भारत ने माना मोदी ही खेवनहार, वायरस से भी नहीं बनी राहुल गाँधी की विश्वसनीयता: कोरोना काल में जनता का मूड बताते आया सर्वे
नरेंद्र मोदी ने बतौर प्रधानमंत्री बीते 26 मई को सात साल पूरे किए थे। 30 मई को उनकी दूसरी सरकार (मोदी 2.0) के दो साल पूरे होंगे। उससे पहले एक सर्वे आया है जो कोरोना वैश्विक महामारी के कारण पैदा हुए हालात के बीच देश के मिजाज पर रोशनी डालता है। इस सर्वे से यह बात सामने आई है कि आज भी मोदी देश के सर्वमान्य नेता हैं और विश्वसनीयता के लिहाज से कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी उनके सामने कहीं नहीं टिकते।
एबीपी न्यूज-सी वोटर के इस सर्वे के नतीजे ऐसे वक्त में आए हैं जब कोरोना की आड़ में मोदी सरकार के खिलाफ तमाम तरह के प्रोपेगेंडा चलाए जा रहे हैं। खुद राहुल गाँधी भी लगातार इसे हवा दे रहे हैं। पिछले दिनों कॉन्ग्रेस का एक कथित टूलकिट भी सामने आया था जिसमें बताया गया था कि कैसे सरकार को बदनाम करना है।
इसी सर्वे में एक सवाल यह किया गया कि कोरोना के हालात को कौन बेहतर संभालता मोदी या राहुल? इस सवाल के जवाब में 66 फीसदी शहरी और 62 फीसदी ग्रामीण लोगों ने मोदी पर भरोसा जताया। उन्होंने कहा कि इस मोर्चे पर मोदी ही बेहतर हैं। वहीं, 20 फीसदी शहरी और 23 फीसदी ग्रामीण लोगों को लगता है कि राहुल गांधी कोरोना संकट को बेहतर ढंग से संभालते।
राहुल रहे हैं हमलावर
राहुल गांधी कोरोना के हालात को संभालने में मोदी सरकार को फेल बताते आए हैं। वह आरोप लगाते रहे हैं कि सरकार की गलत नीतियों और तौर-तरीकों के कारण कोरोना बेकाबू हुआ। हाल में उन्होंने आरोप लगाया था कि वैक्सीनेशन की रफ्तार धीमी हुई है। उसका ठीकरा उन्होंने मोदी सरकार पर फोड़ा था। उन्होंने कहा था कि जब देश में लोगों को वैक्सीन की जरूरत थी तो उन्हें विदेश भेजा गया। जबकि दूसरे विकसित देशों ने वैक्सीन का भंडारण किया। वह कहते रहे हैं कि केवल वैक्सीन से ही कोरोना को रोका जा सकता है।
राहुल देश में कोरोना की दूसरी लहर के बढ़ने के पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार ठहराते रहे हैं। शुक्रवार को भी उन्होंने आरोप लगाया कि पीएम ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई। उनकी ‘नौटंकी’के कारण ये हालात पैदा हुए।
वैक्सीन विदेश भेजना कितना था गलत?
हालांकि, एबीपी-सी वोटर सर्वे में जब जनता से यह पूछा गया कि क्या मोदी सरकार में वैक्सीन का इंतजाम ठीक है, तो इसके जवाब में ज्यादातर लोगों ने हां में उत्तर दिया। शहरों में 51 फीसदी लोगों ने इससे सहमति जताई। वहीं, 42 फीसदी ग्रामीणों ने भी हां में इसका जवाब दिया।
बावजूद इसके सर्वे बताता है कि शहरी क्षेत्र के 66 और ग्रामीण क्षेत्र के 22 फीसदी लोगों का मानना है कि कोरोना के संकट से ज्यादा बेहतर तरीके से निपटने में प्रधानमंत्री मोदी ही सक्षम हैं। शहरी इलाके के केवल 20 और ग्रामीण क्षेत्र के 23 फीसदी लोगों को ही राहुल पर भरोसा है। शहरी क्षेत्र के 14 और ग्रामीण इलाकों के 15 फीसदी लोग इस सवाल का स्पष्ट जवाब नहीं दे पाए। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि लोकप्रियता और विश्वसनीयता के मोर्चे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्ष के चेहरे से कितने आगे हैं।
सर्वे में शामिल 44 फीसदी और ग्रामीण इलाकों के 40 फीसदी लोग कोरोना संकट को मोदी सरकार की सबसे बड़ी नाकामी मानते हैं। किसानों के आंदोलन को लेकर शहरी क्षेत्र के हर पाँच में से एक यानी 20 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्र के हर चार में से एक यानी 25 प्रतिशत लोगों को ही लगता है कि मोदी सरकार इस मोर्चे पर नाकाम रही है। शहरी लोगों में से 9 प्रतिशत दिल्ली दंगे को नाकामी मानते हैं। ग्रामीण क्षेत्र के भी 9 फीसदी लोगों ने ही इसे नाकामी माना है। चीन के साथ सीमा विवाद को लेकर 7 प्रतिशत शहरी और 10 प्रतिशत ग्रामीण लोग सरकार को नाकाम मानते हैं।
इस वर्ष देशव्यापी लॉकडाउन न लगने का सवाल किए जाने पर 57% शहरी और 52% ग्रामीणों ने इसे सही बताया, जबकि 31% शहरी और 34% ग्रामीणों ने गलत कहा। 12% शहरी और 14 % ग्रामीणों का कहना है कि वे इस बारे में कुछ नहीं कह सकते हैं।
इसी तरह मोदी सरकार ने वैक्सीन के इंतजाम ठीक किए हैं या नहीं, इस पर 51% शहरी और 42 फीसदी ग्रामीणों ने इस सवाल का हाँ में इसका जवाब दिया है। 38 % शहरी और 46% ग्रामीणों ने माना कि सरकार ने वैक्सीन का इंतजाम ठीक से नहीं किया। इस तरह शहर के 11% और 12% ग्रामीणों ने कहा कि उन्हें इस पर कुछ नहीं कहना है।
आज की तारीख में सबसे बड़े परेशानी पूछे जाने पर भ्रष्टाचार को वजह 7% ने माना। वहीं बेरोजगारी को 18%, गरीबी को 5%, महँगाई को 10%, कृषि को 4%, कोरोना को 36%, और अन्य दिक्कतों पर 20% ने अपनी सहमति दी।