Friday, October 18, 2024
Uncategorized

नूपुर शर्मा मामले में सुप्रीम कोर्ट के जज कभी नही रहे कांग्रेस विधायक, पर ये है कांग्रेस कनेक्शन,58 सांसद ला रहे थे महाभियोग, जज साहब ने टिप्पणी वापस ले ली थी

 

कौन हैं नूपुर शर्मा को फटकार लगाने वाले जस्टिस सूर्यकांत और जेबी पारदीवाला?

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने देश का माहौल खराब करने के लिए नुपूर शर्मा को जिम्मेदार ठहराया और उन्हें सार्वजनिक रूप से माफी मांगने को कहा.

बीजेपी से निलंबित नेता नूपुर शर्मा (Nupur Sharma) को आज सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी फटकार लगाई है. पैगंबर मुहम्मद पर टिप्पणी मामले (Nupur Sharma Statement on Prophet Muhammad) में अलग-अलग राज्यों में दर्ज हुई एफआईआर के बाद राहत के लिए नूपुर शर्मा ने शीर्ष अदालत (Supreme Court) का रुख किया था. नूपुर ने आग्रह किया था कि सभी मामलों को दिल्ली ट्रांसफर किया जाए. सुप्रीम कोर्ट मे इस मामले की सुनवाई कर रही दो जजों की बेंच ने नूपुर शर्मा को न केवल फटकार लगाई, बल्कि याचिका भी वापस लेने को कहा. कोर्ट ने कहा कि देश में आज जो हालात बने हैं, उनके लिए नुपूर शर्मा का बयान जिम्मेदार है.
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने देश का माहौल खराब करने के लिए नुपूर शर्मा को जिम्मेदार ठहराया और उन्हें सार्वजनिक रूप से माफी मांगने को कहा. जस्टिस सूर्यकांत अपने कड़े तेवर के लिए जाने जाते हैं और इससे पहले भी कई मामलों में कड़ा रुख अपना चुके हैं. वहीं पारसी समुदाय से आने वाले जस्टिस पारदीवाला भी देश के गिने-चुने नामी जजों में से हैं. आइए जानते हैं दोनों जजों के बारे में विस्तार से.

कौन हैं जस्टिस सूर्यकांत?

जस्टिस सूर्यकांत सुप्रीम कोर्ट के जज हैं. इससे पहले वे हाईकोर्ट के भी जज रह चुके हैं. वे एक किसान परिवार से आते हैं. हरियाणा के हिसार में 10 फरवरी, 1962 को उनका जन्म हुआ था. उनकी शुरुआती पढ़ाई हिसार से ही हुई. आगे की पढ़ाई के लिए वे बाहर गए. वर्ष 1984 में हरियाणा के रोहतक स्थित महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी से उन्होंने कानून की डिग्री ली. इसके बाद वे फिर हिसार लौटे और वहां डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में वकालत की शुरुआत की.
जुलाई 2000 में जस्टिस सूर्यकांत को हरियाणा का महाधिवक्ता बनाया गया और फिर करीब 4 साल बाद जनवरी 2004 में उन्हें पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का न्यायाधीश बनाया गया. वे हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में भी चीफ जस्टिस रह चुके हैं. यहां उनके सेवारत रहते हुए सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय कॉलेजियम ने सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त किए जाने को लेकर उनके नाम की सिफारिश केंद्र सरकार को भेजी थी. इस तरह वे सुप्रीम कोर्ट के जज बनाए गए.

कौन हैं जस्टिस जेबी पारदीवाला?

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला का पूरा नाम जमशेद बरजोर पारदीवाला है. सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में जस्टिस पारदीवाला पारसी समुदाय से आने वाले छठे जज हैं. उनके परदादा नवरोजजी भीकाजी पारदीवाला और दादाजी कावासजी नवरोजजी पारदीवाला भी वकालत करते थे. पिता बुर्जोर कावासजी पारदीवाला भी अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए 1955 में वलसाड बार में शामिल हुए. हालांकि बाद में वह कांग्रेस से विधायक बने. दिसंबर 1989 से मार्च 1990 के बीच, उन्होंने 7वीं गुजरात विधानसभा के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया.
उनका जन्म 12 अगस्त 1965 को मुंबई में हुआ था. गुजरात में उनकी शुरुआती पढ़ाई कॉन्वेंट स्कूल में हुई. वर्ष 1988 में वलसाड ​स्थित केएम मुलजी लॉ कॉलेज से उन्होंने लॉ की डिग्री ली. अगले साल ही 1990 में अहमदाबाद स्थित गुजरात हाईकोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की.वर्ष 2002 में उन्हें गुजरात हाईकोर्ट में सरकारी वकील नियुक्त किया गया. साल 2011 में उन्हें गुजरात हाई कोर्ट में एडिशनल जज के रूप में नियुक्त किया गया और 2013 में स्थायी जज बने. फिर कॉलेजियम सिस्टम से वे 9 मई, 2022 को सुप्रीम कोर्ट के जज बनाए गए.

सुप्रीम कोर्ट (एससी) ने भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा को यह कहते हुए कड़ी फटकार लगाई कि उनके द्वारा पैगंबर मुहम्मद पर की गई टिप्पणियों की वजह से उदयपुर में क्रूर हत्या हुई। वह उसके लिए जिम्मेदार थीं और कहा कि उन्हें पूरे देश से माफी मांगनी चाहिए।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा, ‘जिस तरह से उन्होंने देश भर में भावनाओं को प्रज्वलित किया है। देश में जो कुछ हो रहा है, उसके लिए यह महिला अकेले ही जिम्मेदार है।’

न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला जिन्होंने उदयपुर घृणा अपराध के लिए नूपुर शर्मा को दोषी ठहराया था, ने पहले आरक्षण पर अपनी अनावश्यक टिप्पणियों को हटा दिया था।

अब जब अदालत ने नूपुर शर्मा पर उदयपुर के सिर काटने का दोष लगाया, तो यह ध्यान देने योग्य है कि कैसे दो न्यायाधीशों में से एक, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला, जो उस समय गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे, को राज्यसभा सदस्यों द्वारा उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव की मांग करते हुए याचिका दायर की गई तो उन्हें आरक्षण पर की गई उनकी टिप्पणियों को हटाना पड़ा।

दिसंबर 2015 में, राज्यसभा में 58 सांसदों ने अध्यक्ष हामिद अंसारी को एक याचिका सौंपी जिसमें गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जेबी पारदीवाला के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की मांग की गई थी। याचिका के बाद, न्यायाधीश ने अपने फैसले से टिप्पणियों को यह कहते हुए हटा दिया कि वे प्रासंगिक और आवश्यक नहीं थी।

पटेल आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल द्वारा दायर एक याचिका पर फैसला करते हुए न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला ने आरक्षण प्रणाली पर टिप्पणी की थी, जिन्होंने पटेल समुदाय को आरक्षण का लाभ देने की मांग करने वाली याचिका दायर की थी।

जस्टिस जेबी पारदीवाला ने कहा था, ‘अगर कोई मुझसे दो चीजों का नाम मांगे, जिसने इस देश को तबाह कर दिया या यूं कहें कि देश को सही दिशा में आगे नहीं बढ़ने दिया, तो वो है- आरक्षण और भ्रष्टाचार।’

उन्होंने कहा, ‘इस देश के किसी भी नागरिक के लिए आजादी के 65 साल बाद आरक्षण मांगना बहुत शर्मनाक है। जब हमारा संविधान बनाया गया था, तो यह समझा गया था कि आरक्षण 10 साल की अवधि के लिए रहेगा, लेकिन दुर्भाग्य से, यह आजादी के 65 साल बाद भी जारी है।’ इससे देश भर में आक्रोश फैल गया और सांसदों ने उनके खिलाफ महाभियोग चलाने की मांग की। विवाद के मद्देनजर, न्यायमूर्ति पारदीवाला ने टिप्पणियों को हटा दिया और उन्हें अनावश्यक बताया।

रिपोर्टों के अनुसार, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला मई 2028 में न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा के सेवानिवृत्त होने पर भारत के मुख्य न्यायाधीश बनने के लिए तैयार हैं। उनका कार्यकाल 11 अगस्त, 2030 तक उनकी सेवानिवृत्ति तक रहेगा। उनके पिता, बुर्जोरजी कावासजी पारदीवाला, 1955 में बार में शामिल हुए थे और वलसाड जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष थे। बुर्जोरजी भी कांग्रेस के विधायक थे और उन्होंने सातवीं गुजरात विधानसभा (1989-1990) के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया था।

Leave a Reply