Saturday, December 21, 2024
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भद्रा पाताल में हो या आकाश या स्वर्ग भद्रा का होना ही अशुभ,रावण तक का विनाश इसी काल में रक्षाबंधन मनाने से हुआ

इस बार 11 और 12 अगस्त दो दिन पूर्णिमा पड़ने की वजह से लोगों के बीच रक्षाबंधन को लेकर कन्फ्यूजन बना हुआ है। वहीं इस पर देशभर के ज्योतिषियों का कहना है कि भद्रा समाप्त होने के बाद गुरूवार को ही शुभ योग भी बन रहा है इसलिए 11 अगस्त को रात में ही राखी बांधना सही रहेगा। वहीं बात की जाए 12 अगस्त की तो पूर्णिमा तिथि 7 बजकर 6 मिनट तक रहेगी तो कहीं कहीं पंचांग के भेद के कारण ये पूर्णिमा 8 बजे तक भी मानी जा रही है। ऐसे में 11 अगस्त को ही रक्षाबंधन मनाना शुभ माना जा रहा है।

11 अगस्त को इस समय बांधे भाई की कलाई पर राखी

11 अगस्त को राख मुहूर्त 1 घंटे 20 मिनट तक का रहेगा जो कि रात 8:25 से लगाकर 9:25 तक का रहेगा। वहीं ग्रहों की दुर्लभ के चलते शुभ योगों से पूरे दिन खरीदारी का शुभ मुहूर्त रहेगा। ज्योतिषाचार्य का कहना है कि 11 अगस्त गुरुवार को आयुष्मान, सौभाग्य और ध्वज योग रहेगा। साथ ही शंख, हंस और सत्कीर्ति नाम के राजयोग भी बन रहा है। गुरु-शनि वक्री होकर अपनी राशियों में रहेंगे। सितारों की ऐसी दुर्लभ स्थिति पिछले 200 सालों में पहली बार बन रही है। इस महासंयोग में रक्षाबंधन सुख-समृद्धि और आरोग्य देने वाला रहेगा।

क्या कहना है ज्योतिषियों का जानिए

11 अगस्त को पूर्णिमा तिथि लगभग 9:35 पर शुरू होगी जो अगले दिन सुबह तकरीबन 7.16 तक रहेगी। वहीं, गुरुवार को भद्रा सुबह 10.38 पर शुरू होगी और रात 8.25 पर खत्म होगी। इसलिए काशी विद्वत परिषद के साथ ही उज्जैन, हरिद्वार, पुरी और तिरुपति के विद्वानों का कहना है कि भद्रा का वास चाहे आकाश में रहे या स्वर्ग में, जब तक भद्रा काल पूरी तरह खत्म न हो जाए तब तक रक्षा बंधन नहीं करना चाहिए। इसलिए सभी ज्योतिषाचार्यों का एकमत होकर कहना है कि 11 अगस्त, गुरुवार को रात 8.25 के बाद ही रक्षाबंधन मनाना एकदम उचित रहेगा।

11 की दिन में राखी बांधने से आखिर क्यों बचें

11 अगस्त को भद्रा पाताल में रहेगा जिसका धरती पर कोई अशुभ असर नहीं पड़ेगा इसलिए पूरे दिन रक्षाबंधन मना सकते हैं, लेकिन विद्वत परिषद का कहना है कि किसी भी ग्रंथ या पुराण में इस बात का जिक्र नहीं है। वहीं, ऋषियों ने पूरे ही भद्रा काल के दौरान रक्षाबंधन और होलिका दहन करने को अशुभ बताया है। इसलिए भद्रा के वास पर विचार ना करते हुए इसे पूरी तरह बीत जाने पर ही राखी बांधना चाहिए। वहीं, 12 तारीख को पूर्णिमा तिथि सुबह सिर्फ 2 घंटे तक ही होगी और प्रतिपदा के साथ रहेगी। इस योग में भी रक्षाबंधन करना निषेध है।

प्रदोष काल में रक्षाबंधन मनाना रहेगा शुभ

विद्वानों का कहना है कि रक्षाबंधन के समय को लेकर ग्रंथों में प्रदोष काल को सबसे अच्छा माना गया है। यानी सूर्यास्त के बाद करीब ढाई घंटे का समय बहुत ही शुभ होता है। दीपावली पर इसी काल में लक्ष्मी पूजा की जाती है। साथ ही होलिका और रावण दहन भी प्रदोष काल में करने का विधान है। ज्योतिष ग्रंथों में बताया है कि इस समय किए गए काम का शुभ प्रभाव लंबे समय तक रहता है।

रक्षा बंधन 2022 की तारीख को लेकर भ्रदा काल की वजह से दुविधा बनी हुई है। कुछ जानकारों का मत है कि 11 अगस्त को भद्रा काल होने की वजह से इस दिन राखी बांधना शुभ नहीं होगा। वहीं कुछ ज्योतिष शास्त्री गणना के आधार पर कह रहे हैं कि इस दिन भद्रा पाताल लोक में रहेगी। इस तरह इसका प्रभाव धरती पर नहीं पड़ेगा और रक्षा बंधन 11 तारीख को ही मनाया जाएगा। यहां जानें कौन है भद्रा और क्यों भद्राकाल में राखी नहीं बांधी जाती है।

What is Bhadra Kaal, Who is Bhadra

पुराणों के अनुसार, भद्रा शनिदेव की बहन और सूर्य देव की पुत्री हैं। इनका स्वभाव भी अपने भाई शनि की तरह कठोर माना जाता है। भद्रा के स्वभाव को समझने के लिए ब्रह्मा जी ने इनको काल गणना यानी पंचांग में एक विशेष स्थान दिया है। हिंदू पंचांग को 5 प्रमुख अंगों में बांट गया है। ये हैं – तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण। इसमें 11 करण होते हैं जिनमें से 7वें करण विष्टि का नाम भद्रा है।

भद्राकाल में क्यों राखी नहीं बांधी जाती है

जब भद्रा का समय होता है तो यात्रा, मांगलिक कार्य आदि निषेध होते हैं। रक्षा बंधन को शुभ काम माना गया है, इस वजह से भद्रा के साए में राखी नहीं बांधी जाती है। मान्यता है कि रावण की बहन शूर्पनखा ने उसे भद्रा काल में राखी बांधी थी जिसके बाद उसके राजपाट का विनाश हो गया।  हालांकि भद्रा काल में कुछ कार्य किए जा सकते हैं। इनमें तांत्रिक क्रियाएं, कोर्ट कचहरी का काम, और राजनीतिक चुनाव आदि शामिल हैं।

चंद्रमा की राशि से तय होती है भद्रा की स्थिति

मुहुर्त्त चिन्तामणि के अनुसार चंद्रमा की राशि से भद्रा का वास निर्धारित किया जाता है। मान्यता है कि जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होता है तब भद्रा का वास पृथ्वी पर होता है। चंद्रमा जब मेष, वृष, मिथुन या वृश्चिक में रहता है तब भद्रा का वास स्वर्गलोक में रहता है। चंद्रमा के कन्या, तुला, धनु या मकर राशि में स्थित होने पर भद्रा का वास पाताल लोक में माना गया है। गणणाओं में भद्रा का पृथ्वी पर वास ही भारी माना गया है!

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