारी सिफारिश कर दें, तो जिन बातों में ये इख़्तेलाफ़ करते हैं अल्लाह उनमे इनका फैसला कर देगा, बेशक अल्लाह झूटे और नाशुक्रे लोगों को हिदायत नहीं देता.
(सुरह जुमर, आयत नंबर 3) 

गौर करने की बात है की हमारी दुआओं को अल्लाह के सिवा कोई क़ुबूल करने वाला नहीं, बस अल्लाह ही हमारा माबूद है, फिर कुछ नाशुक्रे लोग अल्लाह को भूल कर उनके बनाए हुए इंसानो से फ़रियाद  करते हैं और उनसे भी जो के क़ब्र के अंदर है अपनी हाजत बयान करते हैं जबकि अल्लाह फरमाता है: 

भला कौन बेक़रार की इल्तिजा क़ुबूल करता है, और कौन उसकी तकलीफ को दूर करता है,और कौन तुमको ज़मीन में जानशीन बनाता है, (ये सब कुछ अल्लाह करता है) तो क्या अल्लाह के सिवा कोई और भी माबूद है (हरगिज़ नहीं ) मगर तुम बहुत कम गौर करते हो.
(सुरह अल-नमल , आयत नंबर 62)

अल्लाह के सिवा कोई हमे नफा या नुक्सान पहुंचने वाला नहीं है, फिर क़बर वाले हमे क्या नफा पंहुचा सकते हैं, फिर कुछ नासमझ लोग क़ब्र वालों से ही उम्म्दी लगाए बैठे हैं और उन्ही से माँगना जायज़ समझते हैं जो की सरासर शिर्क है.
अल्लाह फरमाता है:
और ये के (ऐे मुहम्मद सब से) यकसू हो दीन-ए-इस्लाम की पैरवी किये जाओ, और मुशरिकों में से हरगिज़ न होना,और अल्लाह को छोड़ कर किसी ऐसी चीज़ को न पुकारना जो न तुम्हारा कुछ भला कर सके,और न कुछ बिगाड़ सके. अगर ऐसा करोगे तो ज़ालिमों में हो जाओगे.
(सुरह युनूस, आयत 105-106)

मरने के बाद सबका मामला अल्लाह के सुपुर्द होता है, वो हमे नहीं सुन सकते. उन तक जब हमारी आवाज़ ही नहीं पहुंच सकती तो फिर वो हमारी दुआओं के सिफारिशी कैसे बन जायेंगे.
क़ुरआन में अल्लाह का फरमान है :
और ये जिन्दे और मुर्दे बराबर नहीं हो सकते, अल्लाह जिसको चाहता है सुना देता है.और तुम इनको जो अपनी क़ब्रों में दफन हुए हैं इनको नहीं सुना सकते.
(सुरह फातिर, आयत 22 )

ये क़ब्र वाले न तो हमे सुन सकते हैं और ही जवाब दे सकते हैं . गौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फरमाता है:
और उस शख्स से बढ़ कर कौन गुमराह हो सकता है जो ऐसे को पुकारे जो क़यामत तक उसे जवाब न दे, और उनको इनके पुकारने की ही खबर न हो.
(सुरह अहकाफ, आयत नंबर 5)

जो क़ब्रों में हैं, बेशक वो औलिया हों, पीर हों या पैगम्बर हों, ये भी हमारी तरह के ही मखलूक हैं जिन्हे अल्लाह ने पैदा किया. इन लोगों ने अपनी तरफ से किसी चीज़ की तख़लीक़ नहीं की फिर भी कुछ जाहिल लोग उनसे मदद की गुहार लगाते हैं . गौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फरमाता है:

और जिन लोगों को ये अल्लाह के सिवा पुकारते हैं वो कोई चीज़ भी तो पैदा नहीं कर सकते बल्कि  खुद वो पैदा किये गए , बेजान लाशें हैं. इनको ये भी नहीं मालूम के ये कब उठाये जायेंगे.
(सुरह नहल आयत नंबर 20-21)

क़ब्रों पे मुजावर बन कर बैठने वाले वो लोग, जो क़ब्रों की पूजा करते हैं, क़ब्र वाले की इबादत करते हैं और ये समझते हैं की ये उनकी हाजते पूरी करेंगे, तो ये सच में अँधेरे में हैं और ये बदतरीन लोग हैं.

रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि० ने फ़रमाया “मेरी उम्मत के बदतरीन लोग वो होंगे जो क़ब्रों की इबादत करेंगे, और जिनकी ज़िन्दगी ही में उनके ऊपर क़यामत आएगी.”
( मुसनद अहमद, हदीस नंबर 4844)

और जिन लोगों ने क़ब्रों को सजदहगाह बन लिया है और उनपे माथा टेकते हैं और उनसे अक़ीदत रखते हैं ऐसे लोगों पे अल्लाह की फटकार है जैसा की अल्लाह के रसूल ﷺ की हदीस है के

हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि० से रिवायत है के जब आप सल० अलैहि० मर्ज़-ए-वफ़ात में मुब्तिला हुए तो आप अपनी चादर को बार बार अपने चेहरे पे डालते और कुछ अफाका होता तो चादर अपने चेहरे से हटा लेते. आप सल० अलैहि० ने उस इज़्तिराब-ओ-परेशानी की हालत में फ़रमाया :
“यहूद-ओ-नसारा पे अल्लाह की फटकार जिन्होंने अपने नबियों की क़बर को सजदहगाह बन लिया”
आप सल० अलैहि० ये फरमा कर उम्मत को ऐसे कामों से डराते थे.
(सही बुखारी, हदीस नंबर 435-436)

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं 
“ऐे मेरी उम्मत के लोगों, खबरदार हो जाओ के तुमसे पहले जो लोग गुज़रे हैं उन्होंने अपने औलिया और अम्बिया की कब्रों को अपना इबादतगाह बन लेते थे, खबरदार..तुम कबरों को इबादतगाह मत बनाना, मैं तुम्हे ऐसा करने से मना करता हूँ”
(मुस्लिम 1188)

मुहम्मद सल० अलैहि० ने दुआ की “ऐे अल्लाह मेरी क़बर को इबादत की जगह न बना देना, उनलोगों पे कहर बेहद खौफनाक था जिन्होंने अपने पैगम्बरों की क़ब्रों को सजदहगाह बना लिया “
(मोअत्ता मालिक 9/88)

आज अगर कोई अल्लाह का नेक बन्दा वफ़ात पाता है तो कुछ लोग उनकी क़ब्रों को पक्का  बना देते हैं फिर उसे मज़ार की शकल दे देते हैं .
अल्लाह के रसूल ﷺ ने तो क़ब्रों को पक्का बनाने, या उनपे प्लास्टर करने और उनको इमारत बनाने से भी मना फ़रमाया है :

हज़रते जाबिर रजि० से रिवायत है के रसूलल्लाह ﷺ ने क़ब्रो को पक्का बनाने से या उनको बैठने की जगह बनाने से या उनपर कोई इमारत तामीर करने मन फ़रमाया है. 
(सही मुस्लिम, हदीस नंबर 970, अबु दाऊद हदीस नंबर  3225)

जो लोग क़ब्रों पे मुजावर बन बैठे हैं उनके लिए बहुत बड़ा अज़ाब है जैसा के अल्लाह के रसूल ﷺ की ये हदीस है :
हज़रते अबु हुरैरह रजि० से रिवायत है की रसूलल्लाह ﷺ फरमाते हैं “जो शख्स किसी क़ब्र पर (मुजावर बन कर) बैठे उस से बेहतर है के वो आग के अंगारों पर बैठे और आग उसके जिस्म और कपड़ों को जला कर कोयला बन दे”
(सही मुस्लिम हदीस नंबर 971)

खास कर एक तबका हमारे यहां है जो इमाम अबु हनीफा के कौल को मानते हैं और खुद को हनफ़ी कहते हैं ….तो क्या अबु हनीफा से ऐसी कोई दलील मिलती है के हमे क़ब्रों की पूजा करनी चाहिए, या क़ब्र पे चादर चढ़ानी चाहिए या क़बर वालों से मदद की गुहार लगानी चाहिए?
आइये देखते हैं उनका कौल क्या है.
इमाम अबु हनीफा फरमाते हैं “अम्बिया और औलिया की क़ब्रों पर सजदा करना, तवाफ़ करना , नज़राना चढ़ाना हराम व कुफ्र है”
(दुर्रे मुख्तार , जिल्द 1 सफहा नंबर 53)

क़ब्र परस्तों का नजरिया और इनकी दलील :
क़ब्र की पूजा करने वाले और इनसे मदद तलब करने वाले अक्सर ऐसी किताबों से दलील इकटठी करके लोगों को बरगलाते हैं जो न तो हदीस में कही दर्ज़ है और न ही सहाबा रजि० या तबो ताबइन से कही साबित है बल्कि कुछ मौलवी मुल्लाओं ने अपनी दूकान चलाने के लिए अपने नज़रियात को किताब की शक्ल में पेश किया और ये ही उनके लिए दलील बन गयी जिनपे वो बहस कर सकें और ऐसे मौलवियों की रोज़ी रोटी चलती रहे.
कुछ पाखंडी मौलवियों ने तो हद्द कर दी के वो भोले भाले मुसलमानो को बरगलाने के लिए हदीस को तोड़ मरोड़ कर पेश करते हैं और फिर उनसे कहते हैं के फलां फ़िरक़े के लोग तुम्हे भटका रहे हैं और हमारी बात सही है. आइये उनके तोड़ मरोड़ कर पेश किये गए एक हदीस पे गौर करें जिन्हे वो क़ब्रों/मजारों पर चादर चढाने के लिए दलील के रूप में पेश करते हैं
हज़रते इब्ने अब्बास रजि० से रिवायत है के रसूलल्लाह ﷺ की क़ब्र मुबारक पर सुर्ख रंग की चादर डाली गयी थी 
ये वो हदीस है जिसपे ये लोग बहस करते हैं. अब सही हदीस पे गौर करते हैं :
हज़रते इब्ने अब्बास रजि० से रिवायत है के रसूलल्लाह ﷺ की क़ब्र में सुर्ख रंग की मखमली चादर रखी गयी थी
(सुनन निसाई हदीस 2011, अल तिर्मिज़ी 1048)

आप गौर करें के सही हदीस में है के चादर उनकी क़ब्र के अंदर रखी गयी थी मगर इन्होने उसे क़ब्र के ऊपर कर दिया और क़ब्रों पर चादर चढाने की दलील बना दी.

अब इतनी सारी दलीलों के बाद  भी कोई न माने तो फिर उसका मामला अल्लाह के सुपुर्द है.
बस आप सभी से दरख्वास्त है के जहाँ तक हो सके ऐसे शिर्किया कामों से खुद को बचाएँ और सिर्फ अल्लाह ही से मदद मांगे

कब्र परस्ती का रद्द हदीस की रौशनी में

कब्र परस्ती का रद्द हदीस की रौशनी में
🔰🔻🔰🔻🔰
✅सवाल : आजकल पक्की क़ब्रे बनाने का और उसपर इमारत तामीर करने का खूब रिवाज है क्या ऐसा करना शरई एतेबार से दुरुस्त है?
☑जवाब : पक्की क़ब्रे बनाना और कब्रो पर इमारत तामीर करना इस्लाम में कतई जायज नहीं है और रसूलुल्लाह (ﷺ) के सरिह हुक्म के खिलाफ है।
इसकी दलील इस तरह से हैं:-
۞ “हजरत जाबिर रजि. से रिवायत है की रसूलुल्लाह (ﷺ) ने पुख्ता कब्रे बनाने और और उनपर बैठने और इमारत तामीर करने से मना फ़र्माया है”
📚Reference : Sahih Muslim 2245 (970)

इस  सहीह हदीस से मालूम हुआ की पक्की क़ब्रे बनाना और उन पर इमारत तामीर करना हराम  है।

✅सवाल : रसूलुल्लाह  (ﷺ) के इंतेक़ाल के बाद आप  (ﷺ) की कब्रे-मुबारक घर में किस वजह से बनाई गयी?

☑जवाब :
۞ इब्ने-जूरैज रह. से  मरवी है, वो कहते है की मुझे मेरे वालिद ने यह हदीस सुनाई की जब रसूलुल्लाह (ﷺ)  का इंतेक़ाल हो गया तब , नबी (ﷺ) के सहाबा को कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो नबी (ﷺ) को कहा दफ़न करे, यहाँ तक के सैयदना अबु बकर सिद्दीक रजि. ने कहा, मेने रसूलुल्लाह (ﷺ)  को यु फरमाते हुए सुना था के “हर नबी की कब्र वही बनाई जाती जहा इनका इंतेक़ाल होता है” , चुनाँचे आप (ﷺ) के बिस्तर को हटा कर इसी के नीचे वाली जगह को कब्र के लिए खोदा गया”
📚Reference : Musnad Ahmed 27

यही वजह थी की रसूलुल्लाह (ﷺ) की कब्र-मुबारक आप  (ﷺ) के घर में ही बनाई गयी ।

✅सवाल : रसूलुल्लाह (ﷺ) की कब्र-मुबारक आप  (ﷺ) के घर में बना देने के बाद, मौजूद घर की इमारत को हटा कर कब्रे-मुबारक को नुमाया किस वजह नहीं किया गया ?

☑जवाब : रसूलुल्लाह (ﷺ) की कब्र को कही सज्दागाह न बना लिया जाए इसलिए इमारत को हटा कर कब्रे-मुबारक को नुमाया नहीं रखा गया ।
इसकी दलील इस तरह से हैं:-
۞ सय्यिदा आइशा रजि. से रिवायत है की रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया-“अल्लाह तआला यहुदो-नसारा पर लानत करे उन्होंने अम्बिया अल्लैहिस्सलाम की कब्रो को मस्जिदे बना लिया”,
उम्मुल – मोमिनींन  हजरत आइशा रजि. फरमाती है,”अगर यह अंदेशा ना होता तो आप की कब्र खुली जगह पर बनाई जाती  और नुमाया रखी जाती, लेकिन डर हुआ कि इसको सज्दागाह ना बना लिया जाएं”
📚Reference : Sahih Bukhari 1390
✅सवाल : क्या सहाबा ने नबी (ﷺ) कब्र मुबारक को पक्का (पुख्ता) बनाया और कब्रे-मुबारक पर इमारत तामीर की?
☑जवाब : सहाबा किराम रजि. ने नबी (ﷺ) की कब्र को पुख्ता नहीं बनाया और न ही इसपर इमारत तामीर की गयी क्योंकि :-
۞ “हजरत जाबिर रजि. से रिवायत है की रसूलुल्लाह (ﷺ) ने पुख्ता कब्रे बनाने और और उनपर बैठने और इमारत तामीर करने से मना फ़र्माया है”
📚Reference : Sahih Muslim 2245 (970)
इस हदीस को मद्देनजर रखते हुए सहाबा ने आप (ﷺ) की कब्र को न तो पक्का बनाया न ही उस पर इमारत बनाई बल्कि जो इमारत पहले से बनी थी यानी नबी (ﷺ) का घर, उसी के अंदर आपको दफनाया गया। सहाबा किराम ने दफनाने के बाद कब्र पर “एक्स्ट्रा” अपनी तरफ से कोई तामीरात की हो इसका कोई सबूत सहीह हदीस से  नहीं मिलता हैं।
✅सवाल : हजरत उमर रजि. और अबु बक्र रजि को नबी के पास क्यों दफनाया गया?
☑जवाब : दोनों सहाबा रजि. को नबी (ﷺ) से बहुत मुहब्बत थी इसलिए उनकी इच्छा अनुसार उनको आप (ﷺ) के पास में दफनाया गया।
हजरत उमर रजि. ने अम्मा आइशा रजि. से बकायदा परमिशन ली रसूलुल्लाह (ﷺ) के पास दफ़न होने के लिए। अधिक जानकारी के लिए देखे – Sahih Bukhari : 1392
इस पर  किसी सहाबा का एतराज साबित नहीं हैं।
✅सवाल : क्या सहाबा में से किसी का इंतेक़ाल हो जाने पर दूसरे सहाबा उनकी कब्र को पुख्ता करते या उसपर इमारत तामीर करते थे?
☑जवाब : बिल्कुल नहीं! सहाबा किराम रजि. नबी (ﷺ) से बहुत ज्यादा मुहब्बत करते थे इसलिए वे अपने प्यारे रसूलुल्लाह (ﷺ) के किसी भी हुक्म की नाफरमानी नहीं करते थे,
इसलिए उनकी कब्र-मुबारक रसूलुल्लाह (ﷺ) के फरमान के मुताबिक़ पुख्ता नहीं की जाती थी और न ही उसपर इमारत तामीर की जाती थी।
इसकी दलील इस तरह से हैं:-
۞ हजरत अम्र बिन अलहारित रजि. से रिवायत है की वे हजरत फादालह बिन उबैद रजि. के साथ रोमन साम्राज्य के ‘रुदिस’ नामक जगह पर थे,वहा पर हमारे एक दोस्त का इंतेक़ाल हो गया।
तो हजरत फादालह बिन उबैद रजि.ने हमें हुक्म दिया की “एक कब्र बनाई जाएँ और उसे समतल रखा जाए” और फिर फ़र्माया की मेने रसूलुल्लाह  (ﷺ) से सुना की उन्होंने “कब्र को जमीन के बराबर रखने का हुक्म दिया’।”
📚Reference : Sahih Muslim 2242 (968)

✅सवाल : बुजुर्गो (औलिया अल्लाह) या किसी भी शख्स की कब्र को पुख्ता किया जा सकता हैं और क्या उसपर इमारत तामीर की जा सकती हैं?
☑जवाब : बिलकुल नहीं! जैसा की आप ऊपर सहीह अहादीस की दलील देख चुके हैं। इन अहादीस से यह साबित होता हैं की आम व ख़ास किसी की भी कब्र को पुख्ता करना और उनपर इमारत तामीर करना हराम हैं और इसकी शरई तौर पर कोई हैसियत नहीं हैं।
✅सवाल : पैगम्बर, औलिया अल्लाह या अन्य किसी भी शख्स की कब्र के सामने सर झुका कर खड़े होना या नमाज की तरह हाथ बांधे खड़े रहना,सज्दा करना या उनका तवाफ़ करना इस्लामी-शरीयत के मुताबिक़ कैसा अमल है?
☑जवाब : पैगम्बर, औलिया अल्लाह या अन्य किसी भी शख्स की कब्र के सामने सर झुका कर खड़े होना या नमाज की तरह हाथ बांधे खड़े रहना,सज्दा करना या उनका तवाफ़ करना इस्लामी-शरीयत के मुताबिक़ सरासर नाजायज और हराम है।
इसकी दलील इस तरह से हैं:-
۞ जुन्दुब रजि. से रिवायत है कि रसूलुल्लाह (ﷺ)ने फ़र्माया –
“………तुम से पहले के लोग अपने अम्बिया और स्वालेहीन (नेक लोग) की कब्रो को मस्जिद (places of worship and prayers / सज्दागाहें) बना लिया करते थे, कब्रो को मस्जिद मत बनाना,में तुम को इससे मना करता हुँ”
📚Reference : Sahih Muslim 1188 (532)

✅सवाल : क्या हर वो कब्र जो शरीयत के खिलाफ ऊंची और पक्की हैं, उसे गिराना लाज़िमी हैं?
☑जवाब : इस सवाल का जवाब यह हदीस बेहतर दे रही है :-
۞ हजरत अली रजि. ने हजरत अबुल हय्याज असदी रजि. से फरमाया कि तुम्हें उसी काम पर मै भेजता हूँ जिस काम पर अल्लाह के रसूल (ﷺ) ने मुझे भेजा था वह यह कि “किसी बडी ऊंची कब्र को बराबर किये बगैर न छोडो , न किसी मूरत को बगैर मिटाये रहने दो ”
📚Reference : Sahih Muslim 2243 (969)
✅सवाल : कब्रो का उर्स  (मेला/ईद) भरना शरीयत के एतेबार से कैसा अमल है?
☑जवाब :
रसूलुल्लाह {ﷺ} ने फर्माया:-
‏{‏أَمَّا بَعْدُ فَإِنَّ خَيْرَ الْحَدِيثِ كِتَابُ اللَّهِ وَخَيْرُ الْهُدَى هُدَى مُحَمَّدٍ وَشَرُّ الأُمُورِ مُحْدَثَاتُهَا وَكُلُّ بِدْعَةٍ ضَلاَلَةٌ}
۞ “अमा बाद,बेहतरीन चीज अल्लाह की किताब हैं और बेहतरीन तरीका मुहम्मद {ﷺ} का तरीका हैं। और बदतरीन काम नई ईजाद करदा काम (बिदअतें) हैं और हर बिदअत गुमराही हैं।”
📚Reference  : Sahih Muslim 2005 (867)
जो लोग कब्रो पर उर्स / मेला, कव्वाली व महफिले सिमाअ, ढोल व सारंगी वगैरह मुनकरात कायम करते है उनके इस अमल की दलील कुरआन और सुन्नत में मौजूद नहीं है। ये गैर-मुस्लिम कौम से मुसलमानो में रिवाज पकड़ा हुआ अमल है, दीन-ए-इस्लाम में इसकी कोई हकीकत नहीं हैं बल्कि ये सभी अमल बिदअत में शुमार है।
۞ हजरत अब हुरैरह रजि. से रिवायत है नबी करीम {ﷺ} ने फर्माया, “अपने घरो को कब्रिस्तान मत बनाओ, और न मेरी कब्र को ईद (मेलागाह) बनाओ और मुझ पर दरूद पढ़ो, तुम जहाँ कही भी होंगे तुम्हारा दरूद मुझ तक पहुच जायेगा”
📚Reference : Sunan Abu Dawud  2042
इस हदीस से पता चलता है की रसूलुल्लाह {ﷺ} की कब्र-मुबारक के पास आकर  ईद त्यौहार,मेला/उर्स जैसा इज्तिमाअ करना दुरुस्त नहीं है तो और किसी की आप {ﷺ} के मुकाबले क्या हैसियत हो सकती है। काजी सनाउल्लाह पानीपती हनफ़ी (सूरह आले इमरान की आयत 64) की तफ़सीर के जिम्न में फायदा के उन्वान के तहत लिखते है – “औलिया और शुहदा की कब्रो पर जाहिल हजरात जो सजदे करते हैं, उनके इर्द-गिर्द तवाफ़ करते, चिरागा और दिये जलाते है, कब्रो पर मस्जिदे काइम करते है और साल भर बाद ईदो की तरह जो इज्तिमाअ मुनअकिद (आयोजित) करते है और इसे उर्स का नाम देते है ये जाइज नहीं है। (तफ़सीरे मजहरी)
✅सवाल : आजकल के जमाने में कुछ बिदअतियों ने बाज कब्रो को पुख्ता कर लिया हैं,कब्रो पर इमारत तामीर कर ली हैं व उर्स और इस जैसी तमाम नाजायज खुराफातो को जायज ठहरा लिया है इससे उम्मत पर क्या साइड इफ़ेक्ट (गलत प्रभाव) पड़ रहा हैं?
☑जवाब : आजकल कुछ बिदअती जमाते ऐसी पाई जाती हैं जिन्होंने अपने नफ़्स की पैरवी करने के लिए कुरआन और हदीस को छोड़ दिया हैं और शैतान के बहकावे में आकर इन्होंने प्यारे रसलुल्लाह (ﷺ) के फरमान के खिलाफ अमल करना और फतवा देना शरू कर दिया हैं जिसकी वजह से कई भोले-भाले मुसलमान कब्र-परस्ती (शिर्क) करने में मशगूल हो गए हैं, और उन्होंने इसे ही दीन समझ लिया हैं जबकि इन बातिल अक़ीदों और खुराफतों का दीन-ए-इस्लाम से कोई ताल्लुक नहीं हैं।
आज हालात ये हो गए हैं की अगर कोई मुसलमान इन्हें सही दीन समझाना चाहता हैं और सही दीने-इस्लाम की तरफ यानी “कुरआन और हदीस” की तरफ मोड़ना चाहता हैं तो उसको “गुस्ताखे-रसूल” कहा जाता हैं उसको तरह-तरह से परेशान करने की कोशिश की जाती हैं।
बाज लोग तो “काफ़िर” कहने से भी गुरेज नहीं करते।
अल्लाह तआला से यही दुआ हैं इन कब्र-परस्तो (कब्र की इबादत करने वालो) को कुरआन और सुन्नत को समझने और अमल करने की तौफीक अता फर्मा।
आमीन।
“तेरे आमाल से है तेरा परेशान होना,
वरना मुश्किल नहीं मुश्किल का आसान होना,
दो जहान पे हुकूमत होगी तेरी ऐ मुस्लिम,
तू समझ जाए अगर तेरा मुसलमान होना”

इंशा अल्लाह

Leave a Reply