पर्दे के पीछे ओवैसी और ममता बनर्जी में सीट बंटवारे का खेल शुरू हो गया है,लगभग 75 सीट की सूची ममता बनर्जी को पहुंचाई गई है जहां मुसलमान आबादी निर्णायक हो सकती है।ओवैसी केम्प दबाव बना कर 20 से 25 सीट पर भी समझौता कर लेगा माना जा रहा है।
विवाद सिर्फ कांग्रेस और कम्युनिस्ट को दौड़ से बाहर करने के लिए है-सूत्र
पश्चिम बंगाल में कुल 294 विधानसभा सीटें हैं और राज्य में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं। साल 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में टीएमसी को 211, लेफ्ट को 33, कांग्रेस को 44 और बीजेपी को मात्र 3 सीटें मिली थीं। हालांकि इसके बाद 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया। टीएमसी ने जहां 43.3 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया वहीं बीजेपी को 40.3 प्रतिशत वोट मिले। बीजेपी को कुल 2 करोड़ 30 लाख 28 हजार 343 वोट मिले जबकि टीएमसी को 2 करोड़ 47 लाख 56 हजार 985 मत मिले।
बिहार विधानसभा चुनाव में मुस्लिम बहुल इलाके की पांच सीटें जीतने वाली असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) की नजरें अब बंगाल चुनाव पर है. बंगाल की सियासी पिच पर असदुद्दीन ओवैसी ने रविवार को कदम रखा और सीधे हुगली जिले के फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी के साथ मुलाकात की, जिसके सियासी मायने निकाले जा रहे हैं. ओवैसी ने राज्य में अपना राजनीतिक आधार मजबूत करने के लिए पीरजादा अब्बास सिद्दीकी को एआईएमआईएम का चेहरा बनाने का फैसला किया है.
बता दें कि असदुद्दीन ओवैसी ने हुगली जिला में श्रीरामपुर अनुमंडल के जंगीपाड़ा ब्लॉक के फुरफुरा गांव में स्थित फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी, पीरजादा नौशाद सिद्दीकी, पीरजादा बैजीद अमीन और सबीर गफ्फार से बंद कमरे में मुलाकात की. इसका बाद ओवैसी ने कहा कि पीरजादा अब्बास सिद्दीकी बंगाल में उनकी पार्टी का चेहरा होंगे. उनके दिशा-निर्देश पर ही एआईएमआईएम बंगाल में काम करेगी. ओवैसी ने कहा कि पीरजादा जो भी कहेंगे, उनकी पार्टी और पार्टी के कार्यकर्ता उसका अनुसरण करेगी.
फुरफुरा शरीफ की अहमियत
फुरफुरा शरीफ, जिसे फुरफुरा भी कहते हैं, पश्चिम बंगाल के हुगली जिला स्थित श्रीरामपुर अनुमंडल के जंगीपाड़ा ब्लॉक का एक गांव है. फुरफुरा गांव में वर्ष 1375 में मुकलिश खान ने एक मसजिद का निर्माण कराया था, जो अब बंगाली मुस्लिमों की आस्था का केंद्र बन चुका है. उर्स एवं पीर मेला के दौरान यहां भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं.
फुरफुरा शरीफ में अबु बकर सिद्दीकी और उनके पांच बेटों की मजार है. इसे पांच हुजूर केबला कहते हैं. अबु बकर समाज सुधारक थे. धर्म में उनकी गहरी आस्था थी. उन्होंने कई चैरिटेबल संस्था की स्थापना की. मदरसे बनवाये, अनाथालय एवं स्कूल और अन्य संस्थानों की नींव रखी. महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए फुरफुरा शरीफ में बेटियों के लिए स्कूल की स्थापना की. इसका नाम सिद्दीका हाई स्कूल रखा.
कौन हैं अब्बास सिद्दीकी?
अबु बकर को सिलसिला-ए-फुरफुरा शरीफ का संस्थापक माना जाता है. बंगालियों के फाल्गुन महीने की 21, 22 और 23 तारीख को यहां धार्मिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं, अलग-अलग जगहों से भारी संख्या में लोग आते हैं. अब्बास सिद्दीकी हुगली जिले के जंगीपारा में मौजूद फुरफुरा शरीफ के सज्जादा नशीं हैं. उनकी मुस्लिम समाज के लोगों में काफी अच्छी पकड़ है. सिद्दीकी खुद को ओवैसी का बहुत बड़ा फैन भी बताते हैं और कहते हैं कि उन्होंने इसीलिए चुनाव में हिस्सा लेने का फैसला लिया है क्योंकि कुछ लोग धर्म के आधार पर समाज को बांटने में लगे हुए हैं.
ओवैसी का पीरजादा पर दांव
अबु बकर सिद्दीकी को याद करते हुए ओवैसी ने कहा कि धर्म में उनकी गहरी आस्था थी. वह महान समाजसेवक थे, जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में काफी काम किया. ओवैसी ने कहा कि वह अबु बकर से बेहद प्रभावित हैं, इसलिए बंगाल आने के बाद सबसे पहले उनकी मजार पर आना चाहते थे. यहां आकर उन्हें काफी अच्छा लगा. ओवैसी ने बंगाल में पीरजादा के चेहरे पर दांव खेलकर बंगाल के मुस्लिम को साधने का बड़ा सियासी दांव चला है, जो ममता बनर्जी के लिए चिंता का सबब बन सकता है.
दरअसल, फुरफुरा शरीफ बंगाल की राजनीति को प्रभावित करता रहा है. माना जाता है जिस दल को फुरफुरा शरीफ का समर्थन मिल गया, चुनाव में उसकी जीत तय है, क्योंकि बंगाल में इनके अनुयायियों की भारी तादाद है. मुर्शिदाबाद, मालदा, उत्तर दिनाजपुर, बीरभूम, दक्षिण 24 परगना और कूचबिहार में मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं. इसलिए सभी राजनीतिक दल खुद को फुरफुरा शरीफ से बेहतर तालमेल बनाने की जुगत में रहते हैं.
बंगाल की सियासत में मुस्लिम मतदाता
2011 की जनगणना के अनुसार पश्चिम बंगाल की 27.01 फीसदी आबादी मुसलमानों की है. प्रदेश की 70 विधानसभा सीटों के नतीजे तय करने में मुस्लिम मतदाताओं की भूमिका अहम होती है. महत्वपूर्ण बात यह है कि बिहार में पार्टी को जिन पांच सीटों पर जीत मिली है, उनमें चार पश्चिम बंगाल के मुस्लिम बहुल इलाकों से सटे पूर्णिया और किशनगंज जिलों में हैं.
पश्चिम बंगाल के जो चार जिले बिहार सीमा से लगते हैं, उनमें मुर्शिदाबाद में मुस्लिम आबादी 66.27 फीसदी है. इसके अलावा मालदा, उत्तर दिनाजपुर और बीरभूम की आबादी में मुसलमान क्रमशः 51.27 फीसदी, 49.92 फीसदी और 37.06 फीसदी हैं. राज्य की 294 विधानसभा सीटों में से 54 सीटें इन चार जिलों में हैं. इनके अलावा कोलकाता के पड़ोसी जिलों उत्तर और दक्षिण 24 परगना में 35.6 फीसदी और कूचबिहार में 25.54 फीसदी मुस्लिम हैं. असदुद्दीन ओवैसी इन्हीं वोटरों को टार्गेट करके पश्चिम बंगाल में अपनी पार्टी को मजबूत बनाना चाहते हैं. यही वजह है कि बंगाल आने के बाद सबसे पहले वह फुरफुरा शरीफ पहुंचें.
ममता के लिए चुनौती बनेंगे ओवैसी
ओवैसी की नजर मालदा और उत्तर दिनाजपुर सहित मुस्लिम बहुल इलाके की सीटों पर है. ओवैसी ने जिस तरह से अब्बास सिद्दीकी के चेहरे के सहारे स्थानीय मुस्लिम नेता का समर्थन जुटाने का दांव चला है, वह ममता के लिए सिरदर्द बन सकता है. अब्बास सिद्दीकी का मुस्लिम समाज में काफी प्रभाव माना जाता है. ओवैसी के साथ ही पीरजादा की नजरें मुस्लिम वोटों पर है. चुनाव से पहले दोनों अल्पसंख्यक नेताओं की मुलाकात क्या सियासी गुल खिलाती है यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन फिलहाल टीएमसी के लिए अब एक और नई चुनौती खड़ी हो गई है.
पश्चिम बंगाल में कुल 294 विधानसभा सीटें हैं और राज्य में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं। साल 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में टीएमसी को 211, लेफ्ट को 33, कांग्रेस को 44 और बीजेपी को मात्र 3 सीटें मिली थीं। हालांकि इसके बाद 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया। टीएमसी ने जहां 43.3 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया वहीं बीजेपी को 40.3 प्रतिशत वोट मिले। बीजेपी को कुल 2 करोड़ 30 लाख 28 हजार 343 वोट मिले जबकि टीएमसी को 2 करोड़ 47 लाख 56 हजार 985 मत मिले।
38 वर्षीय अब्बास सिद्दीकी एक समय ममता बनर्जी के मुखर समर्थक थे। मगर बीते कुछ महीनों से उन्होंने ममता बनर्जी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। सिद्दीकी ने ममता सरकार पर मुस्लिमों की अनदेखी करने का आरोप लगाया है। बंगाल की करीब 100 सीटों पर फुरफुरा शरीफ दरगाह का प्रभाव है। ऐसे में चुनाव से पहले दरगाह के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी की नाराजगी मोल लेना ममता के लिए सियासी रूप से फायदे का सौदा नहीं साबित होने वाला है।
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को राज्य की सत्ता तक पहुंचाने वाले सिंगूर और नंदीग्राम आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाने वाली फुरफुरा शरीफ दरगाह के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने अब एक बड़ा सियासी संकेत दिए हैं। मई महीने में पश्चिम बंगाल के चुनाव से पहले अब्बास सिद्दीकी रविवार को AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी से मिले हैं। इस मुलाकात को पश्चिम बंगाल की सियासत में एक बड़ी घटना माना जा रहा है। बंगाल के हुगली जिले में फुरफुरा शरीफ विख्यात दरगाह है। दक्षिण बंगाल में इस दरगाह का विशेष दखल है। लेफ्ट फ्रंट सरकार के दौरान इसी दरगाह की मदद से ममता ने सिंगूर और नंदीग्राम जैसे दो बड़े आंदोलन किए थे।
दरअसल, पश्चिम बंगाल की सियासत में 31 फीसदी वोटर्स मुस्लिम हैं। पीरजादा अब्बास सिद्दीकी जिस फुरफुरा शरीफ दरगाह से जुड़े हैं, उसे इस मुस्लिम वोट बैंक का एक गेमचेंजर माना जाता है। लंबे वक्त से सिद्दीकी ममता बनर्जी के करीबियों में से एक रहे हैं। हालांकि कुछ वक्त से सिद्दीकी ममता के खिलाफ बयान दे रहे हैं और वह खुले रूप में टीएमसी का विरोध भी कर रहे, ऐसे में ओवैसी से उनका मिलना अहम है।
ममता बनर्जी के लिए मुसीबत बनेगी ओवैसी-अब्बास की जोड़ी! 100 सीटों पर बिगड़ेगा TMC का ‘खेल’
हाल ही में पश्चिम बंगाल के चुनाव में उतरने का ऐलान किया है, ऐसे में सिद्दीकी से उनकी मुलाकात को मुस्लिम वोटर्स को AIMIM (ओवैसी की पार्टी) के पक्ष में करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। बड़ी बात ये कि पश्चिम बंगाल में बंगाल की सत्ता में आने से पहले ममता बनर्जी जिन सिंगूर और नंदीग्राम के आंदोलनों के कारण लोगों के बीच लोकप्रिय हुई थीं, उनमें फुरफुरा शरीफ की एक बड़ी भूमिका थी।
समर्थन का दावा
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने रविवार को फुरफुरा शरीफ दरगाह के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी से भेंट के बाद मीडिया से बात की। उन्होंने कहा अब्बास सिद्दीकी का हमें समर्थन हासिल है और जो फैसला वह लेंगे, वही हमें मंजूर होगा। ओवैसी ने अब्बास सिद्दीकी के अलावा पीरजादा नौशाद सिद्दीकी, पीरजादा बैजीद अमीन, सब्बीर गफ्फार समेत कई अन्य प्रभावशाली मुस्लिम नेताओं से मुलाकात की।